• October 19, 2025

बुंदेलखंड में आज भी जीवंत है सावन में झूला और आल्हा गायन की परम्परा

 बुंदेलखंड में आज भी जीवंत है सावन में झूला और आल्हा गायन की परम्परा

हमीरपुर समेत समूचे बुन्देलखंड क्षेत्र में सावन मास में झूला झूलने और आल्हा गायन की परम्परा आज भी जीवन्त है। यहां एक गांव में प्राचीन रामजानकी मंदिर में नागपंचमी से सावन मास की पूर्णिमा तक दस दिनों तक झूला महोत्सव की सैकड़ों साल पुरानी परम्परा आज भी कायम है। सोमवार से गांव में झूला महोत्सव में श्रीकृष्ण को गांव की महिलाएं सामूहिक रूप से झूला झुलाएगी। इसके लिए तैयारियां भी पूरी हो गई है।

बुन्देलखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में सैकड़ों सालों से आल्हा गायन और झूला महोत्सव की परम्पराएं चली आ रही है। जिले के सुमेरपुर क्षेत्र के विदोखर गांव में यह परम्परा आज भी कायम है। यहां रामजानकी संत बद्रीदास मंदिर में कल नागपंचमी से सावन पूर्णिमा तक दस दिनों तक चलने वाले सावनी झूला महोत्सव का आगाज होगा। झूला महोत्सव के साथ ही गांव की चौपालों में आल्हा गायन की धूम मचेगी। गांव के आल्हा गायक रणविजय सिंह ने बताया कि विदोखर सहित अन्य तमाम गांवों में झूला और आल्हा गायन काफी लोकप्रिय है। इस परम्परा में झूला झूलना शगुन माना जाता है।

सावन मास में प्रकृति शृंगार करती है। जो मन को मोहने वाला होता है। उन्होंने बताया कि यह मौसम ऐसा होता है कि जब प्रकृति खुश होती है तो लोगों का मन भी झूमने लगता है। लोक संगीत के कलाकार अमर सिंह ने बताया कि लोक जीवन में आनंद, उत्साह, प्रेम एकता व धर्म संस्कृति में एक अनूठा और कच्ची मिट्टी जैसा सोंधापन है। बुन्देलखंड के चर्चित कवि जगनीक और ईसुरी जैसे कवियों ने यहां के साहित्य को समृद्ध किया है। साथ ही लोक संगीत, लोक गाथा, वीर गाथा व लोक साहित्य के जरिए परम्पराओं को जीवित रखा है, क्योंकि परम्पराएं समाज को संस्कारित करती हैं।

गांवों की चौपालों में अब बुंदेली लोक छटा की मची धूम

ग्रामीण इलाकों में अब आल्हा गायन की धूम मच गई है। लोक संस्कृति में विद्यमान लोक मूल्य, लोकाचरण, लोक साहित्य और लोक कलाओं से लोगों को जीवन जीने की आनंद भरी राह मिलती है। यहीं कारण है कि परम्पराओं का लोक जीवन में आज भी विशेष स्थान है। बुजुर्ग आल्हा गायक दिनेश ने बताया कि सावन में वीर रस एवं शृंगार रस से ओत-प्रोत आल्हा गायन का अस्तित्व आज भी कायम है। सावन में आल्हा काव्य और रायसों को अनेक पंक्तियां वातावरण में समरसता घोलती है। सिर धरें चकोटी चली देखने सावन, संग राखी सहेली और मन भावन सावन आदि आल्हा पंक्तियों का गायन गांव के लोग आज भी चाव से सुनते हैं। कुरारा क्षेत्र में आल्हा की धूम मच गई है।

प्राचीन रामजानकी मंदिर में श्रीकृष्ण के लिए पड़ेगा झूला

विदोखर गांव प्राचीन रामजानकी मंदिर में नागपंचमी के दिन सदियों पुरानी परम्परा में श्रीकृष्ण के लिए झूला पड़ेगा। यहां गांव की महिलाएं सामूहिक रूप से न सिर्फ मंगलगीत गाएगी बल्कि सावन मास की पूर्णिमा तक दस दिनों तक श्रीकृष्ण को महिलाएं झूला झुलाएंगी। समाजसेवी मिथलेश कुमार ने बताया कि गांव का मन्दिर सदियों पुराना है जहां सावन मास में दस दिनों तक श्रीकृष्ण को झूला झुलाया जाएगा। यहां दस दिनों तक झूला महोत्सव की धूम मचेगी। सुबह और देर शाम गांव की चौपाल में आल्हा गायन होगा। उन्होंने बताया कि सैकड़ों साल से देव स्थान में झूला डालने और आल्हा गायन की परम्परा आज भी लोगों के जहन में रची-बसी है।

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Rama Niwash Pandey

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