गांधीगिरी की गूंज: 19 साल पहले रिलीज हुई फिल्म, जिसने बदली दर्शकों की सोच
मुंबई, 2 अक्टूबर 2025: महात्मा गांधी की 156वीं जयंती पर एक ऐसी फिल्म की याद ताजा हो रही है, जिसने 19 साल पहले सिनेमाघरों में धूम मचाई थी। यह फिल्म न सिर्फ मनोरंजन का खजाना थी, बल्कि गांधीवादी सिद्धांतों को आधुनिक दौर में जीवंत कर दर्शकों के दिलों में उतर गई। सत्य, अहिंसा और दोस्ती की मिसाल ने इसे ब्लॉकबस्टर बनाया। 22 करोड़ के बजट में बनी इस फिल्म ने 124 करोड़ से ज्यादा कमाए और कई नेशनल अवॉर्ड्स अपने नाम किए। क्या थी वह कहानी, जो मुन्ना और सर्किट की जोड़ी के साथ गांधीजी के विचारों को जोड़कर इतिहास रच गई? आइए, इस अनूठी यात्रा को फिर से जिएं।
गांधीगिरी का जादू: सत्य और अहिंसा की कहानी
2006 में रिलीज हुई लगे रहो मुन्नाभाई ने महात्मा गांधी की विचारधारा को एक अनोखे अंदाज में पेश किया। फिल्म में मुन्नाभाई (संजय दत्त) गांधीजी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाता है, जो उसे रोजमर्रा की समस्याओं को नैतिकता और धैर्य से हल करने की प्रेरणा देता है। गांधीजी का किरदार (दिलीप प्रभावलकर) मुन्ना के अंतर्मन में उभरता है, जो उसे सच का रास्ता दिखाता है। फिल्म ने दिखाया कि बिना हिंसा और झूठ के भी जटिल समस्याओं का समाधान संभव है। ‘गांधीगिरी’ शब्द यहीं से जन्मा, जो सत्य और प्रेम की ताकत को आधुनिक संदर्भ में जीवंत करता है। यह फिल्म दर्शकों के लिए एक भावनात्मक और प्रेरणादायक अनुभव थी।
बॉक्स ऑफिस पर तूफान: 22 करोड़ से 124 करोड़ की उड़ान
राजकुमार हिरानी के निर्देशन में बनी लगे रहो मुन्नाभाई ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया। 22 करोड़ के बजट में बनी इस फिल्म ने दुनिया भर में 124.98 करोड़ का कलेक्शन किया। Sacnilk के मुताबिक, पहले हफ्ते में ही इसने 50 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर अपनी लागत निकाल ली। संजय दत्त (मुन्नाभाई), अरशद वारसी (सर्किट), विद्या बालन और बोमन ईरानी की शानदार केमिस्ट्री ने दर्शकों को बांधे रखा। मुन्ना-सर्किट की दोस्ती और हास्य ने फिल्म को हर वर्ग के लिए यादगार बना दिया। यह न सिर्फ व्यावसायिक सफलता थी, बल्कि सामाजिक संदेश के साथ मनोरंजन का अनूठा मिश्रण भी साबित हुई।
अवॉर्ड्स की बौछार: चार नेशनल अवॉर्ड्स का गौरव
लगे रहो मुन्नाभाई ने अपनी कहानी और प्रस्तुति के लिए चार नेशनल अवॉर्ड्स जीते। दिलीप प्रभावलकर को गांधीजी की भूमिका के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड मिला। राजकुमार हिरानी, अभिजात जोशी और विधु विनोद चोपड़ा को बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए सम्मानित किया गया। स्वानंद किरकिरे को गीत ‘पल पल हर पल’ के लिए बेस्ट लिरिसिस्ट का अवॉर्ड मिला, और फिल्म को ‘बेस्ट पॉपुलर फिल्म प्रोवाइडिंग व्होलसम एंटरटेनमेंट’ का खिताब दिया गया। ये पुरस्कार इसकी कहानी, संदेश और कला की गहराई को रेखांकित करते हैं। फिल्म ने फिल्मफेयर और IIFA जैसे अन्य अवॉर्ड्स भी जीते, जो इसकी व्यापक लोकप्रियता को दर्शाते हैं।
सामाजिक प्रभाव: गांधीवाद का नया दौर
लगे रहो मुन्नाभाई ने न सिर्फ मनोरंजन किया, बल्कि गांधीवादी सिद्धांतों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाया। ‘गांधीगिरी’ शब्द ने रोजमर्रा की जिंदगी में जगह बनाई, जहां लोग सत्य और अहिंसा को छोटे-छोटे तरीकों से अपनाने लगे। फिल्म ने दिखाया कि गांधीजी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं, चाहे वह भ्रष्टाचार से लड़ना हो या सामाजिक अन्याय से। मुन्ना-सर्किट की जोड़ी ने हास्य के साथ गंभीर संदेश दिया, जो दर्शकों के दिलों में बसा। इसने सिनेमा को सामाजिक बदलाव का हथियार बनाया। आज भी यह फिल्म गांधी जयंती पर प्रेरणा देती है—सच और प्रेम से दुनिया बदली जा सकती है।
