भाजपा की 2026 विधानसभा चुनावों की तैयारी: तमिलनाडु और असम के लिए प्रमुख नियुक्तियां
नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए तमिलनाडु और असम राज्यों के लिए चुनाव प्रभारी और सह-प्रभारियों की घोषणा कर दी है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह द्वारा जारी आधिकारिक पत्र के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इन नियुक्तियों को मंजूरी दी है।
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल को तमिलनाडु विधानसभा चुनाव का प्रभारी नियुक्त किया गया है। उनके साथ सह-प्रभारी के रूप में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल कार्य करेंगे।
वहीं, असम विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत जय पांडा (विजयंत पांडा) को प्रभारी बनाया गया है। सह-प्रभारी के रूप में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुनील कुमार शर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री दर्शना बेन जरडोश को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
ये नियुक्तियां 14 दिसंबर 2025 को घोषित की गईं, जो भाजपा की चुनावी रणनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ हैं। दोनों राज्य 2026 में विधानसभा चुनावों का सामना करेंगे—तमिलनाडु में अप्रैल-मई और असम में मार्च-अप्रैल के आसपास।
तमिलनाडु: द्रविड़ राजनीति में भाजपा की चुनौती
तमिलनाडु की 234 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा लंबे समय से अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। राज्य की राजनीति पारंपरिक रूप से द्रविड़ पार्टियों—डीएमके और एआईएडीएमके—के बीच घूमती रही है। 2021 के चुनावों में डीएमके गठबंधन ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया था, जबकि भाजपा को सीमित सफलता मिली।
2024 लोकसभा चुनावों में डीएमके-led इंडिया गठबंधन ने सभी 39 सीटें जीत लीं, जबकि एआईएडीएमके और भाजपा अलग-अलग लड़कर कोई सीट नहीं जीत सके। हालांकि, अप्रैल 2025 में एआईएडीएमके और भाजपा ने फिर गठबंधन की घोषणा की, जिसमें एडप्पादी के. पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया। यह गठबंधन डीएमके की सत्ता-विरोधी लहर और भ्रष्टाचार के आरोपों पर फोकस कर रहा है।
पीयूष गोयल की नियुक्ति को भाजपा की दक्षिण भारत में विस्तार की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। गोयल, एक अनुभवी नेता और चार्टर्ड अकाउंटेंट, पहले भी तमिलनाडु के चुनाव प्रबंधन में शामिल रहे हैं। उनकी संगठनात्मक क्षमता और केंद्रीय मंत्री के रूप में अनुभव से पार्टी को बूथ-स्तरीय मजबूती, गठबंधन प्रबंधन और डेटा-आधारित कैंपेन में मदद मिलेगी। सह-प्रभारियों में मेघवाल और मोहोल की जोड़ी दलित और युवा वर्ग में पहुंच बढ़ाने का काम करेगी।
भाजपा की रणनीति में हिंदुत्व, विकास और राष्ट्रवाद के मुद्दे प्रमुख हैं। पार्टी राज्य में बूथ-स्तरीय समितियां मजबूत कर रही है और शहरी तथा औद्योगिक क्षेत्रों में आधार बढ़ाने पर जोर दे रही है। अभिनेता विजय की नई पार्टी तमिलगा वेट्री कड़गम (टीवीके) भी मैदान में है, जो वोट विभाजन का कारक बन सकती है। विशेष मतदाता सूची संशोधन (एसआईआर) को लेकर डीएमके और विपक्ष के बीच विवाद भी चुनावी माहौल गरमा रहा है।
असम: सत्ता बचाने की जंग
असम की 126 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा सत्ता में है। 2021 में एनडीए ने बहुमत हासिल किया और हिमंता बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री बने। पार्टी का लक्ष्य तीसरी बार सत्ता हासिल करना है, जिसमें 100+ सीटों का दावा किया जा रहा है।
बैजयंत पांडा की नियुक्ति असम में भाजपा की मजबूत स्थिति को और सुदृढ़ करेगी। पांडा, ओडिशा से चार बार सांसद रहे और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, पहले भी असम और अन्य राज्यों के चुनाव प्रबंधन में सफल रहे हैं। उनकी रणनीतिक समझ से गठबंधन (एजीपी और यूपीपीएल के साथ) और अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में पहुंच बढ़ेगी।
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के नेतृत्व में भाजपा विकास, अवैध घुसपैठ विरोध और स्वदेशी पहचान पर जोर दे रही है। हाल की पंचायत और बीटीसी चुनावों में एनडीए की मजबूत प्रदर्शन से पार्टी का मनोबल ऊंचा है। कांग्रेस, गौरव गोगोई के नेतृत्व में पुनर्गठन कर रही है, लेकिन भाजपा इसे कमजोर बता रही है। मुस्लिम बहुल सीटों पर भी भाजपा दावा कर रही है, जहां “सभी को न्याय, किसी को तुष्टिकरण नहीं” का नारा चल रहा है।
भाजपा की बड़ी तस्वीर
ये नियुक्तियां भाजपा की 2026 की महत्वाकांक्षी योजनाओं का हिस्सा हैं। पार्टी दक्षिण में पैठ और पूर्वोत्तर में सत्ता बनाए रखने पर फोकस कर रही है। जेपी नड्डा के नेतृत्व में संगठनात्मक मजबूती, गठबंधन प्रबंधन और डेटा-ड्रिवन कैंपेन पर जोर है। तमिलनाडु में एआईएडीएमके के साथ गठबंधन और असम में मौजूदा एनडीए को मजबूत करना प्रमुख रणनीति है।
चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि ये कदम भाजपा को दोनों राज्यों में मजबूत स्थिति दिला सकते हैं। हालांकि, डीएमके की सत्ता-विरोधी लहर न होना और कांग्रेस का पुनरुत्थान चुनौतियां हैं। आने वाले महीनों में कैंपेन की तीव्रता और गठबंधन की मजबूती तय करेगी कि 2026 में कौन बाजी मारता है।