“भूला हुआ अध्याय” या SC का अपमान? जूता फेंकने की घटना पर CJI गवई की शांत प्रतिक्रिया, साथी जजों का गुस्सा
नई दिल्ली, 9 अक्टूबर 2025: सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में अभी भी 6 अक्टूबर की वह घटना गूंज रही है, जब एक वकील ने CJI बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की। धार्मिक टिप्पणी से आहत होकर किया गया यह कृत्य न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल खड़ा कर गया। CJI ने इसे सौंपकर ‘भूला हुआ अध्याय’ बता दिया, लेकिन साथी जजों ने इसे मजाक नहीं, बल्कि SC का अपमान ठहराया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसे अक्षम्य बताया। क्या यह घटना न्यायिक गरिमा को झकझोर देगी, या CJI की उदारता से सब शांत हो जाएगा? वकील राकेश किशोर पर कार्रवाई हो चुकी है, लेकिन बहस जारी है—क्या धार्मिक भावनाएं कोर्टरूम में घुस आईं? आइए, इसकी परतें खोलें, जहां शांति और आक्रोश की जंग साफ नजर आ रही।
घटना का फ्लैशबैक: 6 अक्टूबर को SC में जूता फेंकने का हादसा
6 अक्टूबर की सुबह सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट नंबर 1 में हंगामा मच गया। सुबह करीब 11:35 बजे, जब CJI बी.आर. गवई अपनी बेंच पर सुनवाई कर रहे थे, तब 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने अचानक अपना स्पोर्ट्स शू उतारकर CJI की ओर फेंक दिया। जूता बेंच तक नहीं पहुंचा, लेकिन कोर्टरूम में सनसनी फैल गई। किशोर चिल्ला रहे थे, “सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान!” सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत उन्हें पकड़ लिया और बाहर घसीट लिया। यह सब एक सामान्य सुनवाई के दौरान हुआ, जब CJI जस्टिस के. विनोद चंद्रन के साथ थे। किशोर दिल्ली के मयूर विहार के रहने वाले हैं और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के रजिस्टर्ड मेंबर। घटना का बैकग्राउंड? 16 सितंबर को खजुराहो के जावरी मंदिर में क्षतिग्रस्त भगवान विष्णु की मूर्ति बहाली की PIL खारिज करते हुए CJI ने कहा था, “जाइए, खुद मूर्ति से पूछ लीजिए कि अब क्या हो।” यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जहां इसे हिंदू भावनाओं का अपमान बताया गया। किशोर ने बाद में कहा कि वे 16 सितंबर से सो नहीं पाए। SCBA ने इसे “reprehensible act” करार दिया, जबकि CJI शांत रहे— “इग्नोर करो, डिस्ट्रैक्ट मत होना।” यह घटना न्यायपालिका के इतिहास में काला धब्बा बन गई, जहां एक वकील ने कोर्ट को धार्मिक रंग दे दिया। कुल मिलाकर, यह हादसा SC की सुरक्षा और धार्मिक संवेदनशीलता पर सवाल उठा रहा।
CJI गवई की प्रतिक्रिया: ‘भूला हुआ अध्याय’ कहकर आगे बढ़े, कोई कार्रवाई नहीं
घटना के तुरंत बाद CJI बी.आर. गवई ने अपनी गरिमा बनाए रखी। उन्होंने बेंच से कहा, “ये चीजें मुझे प्रभावित नहीं करतीं,” और सुनवाई जारी रखी। 7-8 अक्टूबर को अपनी अगली सुनवाई में CJI ने इसे ‘भूला हुआ अध्याय’ (forgotten chapter) ठहराया। जस्टिस के साथ बोलते हुए वे बोले, “मैं और मेरे विद्वान भाई सोमवार को जो हुआ उससे स्तब्ध हैं, लेकिन हमारे लिए यह भूला हुआ अध्याय है।” CJI ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि किशोर पर कोई कार्रवाई न हो—उन्हें तीन घंटे बाद रिहा कर दिया गया, जूते और दस्तावेज लौटा दिए। CJI ने मीडिया से कहा, “कुछ टेबल पर गिर गया होगा, मुझे कुछ लगा ही नहीं।” उनकी यह उदारता की तारीफ हो रही, लेकिन आलोचना भी—क्या यह नरमी न्यायिक गरिमा को कमजोर करेगी? बाद में CJI ने खजुराहो टिप्पणी पर सफाई दी, “मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं।” Z+ सिक्योरिटी वाले CJI के इस रुख ने साबित किया कि वे दबाव में नहीं झुकते।
साथी जजों का गुस्सा और कानूनी कार्रवाई: ‘मजाक नहीं, SC का अपमान’
CJI की शांति के उलट, साथी जजों ने सख्त रुख अपनाया। जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने सुनवाई के दौरान असहमति जताई, कहा, “इस पर मेरे अपने विचार हैं। वह CJI हैं, यह मजाक की बात नहीं है। यह सर्वोच्च न्यायालय का अपमान है।” जस्टिस भुइयां ने इसे गंभीर बताते हुए एकजुट बयान की मांग की। SCBA ने “profound shock” जताया, जबकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने किशोर को तुरंत सस्पेंड कर दिया— “यह कोर्ट की गरिमा के विपरीत है, Advocates Act का उल्लंघन।” BCI चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा ने कहा, “प्राइमा फेसी मटेरियल से साफ है कि यह अस्वीकार्य।” दिल्ली पुलिस ने किशोर से पूछताछ की, लेकिन CJI के निर्देश पर रिहा कर दिया। किशोर ने बाद में कहा, “कोई पछतावा नहीं, CJI ने सनातन का मजाक उड़ाया।” PM मोदी समेत नेताओं ने इसे “लोकतंत्र पर हमला” बताया। विश्लेषक कहते हैं, यह घटना धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकती है। जस्टिस भुइयां की टिप्पणी पर CJI ने दोहराया, “भूला हुआ अध्याय।” कुल मिलाकर, जजों का आक्रोश SC की एकता दिखा रहा, लेकिन CJI की नरमी से कार्रवाई सीमित रह गई—अब देखना है, क्या यह सबक बनेगा?
