• December 25, 2025

बुलंदशहर हाईवे दरिंदगी केस: 9 साल बाद मां-बेटी को मिला न्याय, सभी 5 दोषियों को आखिरी सांस तक उम्रकैद

बुलंदशहर: उत्तर प्रदेश के सबसे चर्चित और रूह कंपा देने वाले ‘बुलंदशहर हाईवे गैंगरेप कांड’ में सोमवार को न्याय की अंतिम मुहर लग गई। 28 जुलाई 2016 की उस काली रात को नेशनल हाईवे-91 पर जिस परिवार के साथ हैवानियत हुई थी, उसे करीब नौ साल बाद अदालत ने राहत दी है। विशेष पॉक्सो न्यायाधीश ओपी वर्मा ने इस मामले के पांचों जीवित दोषियों को ‘उम्रकैद’ की सजा सुनाई है। यह सजा केवल साधारण उम्रकैद नहीं है, बल्कि अदालत ने स्पष्ट किया है कि दोषियों को अपनी अंतिम सांस तक जेल की सलाखों के पीछे ही रहना होगा।

जहां पीड़ित परिवार ने दोषियों के लिए फांसी की मांग की थी, वहीं सजा सुनने के बाद अपराधियों के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं दिखा। दोषियों ने अदालत परिसर में खुद को बेकसूर बताते हुए नारेबाजी की और कहा कि उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया है। हालांकि, सीबीआई द्वारा पेश किए गए पुख्ता सबूतों और गवाहों के बयानों ने उनके दावों को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया।

वह काली रात: फ्लाईओवर के पास मौत का तांडव

इस जघन्य वारदात की पृष्ठभूमि 28 जुलाई 2016 की रात से जुड़ी है। नोएडा में रहने वाला एक परिवार कार से अपने पैतृक गांव शाहजहांपुर में एक तेरहवीं संस्कार में शामिल होने जा रहा था। कार में कुल छह लोग सवार थे, जिनमें 14 वर्षीय किशोरी, उसके माता-पिता, ताई-ताऊ और चचेरा भाई शामिल थे।

देहात कोतवाली क्षेत्र के अंतर्गत दोस्तपुर फ्लाईओवर के पास घात लगाए बैठे बावरिया गिरोह के बदमाशों ने एक खतरनाक चाल चली। बदमाशों ने चलती कार पर लोहे की कोई भारी वस्तु फेंकी, जिससे चालक को लगा कि गाड़ी में कोई बड़ी खराबी आ गई है। जैसे ही कार रुकी, हथियारों से लैस बदमाशों ने पूरे परिवार को बंधक बना लिया। बदमाशों ने बेरहमी दिखाते हुए परिवार के तीनों पुरुषों के हाथ-पैर बांध दिए और उन्हें सड़क के दूसरी तरफ एक सुनसान खेत में ले गए। वहां बदमाशों ने मां और उसकी 14 साल की मासूम बेटी के साथ बारी-बारी से सामूहिक दुष्कर्म किया। दरिंदगी यहीं नहीं रुकी, हैवानों ने परिवार के पास मौजूद नकदी और गहने भी लूट लिए और उन्हें उसी हाल में छोड़कर फरार हो गए।

सीबीआई जांच और बावरिया गिरोह का पर्दाफाश

वारदात के बाद देशभर में जनाक्रोश भड़क उठा था। तत्कालीन सरकार और पुलिस प्रशासन पर भारी दबाव के बीच मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने अपनी तफ्तीश में पाया कि यह वारदात पेशेवर अपराधी गिरोह ‘बावरिया गैंग’ का काम था। जांच एजेंसी ने कड़ी मशक्कत के बाद गैंग के सक्रिय सदस्यों को दबोचा।

सीबीआई की पहली चार्जशीट में कन्नौज के इटखारी बिनौरा निवासी जुबैर (उर्फ सुनील), सलीम (उर्फ दीवानजी) और साजिद के नाम शामिल थे। इसके बाद दूसरी चार्जशीट में फर्रुखाबाद के धर्मवीर (उर्फ राका), नरेश (उर्फ संदीप) और सुनील (उर्फ सागर) के नाम जोड़े गए। इस मामले में कुल छह आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चला। हालांकि, सुनवाई के दौरान ही एक मुख्य आरोपी सलीम की करीब चार साल पहले बुलंदशहर जेल में बीमारी के कारण मृत्यु हो गई, जिसके बाद पांच आरोपियों पर फैसला आना बाकी था।

जेल में कटी बेचैन रात: सजा के डर से नहीं उतरी हलक से रोटी

शनिवार को जब अदालत ने इन पांचों को दोषी करार दिया, तो उन्हें तुरंत हिरासत में लेकर बुलंदशहर जिला जेल की बैरक संख्या 11बी में स्थानांतरित कर दिया गया। जेल सूत्रों के अनुसार, सजा के एलान से पहले की रात इन पांचों दोषियों के लिए बेहद भारी रही। जो बदमाश हाईवे पर बेखौफ होकर हैवानियत कर रहे थे, सजा के खौफ ने उनकी भूख और नींद उड़ा दी थी।

शनिवार शाम जब बैरक में खाना पहुंचा, तो किसी भी दोषी ने उसे ठीक से नहीं खाया। मन में डर इस कदर था कि किसी ने थाली किनारे रख दी तो किसी ने महज आधी रोटी तोड़ी। रातभर बैरक के भीतर से उनके फुसफुसाने और चर्चा करने की आवाजें आती रहीं। हरियाणा की नूंह जेल से लाए गए धर्मवीर, नरेश और सुनील आपस में इस बात को लेकर कयास लगाते रहे कि क्या उन्हें फांसी होगी या उम्रकैद। जेल कर्मियों के अनुसार, उनके चेहरों पर पहली बार वह सन्नाटा और खौफ दिखा जो उन्होंने अपने पीड़ितों को दिया था।

अदालत का फैसला और न्याय की जीत

सोमवार को कड़ी सुरक्षा के बीच जब दोषियों को अदालत में पेश किया गया, तो पूरे परिसर में सन्नाटा पसरा था। विशेष पॉक्सो न्यायाधीश ने सीबीआई द्वारा प्रस्तुत डीएनए साक्ष्यों, पहचान परेड और पीड़ितों के बयानों को आधार मानते हुए इसे ‘दुर्लभतम’ श्रेणी का अपराध माना। हालांकि कानून की बारीकियों को देखते हुए अदालत ने उन्हें फांसी के बजाय ‘प्राकृतिक जीवन के अंत’ तक उम्रकैद की सजा सुनाई।

अभियोजन पक्ष (CBI) के वकीलों ने तर्क दिया कि यह हमला केवल एक परिवार पर नहीं, बल्कि समाज की सुरक्षा व्यवस्था पर था। रात के अंधेरे में हाईवे पर सफर करने वाले परिवारों के मन में इस घटना ने जो दहशत भरी थी, उसे केवल सख्त सजा से ही कम किया जा सकता था।

निष्कर्ष: हाईवे सुरक्षा और सामाजिक संदेश

बुलंदशहर हाईवे कांड का यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में एक मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है। 9 साल का लंबा समय जरूर लगा, लेकिन अंततः सत्य की जीत हुई। यह मामला उत्तर प्रदेश में हाईवे पेट्रोलिंग और महिलाओं की सुरक्षा के दावों पर एक बड़ा सबक है। दोषियों को मिली उम्रकैद की सजा बावरिया जैसे खूंखार गिरोहों के लिए एक कड़ा संदेश है कि कानून के हाथ लंबे होते हैं और देर से ही सही, अपराध का अंत सलाखों के पीछे ही होता है। पीड़ित परिवार ने हालांकि फांसी की उम्मीद जताई थी, लेकिन दोषियों के पूरी जिंदगी जेल में रहने के फैसले ने उन्हें एक मानसिक सुकून जरूर दिया है।

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