• October 22, 2025

उम्मीदों पर पानी फेर गई जितेंद्र कुमार और नीना गुप्ता की सीरीज, खींची हुई है कहानी

भारत की सबसे पसंदीदा वेब सीरीज में से एक TVF की ‘पंचायत’ अपने चौथे सीजन के साथ अमेजन प्राइम वीडियो पर वापसी कर चुकी है। 24 जून 2025 को रिलीज हुए इस नए सीजन को लेकर दर्शकों को काफी उम्मीदें थीं, खासतौर पर पिछले सीजन की थोड़ी निराशा के बाद। अगर आप पिछले सीजन की असफलता के बाद पंचायत सीजन 4 से ज्यादा उम्मीदें नहीं रख रहे हैं तो आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। जैसा कि निर्माताओं ने बताया, चौथी किस्त ग्राम पंचायत चुनावों पर केंद्रित है, जहां मौजूदा प्रधान मंजू देवी और नई उम्मीदवार क्रांति देवी आमने-सामने हैं। इन सबके बीच, सचिव जी अपने परीक्षा परिणामों की प्रतीक्षा कर रहे हैं और अब उनकी प्रेम कहानी भी बाहरी तौर पर ज्यादा है, जबकि चार मुख्य पुरुष पात्रों के बीच दोस्ती स्थिर बनी हुई है। हालांकि इस बार पकड़ ढीली होती दिख रही थी और पंचायत की प्रामाणिक ग्रामीण हवा नहीं बह रही थी।

कहानी: सियासत, संघर्ष और संदेह

चंदन कुमार द्वारा लिखित और दीपक कुमार मिश्रा द्वारा निर्देशित इस सीजन में कहानी का फोकस पंचायत चुनावों पर है। एक ओर हैं मंजू देवी (नीना गुप्ता) और उनके पति प्रधान जी (रघुबीर यादव) और दूसरी ओर हैं क्रांति देवी और उनके चालाक पति भूषण (दुर्गेश कुमार)। सचिव जी (जितेंद्र कुमार) इस बार भी बीच में फंसे हुए हैं। IIM में दाखिले का सपना, परीक्षा के नतीजे और करियर को लेकर असमंजस से जूझते हुए। पिछले सीजन के अंत में सचिव जी द्वारा भूषण को थप्पड़ मारने की घटना इस सीजन की शुरुआत का केंद्र है। प्रधान जी विधायक चंद्रकिशोर सिंह (पंकज झा) और भूषण के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हैं, वहीं भूषण भी सचिव जी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की बात करता है।

इस बार सियासत का पारा चढ़ा हुआ है, फुलेरा पंचायत के चुनाव हो रहे हैं। भूषण और क्रांति देवी अपने प्रचार में रचनात्मकता और जोश लेकर आते हैं, जबकि मंजू देवी थोड़ा पुराने ढर्रे पर चलती नजर आती हैं। विकास (चंदन रॉय) और प्रह्लाद (फैसल मलिक) भी चुनावी माहौल में अपनी-अपनी उलझनों में फंसे हैं, लेकिन असली सवाल यह है- क्या सचिव जी इस बार CAT क्लियर कर पाएंगे? क्या मंजू देवी फिर से प्रधान बनेंगी? और सबसे बड़ी रहस्यपूर्ण बात, अगर भूषण ने प्रधान जी पर हमला नहीं किया तो असली हमलावर कौन था?

निर्देशन: पकड़ कमजोर, संदेश अधूरा

सीजन 4 की सबसे बड़ी कमजोरी उसका निर्देशन और स्क्रिप्ट है। पहले दो सीजन की तरह ग्रामीण जीवन की गहराई और मासूमियत गायब है। चुनावी राजनीति की कहानी ने सीरीज़ की आत्मा को कहीं पीछे छोड़ दिया है। महिला किरदार, जो पहले बराबरी में दिखते थे, इस बार पृष्ठभूमि में धकेल दिए गए हैं, और पुरुष पात्रों की अतिरंजित हरकतें कभी-कभी असहज करती हैं। विकास और प्रह्लाद के भावनात्मक दृश्य उतने प्रभावशाली नहीं हैं जितने पहले थे, और नीना गुप्ता जैसे अनुभवी कलाकार को भी इस बार सीमित स्पेस मिला है। निर्देशक दीपक कुमार मिश्रा और लेखक चंदन कुमार से इस सीज़न में नई दृष्टि की उम्मीद थी, लेकिन वे पहले जैसी पकड़ दोबारा नहीं बना पाए।

संगीत: इस बार नहीं जमी बात

‘खाली खाली सा’, ‘आसमान रूठा’ और ‘हिंदा का सितारा’ जैसे पिछले सीज़नों के यादगार गानों की तुलना में इस बार संगीत फीका रहा। न कोई नया गाना याद रहने लायक है और न ही पुराने ट्रैकों का इस्तेमाल प्रभाव छोड़ पाया।

अभिनय: कलाकारों की मौजूदगी ही शो का सहारा

अगर इस सीजन की कोई सबसे मजबूत बात है, तो वो हैं इसके कलाकार। जितेंद्र कुमार अपने किरदार में पूरी तरह ढले हुए हैं। फैसल मलिक (प्रह्लाद) फिर से अपने इमोशनल और कॉमिक टाइमिंग से प्रभावित करते हैं। रघुबीर यादव थोड़े-बहुत ओवर द टॉप लगते हैं, लेकिन उनकी स्क्रीन प्रेजेंस अब भी दमदार है। संविका (रिंकी) को इस बार थोड़ा बेहतर स्पेस मिला है। स्वानंद किरकिरे की एंट्री हालांकि प्रभाव नहीं छोड़ पाई।

फुलेरा वही है, लेकिन आत्मा कहीं खो गई है

‘पंचायत सीजन 4’ से उम्मीद थी कि वह पिछले सीजन की कमजोरियों से सबक लेगा और पहले दो सीजन की जड़ों की ओर लौटेगा। लेकिन अफसोस, ऐसा नहीं हो पाया। चुनावी राजनीति की कहानी में डूबे फुलेरा में अब वो अपनापन और मासूमियत नहीं रही, जो इसे खास बनाती थी। फिर भी, यह गांव, इसके किरदार और उनका रिश्ता दर्शकों को ‘घर जैसा एहसास’ जरूर दिलाते हैं। अगर आप पंचायत के लंबे समय से प्रशंसक हैं तो यह सीजन एक बार देखना बनता है, लेकिन कमज़ोर स्क्रिप्टिंग के कारण शायद यह आपको बार-बार देखने को प्रेरित न करे।

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Rama Niwash Pandey

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