• December 30, 2025

मंत्रिमंडल गठन ने तोड़े सारे भ्रम

 मंत्रिमंडल गठन ने तोड़े सारे भ्रम

मोदी मंत्रिमंडल का गठन जरूर हो गया है लेकिन कयासों का दौर खत्म नहीं हुआ। एक बार में ही 72 सदस्यीय भारी भरकम मंत्रिमंडल की वजह लोग कुछ भी बताएं लेकिन यह नरेन्द्र मोदी की चतुराई कही जाएगी जो उन्होंने एक बारगी सारे किन्तु-परन्तु पर विराम लगा एक तीर से कई निशाने साधे। इससे न केवल सहयोगियों बल्कि भाजपा के आनुषांगिक संगठनों को भी बड़ा संदेश गया कि भले ही सीटें घटीं लेकिन मोदी की हैसियत वही है। घटक दलों के सहयोगियों का मोदी के तीसरे कार्यकाल में मंत्रिमंडल बंटवारे में मिले पद और कद से भी काफी भ्रम टूटा। साफ दिखा कि नरेन्द्र मोदी ने जो चाहा वो किया। जिस शांति और धैर्य से घटक दलों के साथ पहली बैठक हुई, प्रमुख दोनों सहयोगी नीतीश बाबू और चंद्रबाबू ने मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़े उससे राजनीतिक नब्ज टटोलने वालों की भी धड़कनें असहज हुई। हमउम्र और राजनीति में मोदी से सीनियर होने के बावजूद नीतीश का उनके पैर छूने के लिए झुकना सबको अब भी हैरान कर रहा है।

यह भ्रम ही साबित हुआ कि जेडीयू को रेल तो टीडीपी को सड़क परिवहन मंत्रालय मिलना तय है। पुरानी सरकारों में रेल मंत्रालय प्रायः गठबन्धन के सहयोगियों के खाते में रहा। मौजूदा मंत्रिमंडल में 33 नए चेहरे हैं जिनमें तीन पूर्व मुख्यमंत्री हैं। पहली बार मंत्री बनने वालों में 7 सहयोगी दलों से हैं। 7 महिलाएं भी मंत्री बनीं जिनमें 2 कैबिनेट और 5 राज्य मंत्री हैं। एक भी मुस्लिम मंत्रिमंडल में नहीं है। आजादी के बाद पहला मौका है जब मुसलमान को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। नए मंत्रिमंडल में 21 सवर्ण, 27 ओबीसी, 10 एससी, 5 एसटी, 5 अल्पसंख्यक मंत्रियों को जगह मिली।

भावुक अपीलों और जनता से कनेक्ट होने में हुनरमंद मोदी का कोई सानी नहीं। अब उन्होंने नई अपील कर विपक्ष को बहस का नया मुद्दा दे दिया। अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल से ‘मोदी का परिवार’ हटाने की गुहार लगा दी। भले ही डिस्प्ले नाम बदले लेकिन भारत की तरक्की की कोशिशों के खातिर प्रयास करने वाले एक परिवार के रूप में हमारा बंधन मजबूत और अटूट है। इशारा अबकी बार एनडीए सरकार की ओर तो था ही साथ ही गठबन्धन के सहयोगियों को भी बता दिया कि अब वो कितने अहम हैं?

इसी बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान को देखना होगा जिसमें उन्होंने मणिपुर में शांति बहाली नहीं होने पर चिंता व्यक्त जताई। यह बयान शायद भाजपा प्रमुख नड्डा के उस बयान का जवाब लगता है जिसमें उन्होंने कहा था कि भाजपा अब अपने पैरो पर खड़ी है। भागवत के बाद संघ के बड़े नेता इंद्रेश कुमार का बयान भी सुर्खियों में रहा जिसमें उन्होंने भी भाजपा की टॉप लीडरशिप पर निशाना साधा। हालांकि इस पर सफाई भी आई। अब सबकी निगाहें लोकसभा अध्यक्ष पर हैं। जिस पर फिर कयासों का दौर शुरू हो गया है। निश्चित रूप से विविधताओं से भरे भारत देश और उसकी राजनीति में मतांतर नए नहीं है। इसीलिए कभी लगता है कि मोदी के नेतृत्व की एनडीए सरकार बेहद मजबूत है तो कभी लगता है कि भाजपा और उसके अपने महत्वपूर्ण आनुषांगिक दल ही क्यों खफा हैं।

आंध्र प्रदेश विधानसभा में गजब का प्रदर्शन करते हुए टीडीपी-भाजपा गठबंधन ने बड़े बहुमत वाली जीत हासिल की। दोनों का एजेण्डा सबको पता है। टीडीपी मुस्लिम आरक्षण, परिसीमन, सीएए, अमरावती के विकास और विशेष दर्जे पर तबज्जो चाहेगी तो कमोवेश जेडीयू भी बिहार में ऐसे ही एजेंडे के साथ अगले साल विधानसभा चुनाव में जाएगी। महाराष्ट्र में तो अभी चुनाव होने हैं। इन हालातों में महत्वपूर्ण घटक कब तक भाजपा के हमराह रहेंगे? जबकि महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश सहित बिहार में पद और कद पर कई बातें होनी शुरू हो गई हैं।

मंत्रिमंडल गठन के बाद विभाग वितरण से लोग भौंचक्का हैं कि यह कैसा जादू? क्या सचमुच राजनीति में मंजे दोनों बाबू न केवल मोदी के साथ हैं बल्कि ब्रान्ड मोदी के दो हाथ हैं? बहुमत का आंकड़ा न छू पाने के बावजूद मंत्रिमंडल बंटवारे में दिखी मोदी के मन की बात ने क्या सभी का लोहा मनवा लिया? हालांकि चंद्रबाबू नायडू के शपथ ग्रहण में नीतीश का न जाना फिर चर्चाओं में है। लेकिन इटली में जी-7 सम्मेलन में बिना सदस्य रह कर भी विशेष रूप से प्रधानमंत्री को बुलाना और दुनिया के शीर्ष नेताओं से मेल-मुलाकात के बाद मोदी की नई छवि और कार्यप्रणाली को लेकर राजनीतिक चर्चाओं ने नया मोड़ जरूर ले लिया है। लेकिन देश के अंदर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब और दक्षिण के चुनाव परिणामों के मायने पर भी जानकारों की राय बंटी हो सकती है। लेकिन यह सच है कि असल परीक्षा के लिए लोकसभा के नियमित सत्र और नए अध्यक्ष तक इंतजार करना ही होगा।

नई परिस्थितियों में खुद की छवि को बजाए मसीहाई दिखाने के बड़ी सहजता और विनम्रता से लबरेज दिखाकर भी प्रधानमंत्री मोदी नई एनडीए सरकार के वैसे ही सख्त मुखिया दिख रहे हैं जैसे बीते दोनों कार्यकाल में रहे। लोग तब और अब में फर्क भले ढूंढें लेकिन यह कब दिखेगा, कोई नहीं जानता। फिलहाल 30 जून का इंतजार है जब मन की बात के जरिए तीसरे कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी का पहला संबोधन क्या होगा?

Digiqole Ad

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *