हिमाद्री संकल्प स्नान और यज्ञोपवीत रक्षासूत्र संधान कर मनाया श्रावणी पर्व
श्रावणी पर्व पर आज यजुर्वेदी व अर्थवेदी ब्राह्मणों ने श्रावणी उपकर्म श्रावण पूर्णिमा पर श्रद्धापूर्वक मनाया गया। गंगा के घाटों पर लंबे हिमाद्री संकल्प स्नान के बाद पुरोहितों, ब्राह्मणों ने यज्ञोपवीत और रक्षा सूत्रों का संधान किया।
करीब पांच घंटे चलने वाले श्रावणी उपाकर्म में ऋग्वेद और अथर्ववेद के मंत्रों से पंचगव्य और वैदिक मंत्रों से सिंचन किया गया। इसके बाद भद्रा की समाप्ति पर यह रक्षा सूत्र कलाई पर बांधे जाएंगे जो वर्ष भर बंधे रहेंगे। सामवेदी उपकर्म भाद्रपद मास में मनाया जाएगा ।
वैदिक मान्यता के अनुसार श्रावणी पर्व धरती का सबसे प्राचीन पर्व है। वर्णाश्रम व्यवस्था में श्रावणी को ब्राह्मणों, दशहरे को राजपूतों, दीपावली को वैश्यों और होली को अन्य वर्णों का पर्व माना जाता था। कालांतर में पुरोहित अपने यजमान की कलाई पर सायंकाल अनुसंधानित रक्षा धागे वैदिक मंत्रों के साथ बांधा करते थे। अब यह कार्य राखी बांधते हुए बहनें करती हैं। श्रावणी कर्म के बाद ब्राह्मणों ने नूतन यज्ञोपवीत धारण किए। श्रावणी कर्म के लिए गंगा घाटों पर ब्राह्मणों की भीड़ रही।
श्रावणी पर्व में ब्राह्मणों ने सबसे पहले गंगा में खड़े होकर हिमाद्री संकल्प से स्नान किया। इसके अन्तर्गत भस्म, गंगा की रेती, गोबर, गौमूत्र, घृत, शहद, मिट्टी, हल्दी आदि का शरीर पर बारी-बारी से लेपन कर वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ स्नान होता है। आचार्यों के नेतृत्व में यह स्नान करीब दो घण्टों तक अनवरत चलता रहा। कुशाओं को गंगा में डूबोते हुए लगातार प्रोक्षण किया जाएगा। इसके पश्चात ब्राह्मणों ने यज्ञोपवीत और रक्षा सूत्रों का मंत्रोक्त संधान किया और नूतन यज्ञोपवीत धारण कर श्रावणी पर्व मनाया।



