मणिकम टैगोर के बयान से सियासी बवाल: RSS की तुलना ‘अल-कायदा’ से करने पर भड़की भाजपा, कांग्रेस में भी मतभेद उजागर
नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में विचारधाराओं की लड़ाई अब एक बेहद तल्ख मोड़ पर पहुँच गई है। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर के एक हालिया बयान ने देश भर में राजनीतिक हलचल मचा दी है। टैगोर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर नफरत फैलाने का आरोप लगाते हुए इसकी तुलना वैश्विक आतंकवादी संगठन ‘अल-कायदा’ से कर दी है। इस विवादास्पद तुलना के बाद भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोला है और इसे करोड़ों राष्ट्रभक्तों का अपमान करार दिया है। दिलचस्प बात यह है कि यह बयान ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस के ही एक अन्य दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने संघ की संगठनात्मक शक्ति की प्रशंसा की थी, जिससे कांग्रेस के भीतर भी वैचारिक विरोधाभास साफ नजर आ रहा है।
पूरे विवाद की जड़ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की वह टिप्पणी रही, जिसमें उन्होंने संघ की प्रशंसा की थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मणिकम टैगोर ने न केवल दिग्विजय सिंह के रुख से असहमति जताई, बल्कि संघ के खिलाफ बेहद कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि संघ जैसे संगठन से सीखने के लिए कुछ भी सकारात्मक नहीं है। भाजपा ने इस पर पलटवार करते हुए कहा है कि कांग्रेस वोट बैंक की राजनीति में इस कदर अंधी हो गई है कि वह देशभक्ति और देश की सेवा में लगी संस्थाओं को आतंकी संगठनों के बराबर खड़ा कर रही है।
क्या था मणिकम टैगोर का विवादित बयान?
कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर का गुस्सा उस समय फूट पड़ा जब उनसे दिग्विजय सिंह द्वारा आरएसएस की तारीफ किए जाने पर सवाल पूछा गया। टैगोर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि आरएसएस एक ऐसा संगठन है जिसकी बुनियाद ही घृणा और नफरत पर टिकी है। उन्होंने तर्क दिया कि नफरत फैलाने वाले किसी भी ढांचे से कोई भी व्यक्ति क्या सीख सकता है? अपनी बात को और कड़ा बनाने के लिए उन्होंने संघ की तुलना अल-कायदा से कर डाली।
टैगोर ने सवालिया लहजे में पूछा, “क्या आप अल-कायदा से कुछ सीख सकते हैं? अल-कायदा भी नफरत फैलाने वाला संगठन है। घृणा से कुछ सीखने को नहीं मिलता।” उन्होंने आगे कहा कि किसी को नफरत फैलाने वाले संगठनों से सीखने के बजाय समाज के उन अच्छे लोगों और आदर्शों से सीखना चाहिए जो सकारात्मकता फैलाते हैं। टैगोर ने कांग्रेस की 140 साल की विरासत का हवाला देते हुए कहा कि महात्मा गांधी ने इस संगठन को एक जन आंदोलन बनाया जिसने देश को जोड़ा, जबकि संघ समाज को बांटने का काम करता है। उनके इस बयान ने सोशल मीडिया से लेकर संसद के गलियारों तक एक बड़ी बहस छेड़ दी है।
भाजपा का पलटवार: ‘वोट बैंक की राजनीति में डूबी कांग्रेस’
मणिकम टैगोर के इस बयान के तुरंत बाद भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर कांग्रेस पर चौतरफा हमला किया। पूनावाला ने कहा कि कांग्रेस अब उस स्तर पर पहुँच गई है जहाँ वह देशभक्ति और राष्ट्रीय संस्थाओं का अपमान करने में भी संकोच नहीं कर रही है। उन्होंने टैगोर के बयान को करोड़ों स्वयंसेवकों और राष्ट्रभक्तों के लिए अपमानजनक बताया जो दशकों से समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण में लगे हुए हैं।
पूनावाला ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने पहले हिंदू धर्म, सनातन संस्कृति, भारतीय सेना और भारत की अस्मिता का अपमान किया और अब वह एक ऐसी संस्था को आतंकवादी कह रही है जो आपदा और संकट के समय हमेशा देश के साथ खड़ी रहती है। उन्होंने सवाल उठाया कि कांग्रेस पार्टी बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर तो मौन साधे रहती है, लेकिन भारत के भीतर राष्ट्र सेवा करने वाले संगठनों को निशाना बनाने के लिए वह किसी भी हद तक गिर सकती है। पूनावाला के अनुसार, यह बयान केवल टैगोर का नहीं बल्कि पूरी कांग्रेस पार्टी की उस मानसिकता को दर्शाता है जो अल्पसंख्यक वोट बैंक को लुभाने के लिए बहुसंख्यक समाज की भावनाओं को आहत करती है।
दिग्विजय सिंह की ‘प्रशंसा’ ने कांग्रेस को किया असहज
इस पूरे विवाद का सबसे रोचक पहलू कांग्रेस के भीतर की अंतर्कलह है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब दिग्विजय सिंह ने आरएसएस की संगठनात्मक मजबूती और उनके कार्यकर्ताओं के समर्पण की सराहना की थी। दिग्विजय सिंह, जिन्हें अक्सर संघ और भाजपा का सबसे प्रखर आलोचक माना जाता है, उनके द्वारा संघ की प्रशंसा करना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया। दिग्विजय सिंह के इस बयान को पार्टी के भीतर एक बड़े वर्ग ने पचा नहीं पाया, जिसके बाद मणिकम टैगोर ने मोर्चा संभाला और संघ की तुलना अल-कायदा से कर दी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिग्विजय सिंह शायद संघ के काम करने के तरीके और उनकी जमीनी पकड़ की बात कर रहे थे, लेकिन टैगोर ने इसे वैचारिक धरातल पर ले जाकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया। इससे यह भी संकेत मिलता है कि कांग्रेस के भीतर संघ को लेकर दो अलग-अलग धाराएं चल रही हैं—एक जो उनकी कार्यप्रणाली को समझना चाहती है और दूसरी जो उन्हें पूरी तरह नकार कर आतंकी संगठनों से तुलना करने को सही मानती है। भाजपा ने इस विरोधाभास का फायदा उठाते हुए कांग्रेस को ‘कन्फ्यूज्ड पार्टी’ करार दिया है।
गांधी के आदर्श बनाम नफरत की राजनीति
मणिकम टैगोर ने अपने बचाव में कांग्रेस के 140 साल पुराने इतिहास और महात्मा गांधी के सिद्धांतों का बार-बार उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस वह संस्था है जिसने लोगों को एकजुट किया और देश को आजादी दिलाई। टैगोर का तर्क था कि जिस पार्टी के पास गांधी, नेहरू और पटेल जैसे महापुरुषों की विरासत हो, उसे किसी ऐसे संगठन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता नहीं है जिसका उद्देश्य समाज में विभाजन पैदा करना हो। उन्होंने कहा कि कांग्रेस हमेशा एक समावेशी भारत की वकालत करती रही है, जबकि संघ की विचारधारा इसके विपरीत है।
टैगोर ने यह भी कहा कि नफरत फैलाने वाले संगठन चाहे वे भारत में हों या विदेश में, उनका चरित्र एक जैसा होता है। उनके अनुसार, अच्छे और सकारात्मक काम करने वाले लोग ही समाज के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकते हैं। हालांकि, उनकी ‘अल-कायदा’ वाली तुलना ने कांग्रेस के इस तर्क को कमजोर कर दिया और भाजपा को एक बड़ा मुद्दा दे दिया। भाजपा का कहना है कि गांधी जी के नाम का सहारा लेकर देश की सबसे पुरानी लोकतांत्रिक संस्था के खिलाफ इस तरह की भाषा का प्रयोग करना निंदनीय है।
निष्कर्ष: विचारधारा की जंग और चुनावों पर असर
मणिकम टैगोर का यह बयान आने वाले समय में चुनावी मुद्दा भी बन सकता है। भाजपा इसे राष्ट्रीय अस्मिता और हिंदू गौरव से जोड़कर पेश कर रही है, वहीं कांग्रेस इसे ‘नफरत के खिलाफ मोहब्बत’ की लड़ाई बता रही है। आरएसएस के पदाधिकारियों ने फिलहाल इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन संघ समर्थकों में भारी नाराजगी देखी जा रही है।
यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने संघ पर कड़े हमले किए हों, लेकिन अल-कायदा जैसे प्रतिबंधित और हिंसक संगठन से तुलना करना राजनीतिक शिष्टाचार की सीमाओं को लांघने जैसा माना जा रहा है। इस बयान के बाद अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस नेतृत्व मणिकम टैगोर के बयान का समर्थन करता है या फिर दिग्विजय सिंह की तरह संतुलन बनाने की कोशिश करता है। फिलहाल, दिल्ली से लेकर राज्यों की राजधानियों तक, राजनीति का पारा गर्म है और इस बयान ने विचारधाराओं की इस जंग को और अधिक हिंसक बना दिया है।