• December 27, 2025

हवाई और रेल यात्रा की कब सुध ली जाएगी?

 हवाई और रेल यात्रा की कब सुध ली जाएगी?

आमजन की यात्रा सुविधा के नाम पर संचालित सरकारी सेवाएं बेहद गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कर रही हैं। चाहे हवाई यात्रा हो या रेल, हर रोज करोड़ों लोग परेशान हो रहे हैं। इनमें वो भी हैं जिन्हें हर हालत में अपनी नियत तिथि पर वांछित गंतव्य पर पहुंचना होता है और वो भी जिन्हें दो कनेक्टिविटी के सहारे यात्रा पूरी करनी पड़ती है। भारत में सही समय पर यात्रा पूरी होने की न तो किसी की गारंटी है और न ही कोई इस बदहाली को चुनौती ही दे सकता है। हर रोज पूरे देश में बड़ी संख्या में हवाई और रेल सेवाएं लेटलतीफी का शिकार हो रही हैं। जिसके जवाब में प्री रिकॉर्डेड चार शब्द ‘असुविधा के लिए खेद है’ काफी हैं। इन दिनों तो घने कोहरे के चलते स्थिति और भी बदतर है।

देश में औसतन ढाई से तीन हजार फ्लाइट्स रोजाना लगभग 4,56,000 यात्रियों को मुकाम तक पहुंचाती हैं। वहीं 8 अक्टूबर 2023 का एक आंकड़ा बताता है कि रेलवे रोजाना 22,593 ट्रेनें चलाता है जिनमें 13,452 यात्री ट्रेनों से औसतन 2.40 करोड़ यात्री सफर करते हैं, बाकी 9141 मालगाड़ियां हैं। बसों और निजी वाहनों से सफर करने वालों की संख्या जोड़ दें यह कई गुना बढ़ जाएगी।

अभी हवाई और रेल सेवा कोहरे के चलते ऐसी चरमराई हुई है कि पूछिए मत। अकेले दिल्ली से रोजाना 1400 उड़ानें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानें संचालित होती हैं। कोहरे से हालात ऐसे हैं कि कई-कई दिन सूर्यदेव दर्शन नहीं देते, कोहरा छाया रहता है। ऐसे क्या टेक ऑफ, क्या लैण्ड सभी उड़ानों को रद्द, री-शिड्यूल या डायवर्ट करना पड़ता है। पूरे देश का यही हाल है। अभी दो दिन पहले 13 जनवरी को घने कोहरे के चलते मुंबई-गुवाहाटी उड़ान को बांग्लादेश के ढाका में इमरजेंसी लैंडिंग खातिर मजबूर होना पड़ा। इसमें फंसे यात्री बिना पासपोर्ट के अंतरराष्ट्रीय सीमा तो पार कर गए लेकिन कई घंटे हवाई जहाज में बैठे रहे। विदेशी धरती पर कैसे उतरते? कोहरे की मार से हमारे सभी हवाई अड्डे प्रभावित हैं। ऐसे में महंगी और सही वक्त पर पहुंचने के खातिर हवाई यात्राओं के भी कोई मायने नहीं।

कमोबेश इससे भी बदतर हालत यात्री ट्रेनों की है। कोहरे की मार से रोजाना आधे से ज्यादा रेल यात्री परेशान होते हैं। जहां कोरोना के चलते रद्द कई ट्रेन शुरू नहीं हो पाईं वहीं जो चलीं वो भी कई तरह के सुधार और सुविधाओं के नाम पर रद्द, लेट या री-शिड्यूल हो रही हैं। बिलासपुर जोन ने तो ट्रेनों के रद्द करने का देश में कीर्तिमान ही बना डाला। यहां कुछ सालों में हजारों जोड़ी ट्रेन रद्द हुईं। कोयला, दूसरी खदानों व पॉवर सेक्टर वाले बिलासपुर जोन में आने-जाने वाले लाखों यात्रियों को लेटलतीफी या एकाएक ट्रेन कैंसिल होने से असहनीय परेशानी होती है। अभी यात्री गाड़ियों के खातिर कोहरे का बहाना है और मालगाड़ियां पूरी रफ्तार में हैं।

आखिर हवाई और रेल यात्रियों की सुध लेगा कौन? उनकी परिस्थिति और मानसिक स्थिति को कौन समझेगा? आगे की यात्रा के लिए दो-तीन घण्टे की मार्जिन रख, कनेक्टिंग फ्लाइट्स या ट्रेन की कंफर्म टिकट लेकर महीनों पहले अपना कार्यक्रम तय कर चुके लोग ऐन वक्त पर चार शब्दों के जवाब ‘असुविधा के लिए खेद है’ से निपटा दिए जाते हैं और भुक्तभोगी अपना सिर नोचने के कुछ नहीं कर पाता।

चाहे विमानन सेक्टर हो या रेलवे इन्हें पता होता है कि कब से कब कोहरा तो कब बारिश और कब गर्मी होगी। लेकिन जानकर भी न निपट पाने की ढिठाई इस हाईटेक और आर्टिफीशियल इण्टेलीजेंस के जमाने में समझ से बाहर है। कोहरे से कम विजिबिलिटी में विमान उड़ाने और उतारने के लिए पायलटों को सीएटी-3बी जैसे प्रशिक्षित होना जरूरी है। इसमें मुख्य पायलट को 2,500 घंटे और को पायलट को 500 घंटे उड़ान का अनुभव हो। यह अत्यधिक खर्चीला है। कंपनियों को पायलट को सवैतनिक छुट्टी देकर दूसरे खर्च भी उठाने पड़ते हैं, जो नहीं होता। कैट-3बी तकनीक के रनवे भी अलग बनते हैं ताकि घने कोहरे में भी विमान उतर सकें। ये देश में ज्यादा नहीं हैं। इसमें एडवांस्ड इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (आइएलएस), एयरफील्ड ग्राउंड लाइट्स (एजीएल), मौसम संबंधी उपकरण जैसे ट्रांसमीसोमीटर, ऑटोमैटिक वेदर ऑब्जर्वेटरी स्टेशन (एडब्ल्यूओएस), सरफेस मूवमेंट रडार (एसएमआर) और अन्य नेविगेशनल उपकरण लगते हैं। सबका संचालन व रखरखाव कठिन और खर्चीला है। अभी देश में कुल छह दिल्ली, जयपुर, अमृतसर, लखनऊ, कोलकाता और कैम्पागौड़ा हवाई अड्डा कैट-3-बी तकनीक से लैस है। सोचिए, दिल्ली में कैट-3-बी रनवे केवल एक है। इनमें 50 मीटर की विजिबिलिटी पर विमान का उतरा और 125 मीटर की विजिबिलिटी पर टेक-ऑफ किया जा सकता है। अभी अमूमन लैंडिंग खातिर 550 मीटर और टेक-ऑफ हेतु 300 मीटर विजिबिलिटी जरूरी है।

यही स्थिति रेलवे की है। इसी 4 जनवरी को सरकार के अधीन डीडी न्यूज ने अपनी वेबसाइट पर शीर्षक ‘कोहरे से ट्रेन यात्रा नहीं होगी प्रभावित, करीब 20 हजार फॉग डिवाइस से लैस हुई भारतीय रेलवे’ से एक जानकारी अपलोड की। जिसमें बताया कि कोहरे से ट्रेन यात्रा प्रभावित नहीं होगी, क्योंकि 20 हजार फॉग डिवाइस से भारतीय रेलवे लैस हो चुका है। आगे लिखा कि कोहरे के दौरान सुचारू रेल परिचालन सुनिश्चित करने के लिए 19,742 जीपीएस आधारित पोर्टेबल फॉग पास डिवाइस उपलब्ध कराए हैं। ये लोको पायलटों को सिग्नल, लेवल क्रॉसिंग गेट और स्थायी गति प्रतिबंधों जैसे चिन्हित स्थलों के स्थान के बारे में ऑन-बोर्ड वास्तविक समय की जानकारी प्रदान कराता है। इस पहल को ट्रेन सेवाओं की विश्वसनीयता में सुधार, देरी को कम करने और समग्र यात्री सुरक्षा को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी बताया। मध्य रेलवे में 560, पूर्वी रेलवे में 1103, पूर्व मध्य रेलवे में 1891, पूर्वी तटीय रेलवे में 375, उत्तर रेलवे में 4491, उत्तर मध्य रेलवे में 1289, पूर्वोत्तर रेलवे में 1762, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे में 1101, उत्तर पश्चिम रेलवे में 992, दक्षिण मध्य रेलवे में 1120, दक्षिण पूर्व रेलवे में 2955, दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में 997, दक्षिण पश्चिम रेलवे में 60 और पश्चिम मध्य रेलवे में 1046 फॉग पास डिवाइस उपलब्धि का दावा भी किया।

सवाल यह कि तकनीक के इस दौर में जहां हम चन्द्रयान और सूर्य के रहस्य के लिए अनजाने अंतरिक्ष में अपने यान सफलता पूर्वक भेज देते हैं लेकिन अपनी धरती, अपने आसमान के बीच का धुंधलका दूर करने के जतन में हर साल सैकड़ों करोड़ बर्बाद करने के बाद भी कुछ हासिल नहीं कर पा रहे हैं? हैरानी है कि दोनों बड़ी ट्रेवल एजेंसी यानी एयरपोर्ट और ट्रेनों के संचालन में बाधा बने मामूली कोहरे से नहीं निपट पाना चिंताजनक, दुखी और परेशान करने वाला है।

Digiqole Ad

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *