हाईकोर्ट का सख्त फैसला: स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ आपत्तिजनक वीडियो 48 घंटे में हटाने का आदेश
विवाद की शुरुआत: यूट्यूबर का अपमानजनक वीडियो
जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य, जो रामकथा के प्रसिद्ध वाचक और पद्म विभूषण सम्मानित हैं, के खिलाफ 29 अगस्त 2025 को गोरखपुर के यूट्यूबर शशांक शेखर ने एक वीडियो अपलोड किया। उनके चैनल ‘बेधड़क खबर’ पर प्रसारित इस वीडियो का शीर्षक था ‘रामभद्राचार्य पर खुलासा, 16 साल पहले क्या हुआ था’। याचिकाकर्ता शरद चंद्र श्रीवास्तव और अन्य सात शिष्यों ने कोर्ट को बताया कि वीडियो में स्वामीजी के पुराने मामलों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, जो न केवल मानहानिकारक है बल्कि उनकी बचपन से चली आ रही अंधता का भी अपमान करता है। यह वीडियो यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम और गूगल पर तेजी से वायरल हो गया। शिकायतों और सीज-एंड-डिसिस्ट नोटिस के बावजूद प्लेटफॉर्म्स ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे सामग्री फैलती रही। स्वामीजी चित्रकूट के जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के कुलपति भी हैं, जहां वे दिव्यांगों के शिक्षा और अधिकारों के लिए कार्यरत हैं।
कोर्ट की कार्रवाई: 48 घंटे का अल्टीमेटम
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच, जिसमें जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस प्रशांत कुमार शामिल थे, ने 8 अक्टूबर 2025 को यह सख्त आदेश जारी किया। याचिका पर सुनवाई के दौरान मेटा के वकील ने बताया कि बिना स्पष्ट यूआरएल लिंक के पहले आदेश का पालन मुश्किल है। कोर्ट ने मेटा प्लेटफॉर्म्स इंक और गूगल एलएलसी को याचिकाकर्ताओं से लिंक लेने और 48 घंटे के भीतर आपत्तिजनक सामग्री हटाने का निर्देश दिया। 17 सितंबर को कोर्ट ने पहले ही फेसबुक इंडिया, इंस्टाग्राम इंडिया, गूगल और यूट्यूब को नोटिस जारी कर तत्काल हटाने का आदेश दिया था। राज्य सरकार ने सुनवाई में बताया कि उत्तर प्रदेश दिव्यांगजन आयुक्त कार्यालय ने शशांक शेखर को नोटिस जारी कर 18 अक्टूबर को पेश होने का आदेश दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्लेटफॉर्म्स की ग्रिवांस रिड्रेसल ऑफिसर सुनिश्चित करें कि आदेश का पालन हो। यह फैसला डिजिटल कंटेंट मॉडरेशन पर न्यायिक हस्तक्षेप का उदाहरण बन गया।
सोशल मीडिया पर बढ़ते खतरे: दिव्यांगता का अपमान
यह मामला सोशल मीडिया पर मानहानि और दिव्यांगों के खिलाफ अपमान के बढ़ते मामलों को उजागर करता है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि शशांक शेखर ने जानबूझकर स्वामी रामभद्राचार्य की छवि खराब करने की कोशिश की, जो संस्कृत साहित्य, शिक्षा और दिव्यांग अधिकारों के क्षेत्र में उनके योगदान को कमतर दिखाता है। वीडियो में न केवल पुरानी घटनाओं को गलत तरीके से पेश किया गया, बल्कि स्वामीजी की अंधता का मजाक भी उड़ाया गया। कोर्ट ने इस पर गंभीरता जताते हुए प्लेटफॉर्म्स को जवाबदेह बनाया। राज्य दिव्यांग आयुक्त का नोटिस शेखर के खिलाफ आगे की कार्रवाई का संकेत देता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदेश अन्य मामलों में मिसाल बनेगा, जहां ऑनलाइन कंटेंट से व्यक्तिगत सम्मान प्रभावित होता है। अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी, जहां पालन पर रिपोर्ट मांगी जाएगी। यह विवाद डिजिटल नैतिकता और कानूनी सुरक्षा की बहस को तेज कर रहा है।
