कोहरे का कहर और भारतीय रेलवे की ‘वॉर रूम’ रणनीति: ट्रेनों की लेट-लतीफी रोकने के लिए तैनात हुए स्पेयर रेक, यात्रियों को मिलेगा मुफ्त भोजन
उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड और घने कोहरे ने जनजीवन की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है। दृश्यता (विजिबिलिटी) शून्य के करीब पहुंचने के कारण सड़कों पर आवाजाही तो प्रभावित हुई ही है, लेकिन इसका सबसे व्यापक असर भारतीय रेलवे के नेटवर्क पर पड़ा है। कोहरे की घनी चादर ने लंबी दूरी की ट्रेनों के साथ-साथ वंदे भारत और शताब्दी जैसी प्रीमियम ट्रेनों के पहियों को भी सुस्त कर दिया है। इस चुनौतीपूर्ण स्थिति से निपटने और यात्रियों की बढ़ती परेशानियों को कम करने के लिए रेलवे प्रशासन ने अब एक व्यापक ‘एक्शन प्लान’ तैयार किया है। रेलवे ने न केवल ट्रेनों की लाइव मॉनिटरिंग शुरू की है, बल्कि लेटलतीफी को मात देने के लिए अतिरिक्त ट्रेनों (स्पेयर रेक) का बेड़ा भी मैदान में उतार दिया है।
लाइव मॉनिटरिंग और उच्चाधिकारियों को सख्त निर्देश
कोहरे के कारण ट्रेनों के घंटों देरी से चलने की खबरों के बीच रेलवे बोर्ड ने उत्तर रेलवे (NR), पूर्वोत्तर रेलवे (NER) और उत्तर मध्य रेलवे (NCR) के महाप्रबंधकों को हाई अलर्ट पर रहने के निर्देश दिए हैं। अब ट्रेनों के संचालन की निगरानी केवल कंट्रोल रूम तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके लिए रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम शुरू किया गया है। दिल्ली, लखनऊ, मुरादाबाद, वाराणसी और प्रयागराज जैसे प्रमुख रेल मंडलों के मंडल रेल प्रबंधकों (DRM) को व्यक्तिगत रूप से यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि यात्रियों को स्टेशनों और ट्रेनों के भीतर सूचनाओं की कमी न हो।
रेलवे का मुख्य फोकस इस बात पर है कि यदि कोई ट्रेन कोहरे के कारण फंसती है, तो यात्रियों को समय पर भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई जाए। इसके लिए मुख्यालय स्तर पर अधिकारियों की विशेष टीमें तैनात की गई हैं जो हर घंटे ट्रेनों की लोकेशन और देरी का विश्लेषण कर रही हैं।
वंदे भारत और शताब्दी के लिए ‘स्पेयर रेक’ फॉर्मूला
आमतौर पर प्रीमियम ट्रेनें जैसे वंदे भारत, राजधानी और शताब्दी अपनी समयबद्धता के लिए जानी जाती हैं, लेकिन इस साल के घने कोहरे ने इन्हें भी समय से पीछे कर दिया है। जब एक ट्रेन देरी से पहुंचती है, तो उसका अगला फेरा भी प्रभावित होता है क्योंकि रैक की सफाई और रखरखाव में समय लगता है। इस चक्र को तोड़ने के लिए रेलवे ने ‘स्पेयर रेक’ की व्यवस्था की है।
उदाहरण के तौर पर, यदि नई दिल्ली से वाराणसी जाने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस कोहरे के कारण देरी से पहुंचती है, तो रेलवे अब उस ट्रेन के वापस आने का इंतजार करने के बजाय, दिल्ली में पहले से तैयार खड़ी एक अतिरिक्त ’20 कोच वाली वंदे भारत रेक’ को रवाना कर देगा। इससे ट्रेन अपने निर्धारित समय पर प्रस्थान कर सकेगी और हजारों यात्रियों का समय बचेगा। उत्तर रेलवे ने वाराणसी और दिल्ली के बीच सुचारू संचालन के लिए पहले ही दो ऐसी अतिरिक्त 20 कोच वाली रेक आरक्षित कर ली हैं।
विभिन्न रेल जोनों का आपसी समन्वय और संसाधनों का साझाकरण
कोहरे की इस जंग में भारतीय रेलवे के विभिन्न जोन एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। उत्तर रेलवे की मदद के लिए पश्चिम मध्य रेलवे से भी 20 कोच की एक वंदे भारत रेक भेजी जा रही है। इसके अतिरिक्त, पूर्व मध्य रेलवे और दक्षिण रेलवे के सहयोग से दो पूर्णतः वातानुकूलित (AC) स्पेयर रेक तैयार किए गए हैं। इन कोचों का उपयोग उन रूटों पर किया जाएगा जहां कोहरा सबसे अधिक है और ट्रेनों के कैंसिल होने की संभावना ज्यादा है। यह पहली बार है जब इतने बड़े पैमाने पर प्रीमियम ट्रेनों के लिए बैकअप रेक की व्यवस्था की गई है, ताकि “डाउन स्ट्रीम” देरी (एक ट्रेन की देरी से दूसरी ट्रेनों पर होने वाला असर) को शून्य किया जा सके।
IRCTC का ‘विशेष वॉर रूम’ और खानपान की जिम्मेदारी
ट्रेनों के लेट होने पर यात्रियों की सबसे बड़ी शिकायत खानपान और सफाई को लेकर होती है। इस समस्या के समाधान के लिए आईआरसीटीसी (IRCTC) ने एक ‘विशेष वॉर रूम’ सक्रिय किया है। यह वॉर रूम 24 घंटे काम कर रहा है और इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अगर कोई ट्रेन 2 घंटे से ज्यादा लेट होती है, तो यात्रियों को तुरंत जलपान या भोजन उपलब्ध कराया जाए।
स्पेयर रेक में भी खानपान की गुणवत्ता बनी रहे, इसके लिए ऑन-बोर्ड हाउसकीपिंग सर्विस (OBHS) और लिनन (चादर-कंबल) की व्यवस्था पहले से पुख्ता की गई है। वॉर रूम के माध्यम से यह भी ट्रैक किया जा रहा है कि वेंडर्स और कैटरिंग स्टाफ यात्रियों से निर्धारित मूल्य से अधिक न वसूलें। रेलवे का मानना है कि यात्रा में देरी एक प्राकृतिक कारण है, लेकिन उस देरी के दौरान मिलने वाली असुविधा को प्रबंधन के जरिए कम किया जा सकता है।
यात्री सुविधाओं पर विशेष ध्यान: सफाई और सूचना तंत्र
स्पेयर रेक के इस्तेमाल के दौरान अक्सर यह डर रहता है कि क्या कोचों की सफाई और सुविधाओं का स्तर वही रहेगा। रेलवे ने स्पष्ट किया है कि अतिरिक्त रेक में भी वही सुविधाएं दी जाएंगी जो मूल ट्रेन में होती हैं। सफाई के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की तैनाती की गई है। साथ ही, स्टेशनों पर अनाउंसमेंट सिस्टम को और अधिक सक्रिय किया गया है ताकि यात्रियों को हर 15 मिनट में ट्रेन की स्थिति के बारे में जानकारी मिलती रहे।
इसके अलावा, रेल मदद ऐप और सोशल मीडिया हैंडल के जरिए प्राप्त शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। रेलवे का कहना है कि कोहरे के कारण इंजन में ‘फॉग सेफ्टी डिवाइस’ का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो लोको पायलट को सिग्नल की सटीक दूरी बताता है, जिससे ट्रेन को सुरक्षा के साथ चलाया जा सके।
निष्कर्ष: तकनीक और प्रबंधन का तालमेल
उत्तर भारत की हाड़ कपाने वाली सर्दी और शून्य दृश्यता के बीच भारतीय रेलवे का यह ‘स्पेयर रेक’ और ‘वॉर रूम’ मॉडल एक सराहनीय कदम है। यह न केवल यात्रियों के समय की बचत कर रहा है, बल्कि प्रीमियम ट्रेनों की विश्वसनीयता को भी बनाए रखने में मदद कर रहा है। रेलवे की इस व्यापक तैयारी से यह स्पष्ट है कि प्रशासन अब केवल मौसम के भरोसे बैठने के बजाय, तकनीक और बेहतर प्रबंधन के जरिए चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है।