बिहार चुनाव का तूफान: पप्पू यादव ने लालू-तेजस्वी पर साधा निशाना, कहा- नेता जानवरों से भी बदतर
नई दिल्ली, 17 अक्टूबर 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियां तेज हो रही हैं, जहां जाति-धर्म की राजनीति और टिकटों की खरीद-फरोख्त ने सियासी माहौल को गरमा दिया है। एक मीडिया चैनल के कार्यक्रम में पूर्णिया के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने खुलकर अपनी बात रखी, जो बिहार की राजनीति को नई बहस थमा गई। उन्होंने लालू प्रसाद यादव की तारीफ की, तो तेजस्वी पर तंज कसे। स्वयं को बिहार का सेवक बताते हुए पप्पू ने कहा कि वे किसी भीड़ के मोहताज नहीं। लेकिन यह बयानबाजी सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य से जुड़ी चुनौतियों को उजागर करती है। क्या यह पप्पू का विद्रोह है या महागठबंधन में दरार? आइए, जानते हैं इस विवादास्पद बयानबाजी के पीछे की पूरी कहानी और इसका चुनाव पर क्या असर पड़ सकता है।
मीडिया मंच पर खुली बयानबाजी: पप्पू का लालू-तेजस्वी पर तीखा प्रहार
मीडिया चैनल के एक कार्यक्रम में पूर्णिया सांसद पप्पू यादव ने बिहार की राजनीति पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा, “मुझे राजनीति नहीं आती। आज की राजनीति में सिर्फ हिंदू-मुसलमान हैं। 10-12 करोड़ में टिकट बिक रहे हैं। नेता से अच्छे जानवर हैं।” पप्पू ने खुद को बिहार का बेटा और सेवक बताया, जो डेडलाइन में पूर्णिया एयरपोर्ट लाने जैसे काम कर चुके हैं। जब उनसे लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी के बीच तुलना पूछी गई, तो उन्होंने कहा, “लालू यादव तेजस्वी से कई गुना बेहतर हैं। तेजस्वी इस जन्म में तो लालू यादव नहीं बन सकते।” हालांकि, उन्होंने तेजस्वी को सम्मान देते हुए जोड़ा कि उनका संस्कार ऐसा है। पप्पू ने तेजस्वी को जननायक न बताते हुए कर्पूरी ठाकुर को असली जननायक कहा। यह बयान महागठबंधन में फूट की आशंका जगा रहा है, खासकर जब बिहार चुनाव के दो चरण 6 और 11 नवंबर को हैं। कार्यक्रम में नेताओं का जमावड़ा लगा रहा, जहां जातीय समीकरणों पर बहस हुई। पप्पू की यह मुखरता विपक्षी एकता को चुनौती दे सकती है। बिहार के वोटरों के बीच यह चर्चा तेज हो रही है, जो 14 नवंबर की मतगणना को रोचक बना सकती है। कुल मिलाकर, पप्पू ने अपनी छवि एक बेबाक नेता की बनाई।
गरीबों का मसीहा: पप्पू की मदद की अनकही कहानियां
कार्यक्रम में पप्पू यादव ने अपनी छवि एक सेवक के रूप में मजबूत की। उन्होंने कहा, “पप्पू यादव नचाता है, नाचता नहीं। मैं किसी भीड़ का मोहताज नहीं हूं। सच्चाई के रास्ते पर चलता हूं।” ताकतवरों से वोट न मांगने का दावा करते हुए उन्होंने बाढ़ और कोरोना जैसी विपत्तियों में गरीबों की मदद का जिक्र किया। “बाढ़ में हर घर को अपना समझा, कोरोना में मदद से पहले जाति नहीं पूछी। हमेशा गरीबों की मदद की है।” पप्पू ने जोड़ा कि उनके सबसे अच्छे रिश्ते हैं और उन्हें किसी का टिकट नहीं चाहिए। खुद को भगवान कृष्ण का वंशज बताते हुए उन्होंने कहा, “मेरे संस्कार बुद्ध के हैं। हर जाति के गरीबों से प्यार करता हूं, हर जाति के यूथ के लिए जीना चाहता हूं।” मदद से पहले जाति या राज्य न पूछने का उनका दावा सुनकर श्रोता प्रभावित हुए। रोबिनहुड या मसीहा बनने का शौक न होने का बयान देते हुए उन्होंने अपनी राजनीति को सामाजिक न्याय से जोड़ा। यह बयानबाजी बिहार के पिछड़े इलाकों में गूंज रही है, जहां पप्पू की जन अधिकार पार्टी का आधार मजबूत है। चुनावी माहौल में यह गरीबी और जातिवाद पर नया विमर्श छेड़ सकता है। पप्पू की यह शैली विपक्षी दलों को सोचने पर मजबूर कर रही है।
चुनावी संदर्भ: बिहार की सियासत में पप्पू की भूमिका
पप्पू यादव के बयान बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं, जहां पहला चरण 6 नवंबर और दूसरा 11 नवंबर को होगा। मतगणना 14 नवंबर को है। कार्यक्रम में उन्होंने महागठबंधन की आंतरिक कलह को उजागर किया, जो एनडीए के लिए फायदेमंद हो सकता है। पप्पू ने कहा कि वे बिहार के लिए लड़ते हैं, न कि सत्ता के लिए। उनकी टिप्पणी लालू परिवार पर केंद्रित रही, जो आरजेडी का चेहरा है। तेजस्वी को जननायक न मानने का बयान विपक्षी गठबंधन में दरार दिखाता है। पप्पू ने खुद को सभी जातियों का समर्थक बताया, जो बिहार के जटिल जातीय समीकरणों को ध्यान में रखता है। कार्यक्रम में अन्य नेताओं के साथ बहस ने मुद्दों को उछाला, जैसे विकास, बेरोजगारी और आरक्षण। पप्पू की मुखरता से कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों में असहजता बढ़ सकती है। बिहार के वोटर, खासकर युवा और गरीब, पप्पू जैसे बेबाक नेताओं की ओर आकर्षित हो सकते हैं। यह चुनाव न केवल सत्ता की लड़ाई, बल्कि सामाजिक न्याय की भी होगी। पप्पू का यह मंच राज्य की राजनीति को नई दिशा दे सकता है।
