आरबीआई की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट: वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारतीय वित्तीय तंत्र का ‘सुपरहिट’ प्रदर्शन
मुंबई। वैश्विक अर्थव्यवस्था में छाई अस्थिरता, भू-राजनीतिक तनाव और व्यापारिक युद्ध की आशंकाओं के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था एक अभेद्य किले की तरह मजबूती से खड़ी है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा बुधवार को जारी की गई ‘फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट’ (FSR) 2025 के नवीनतम संस्करण ने देश की आर्थिक सेहत की एक बेहद सकारात्मक तस्वीर पेश की है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की घरेलू मांग में जबरदस्त मजबूती और बैंकिंग क्षेत्र के ऐतिहासिक सुधारों ने देश को अंतरराष्ट्रीय झटकों से बचाने के लिए एक ‘सुरक्षा कवच’ प्रदान किया है। आरबीआई ने साफ किया है कि भारत की विकास दर न केवल स्थिर है, बल्कि यह भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए पहले से कहीं अधिक सक्षम है। यह रिपोर्ट वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (FSDC) की उप-समिति के व्यापक मूल्यांकन का परिणाम है, जो देश के वित्तीय स्वास्थ्य का सबसे विश्वसनीय पैमाना माना जाता है।
मजबूत बैंकिंग प्रणाली: मुनाफे और एसेट क्वालिटी में ऐतिहासिक सुधार
आरबीआई की एफएसआर रिपोर्ट का सबसे मुख्य आकर्षण भारतीय अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCBs) का शानदार प्रदर्शन रहा है। रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि भारतीय बैंकों की वित्तीय स्थिति वर्तमान में अपने सर्वश्रेष्ठ दौर में है। बैंकों के पास न केवल पर्याप्त पूंजी (Capital) मौजूद है, बल्कि उनकी नकदी की स्थिति भी बहुत सुरक्षित है। सबसे बड़ी राहत की बात ‘एसेट क्वालिटी’ में आया सुधार है। बैंकों के फंसे हुए कर्ज (NPA) में लगातार गिरावट दर्ज की गई है, जबकि उनके शुद्ध लाभ में प्रभावशाली वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि बैंकों की बैलेंस शीट अब बहुत अधिक लचीली (Resilient) हो गई है। बैंकों ने अपने प्रोविजनिंग कवरेज और पूंजी बफर को इतना मजबूत कर लिया है कि वे किसी भी वैश्विक आर्थिक संकट का डटकर मुकाबला कर सकें। वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद के अनुसार, भारतीय वित्तीय प्रणाली की यह मजबूती केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश के औद्योगिक और खुदरा ऋण प्रवाह को सुचारू बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
मैक्रो स्ट्रेस टेस्ट: प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सुरक्षित रहेंगे बैंक
आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में ‘मैक्रो स्ट्रेस टेस्ट’ के परिणामों को भी साझा किया है, जो बैंकिंग क्षेत्र की मजबूती को परखने का एक कड़ा पैमाना है। ये परीक्षण एक ‘काल्पनिक प्रतिकूल स्थिति’ (Hypothetical Adverse Scenarios) को ध्यान में रखकर किए जाते हैं, जैसे कि यदि अर्थव्यवस्था में अचानक मंदी आ जाए या बाजार में बड़ी गिरावट हो, तो क्या बैंक उसे झेल पाएंगे?
परीक्षण के नतीजों ने पुष्टि की है कि भारतीय अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक किसी भी बड़े वित्तीय झटके को सहने के लिए तैयार हैं। बैंकों का ‘पूंजी पर्याप्तता अनुपात’ (CRAR) नियामकीय न्यूनतम सीमा से काफी ऊपर बना हुआ है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि म्यूचुअल फंड और क्लियरिंग कॉरपोरेशन जैसी अन्य वित्तीय संस्थाएं भी संकट के समय स्थिर रहने की क्षमता रखती हैं। यह निष्कर्ष विदेशी निवेशकों के भरोसे को और मजबूत करता है कि भारत का वित्तीय ढांचा किसी भी आंतरिक या बाहरी झटके से ढहने वाला नहीं है।
एनबीएफसी और बीमा क्षेत्र: स्थिरता और नवाचार का दौर
रिपोर्ट में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) और बीमा क्षेत्र के प्रदर्शन की भी सराहना की गई है। एनबीएफसी क्षेत्र, जो देश के अंतिम छोर तक ऋण पहुंचाने का काम करता है, उसकी पूंजीगत स्थिति और कमाई की क्षमता बहुत ठोस पाई गई है। एसेट क्वालिटी में सुधार ने एनबीएफसी को बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाया है।
वहीं, बीमा क्षेत्र की बात करें तो इसकी बैलेंस शीट में भी जबरदस्त लचीलापन देखा गया है। बीमा कंपनियों का समेकित शोधन क्षमता अनुपात (Solvency Ratio) अनिवार्य न्यूनतम सीमा से काफी ऊपर है, जो यह सुनिश्चित करता है कि ये कंपनियां बड़े दावों के निपटान के लिए हमेशा तैयार हैं। सरकार की ‘बीमा सुगम’ जैसी पहलों और बीमा क्षेत्र में 100% एफडीआई की अनुमति ने इस क्षेत्र में पूंजी और पहुंच की समस्याओं को जड़ से खत्म कर दिया है। जानकारों का मानना है कि बैंकिंग कानूनों में हुए संशोधनों ने ग्राहकों की सुरक्षा और भरोसे को और अधिक मजबूती प्रदान की है।
गवर्नर संजय मल्होत्रा का दृष्टिकोण: स्थिरता ही ‘नार्थ स्टार’
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है। उन्होंने वित्तीय स्थिरता को आरबीआई का ‘नार्थ स्टार’ (मुख्य मार्गदर्शक) बताया है। गवर्नर मल्होत्रा के अनुसार, नीति निर्माताओं का प्राथमिक लक्ष्य केवल विकास दर को बढ़ाना नहीं है, बल्कि एक ऐसा सुदृढ़ वित्तीय तंत्र बनाना है जो झटकों को सोख सके और साथ ही जिम्मेदार नवाचार (Responsible Innovation) को बढ़ावा दे सके।
उन्होंने स्पष्ट किया कि नियामक केवल स्थिरता पर ही ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनका जोर दक्षता, उपभोक्ता सुरक्षा और आधुनिक वित्तीय तकनीकों के समावेश पर भी है। गवर्नर का यह संदेश स्पष्ट करता है कि आरबीआई भविष्य की बैंकिंग के लिए एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र तैयार कर रहा है जहाँ सुरक्षा और सुविधा दोनों साथ-साथ चलें।
2026 और 2027 के लिए आर्थिक विशेषज्ञों के अनुमान
देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने भी आरबीआई की इस रिपोर्ट पर अपनी सहमति जताई है और भविष्य के लिए सकारात्मक रुख पेश किया है। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का मानना है कि भारत का निर्यात विविधीकरण और मजबूत घरेलू मांग हमें अमेरिका के टैरिफ युद्ध जैसे वैश्विक व्यापारिक तनावों से सुरक्षित रखेगी।
इक्रा (ICRA) की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2027 में भारत की विकास दर 6.5 से 7 प्रतिशत के बीच रह सकती है, जबकि महंगाई दर (मुद्रास्फीति) 4 प्रतिशत के आसपास रहेगी, जो अर्थव्यवस्था के लिए आदर्श स्थिति है। हालांकि, क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने चेतावनी दी है कि वैश्विक स्तर पर अमेरिका की बदलती आर्थिक नीतियां विदेशी निवेशकों की धारणा को प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन भारत के बुनियादी ढांचे पर इसका असर बहुत कम होगा।
गोल्ड लोन और पैसिव इन्वेस्टिंग: वित्तीय बाजार के नए उभरते सितारे
रिपोर्ट के बाद उद्योग जगत के दिग्गजों ने विशिष्ट क्षेत्रों में हो रहे बदलावों पर भी चर्चा की है। मुथूट फिनकॉर्प के सीईओ शाजी वर्गीस ने बताया कि गोल्ड लोन क्षेत्र अब केवल ‘इमरजेंसी लोन’ तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह व्यवसाय विस्तार और निवेश का एक प्रमुख जरिया बन गया है। 1 अप्रैल 2026 से लागू होने वाले नए नियम इस उद्योग में अधिक पारदर्शिता लाएंगे। साथ ही, ब्याज दरों में कटौती ने समाज के अंतिम पायदान तक ऋण की पहुंच को सुलभ बनाया है।
दूसरी ओर, निवेश के क्षेत्र में ‘पैसिव इन्वेस्टिंग’ (Passive Investing) ने एक बड़ी क्रांति ला दी है। एंजेल वन एएमसी के हेमेन भाटिया ने आंकड़ों के हवाले से बताया कि भारत में पैसिव निवेश का एयूएल 2019 के 1.9 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2025 में 13.7 लाख करोड़ रुपये हो गया है। अमेरिका की तुलना में जहाँ 50% से अधिक निवेश पैसिव मोड में होता है, भारत में 17% की वर्तमान हिस्सेदारी भविष्य के लिए अपार संभावनाओं को दर्शाती है। 2026 की ओर बढ़ते हुए, निवेशक कम लागत वाली और नियम-आधारित निवेश रणनीतियों को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं।
कुल मिलाकर, आरबीआई की यह रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि भारत ने अपनी आंतरिक नीतियों और मजबूत नियामक ढांचे के जरिए वैश्विक आर्थिक तूफान के बीच खुद को एक सुरक्षित और चमकता हुआ सितारा बनाए रखा है।