भाई संतोख सिंह की हवेली में हुआ श्री गुरु ग्रंथ साहब का प्रकाश

रविवार को शहर के बोडान मोहल्ला में बनी सिख कई भाई संतोख सिंह की हवेली में गुरु ग्रंथ साहब का प्रकाश किया गया। इसी के साथ हवेली के जीर्णाेद्धार का काम शुरू करने के लिए रखे गए अखंड पाठ का भोग डाला गया। कवि चूड़ामणि भाई संतोख सिंह ट्रस्ट हवेली की देखरेख करेगा। अंबाला के निहंग कार सेवा वालों ने ज्ञानी शेर सिंह अंबाला वाले की अगवाई में 200 साल पुराने इस ऐतिहासिक धरोहर को सहने का काम शुरू किया है।
हवेली के जीर्णोद्धार का काम शुरू करने से पहले शुक्रवार को तीन दिवसीय अखंड पाठ रखा गया था। हवेली में गुरु ग्रंथ साहब के प्रकाश के बाद यहां गुरुघर स्थापित किया जाएगा। यह हवेली अब गुरु हवेली साहिब सूरज प्रकाश के नाम से जानी जाएगी। ज्ञानी शेर सिंह अंबाले वाले ने जानकारी देते हुए बताया कि अखंड पाठ के समापन अवसर पर गुरविंद्र सिंह मांडी वाले, मान सिंह, ज्ञानी गुरपाल सिंह, सुल्तान सिंह, महंत रमनुपरी और सहजधारी और केसधारी समाज के संत कार्यक्रम में पहुंचे थे। इस मौके पर बाबा मान सिंह, निरतार सिंह, सत्य नारायण, अशोक कुमार, एडवोकेट विक्रम मुल्तानी व गौरव शर्मा, विश्वजीत शर्मा, गुलाब, ईश्वर मौजूद रहे।
कार सेवा वाले निहंग संतों ने खरीदा हवेली को, यहीं 20 साल गुजारे थे भाई संतोष सिंह ने निहंग संत ज्ञानी शेर सिंह अंबाला वाले ने 200 साल पुरानी इस हवेली को दीपक पुत्र बच्चन लाल से खरीदा है। किसी हवेली के रखरखाव के लिए कवि चूड़ामणि भाई संतोख सिंह नाम के ट्रस्ट बनाया गया है। 375 वर्ग गज में इस हवेली में गुरु ग्रंथ साहब का प्रकाश होने के बाद गुरु घर यानी गुरुद्वारा का रूप दिया गया है।
भाई संतोष सिंह की याद में शहर के चिल्ड्रन पार्क में एक चबूतरे पर उनकी प्रतिमा लगाई गई है। इस प्रतिमा में कवि संतोख सिंह बैठी हुई मुद्रा में है। इसमें भाई संतोख सिंह ने एक हाथ में कलम पकड़ी है व दूसरे हाथ में कागज है। कैथल की सीख रियासत के राजा भाई उदय सिंह के शासनकाल के दौरान भाई संतोष सिंह उनके राज कवि थे। वे छिब्बर नाम के मोह्याल ब्राह्मण थे। 1823 में वे पटियाला नरेश महाराज कर्मसिंह के दरबारी कवि बने।
दो वर्ष बाद कैथल के रईस श्री उदयसिंह आपको अपने यहाँ लिवा ले आए उन्होंने कैथल में रहते हुए बाल्मीकि रामायण का अनुवाद किया था। यहां पर ही भाई संतोख सिंह ने गुरु प्रताप सूरज ग्रंथ ही रचना की थी। जिसमें 51 हजार 820 छंद है। इस ग्रंथ को भाई संतोख सिंह जी ने 1835-43 के समय में पूरा किया था। गुरु नानक देव जी का जपुजी साहिब का उन्होंने अनुवाद भी किया था। अब ज्ञानी शेर सिंह ने इस हवेली को खरीद कर देश और प्रदेश के लोगों के दिलों में महान कवि भाई संतोख सिंह की याद ताजा कर दी है।
