नौकरी गई तो उबर चलाने लगा: भारत में जन्मे अमेरिकी नागरिक की दास्तां, जो हिला देगी आपकी सोच
18 नवंबर 2025, सैन फ्रांसिस्को: अमेरिका का सपना हर इमिग्रेंट के लिए चमकदार लगता है, लेकिन रोनाल्ड नेटावत की एक उबर सवारी ने इसकी कड़वी हकीकत उजागर कर दी। सैन फ्रांसिस्को स्टार्टअप एंटिम लैब्स के फाउंडर नेटावत ने एक भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक से मुलाकात की, जो 25 साल के शानदार टेक करियर के बाद अब उबर चला रहा है। कॉग्निजेंट से लेऑफ होने के बाद यह शख्स—जो H-1B वीजा पर आया और US सिटिजन बना—अपनी टेस्ला मॉडल Y से पैसेंजर्स को ड्रॉप कर रहा। क्या अमेरिकी ड्रीम अब नाइटमेयर बन गया? H-1B पॉलिसी पर बहस छिड़ी है, जहां ट्रंप सरकार विदेशी वर्कर्स को ट्रेनिंग देकर वापस भेजने का प्लान कर रही। इस लेख में हम जानेंगे इस अनाम हीरो की कहानी, जो लाखों भारतीय IT प्रोफेशनल्स की चेतावनी है।
उबर सवारी की अनएक्सपेक्टेड मुलाकात: टेस्ला में छिपी टेक स्टार की दास्तां
रोनाल्ड नेटावत ने 16 नवंबर को X पर पोस्ट किया, “SF is insane. Took an Uber. A blue Tesla Model Y. Indian driver, late 40s.” बातचीत में पता चला कि ड्राइवर 2007 में H-1B वीजा पर अमेरिका आया, वेरिजोन और एप्पल जैसी दिग्गज कंपनियों में काम किया, एक IT फर्म का CTO बना। 15 साल बाद US सिटिजनशिप मिली, लेकिन हाल ही में कॉग्निजेंट ने प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर लेऑफ कर दिया। नेटावत ने ड्राइवर की LinkedIn प्रोफाइल शेयर की, जहां 25 साल का PM एक्सपीरियंस चमक रहा—CTO रोल से लेकर सीनियर प्रोजेक्ट्स तक। इसकी बजाय नई जॉब हंट करने के बजाय, उसने उबर ड्राइविंग चुनी। “क्योंकि सिटिजन हूं, कोई वीजा प्रेशर नहीं,” उसने बताया। यह कहानी वायरल हो गई, 10 लाख व्यूज के साथ, जहां लोग अमेरिकी जॉब मार्केट की क्रूरता पर सवाल उठा रहे। टेक लेऑफ्स 2025 में 2 लाख से ज्यादा हुए, ज्यादातर भारतीयों को टारगेट। यह ड्राइवर की हिम्मत की मिसाल है, जो हार मानने के बजाय नई शुरुआत कर रहा।
H-1B वीजा का दर्द: ट्रंप की नई पॉलिसी से भारतीय IT वर्कर्स पर संकट
यह स्टोरी H-1B वीजा बहस का तूफान लाई, जो अमेरिकी टेक सेक्टर की रीढ़ है। 85% H-1B वीजा भारतीयों को जाते हैं, लेकिन ट्रंप सरकार ने नया मॉडल लॉन्च किया—विदेशी एक्सपर्ट्स को बुलाओ, अमेरिकी वर्कर्स को ट्रेन करो, फिर वापस भेजो। “अमेरिका फर्स्ट” का यह प्लान भारतीय IT फर्म्स पर सीधा असर डालेगा, जहां कॉग्निजेंट, TCS जैसी कंपनियां पहले ही कटौती कर रही। ड्राइवर ने कहा, “15 साल की मेहनत के बाद सिटिजन बना, लेकिन लेऑफ ने सब उजाड़ दिया।” नेटावत ने लिखा, “यह H-1B का फ्यूचर दिखाता—ट्रेनिंग देकर विदेश भेजना।” 2025 में H-1B अप्लिकेशन्स 4 लाख से ज्यादा, लेकिन अप्रूवल रेट 30% गिरा। नाथन प्लैटर जैसे अमेरिकियों ने नीति की आलोचना की, अपनी दोस्त का उदाहरण दिया जो 2 महीने में जॉब न मिलने पर देश छोड़ गई। X पर #H1BReform ट्रेंडिंग, जहां भारतीय कम्युनिटी चिंतित। यह ड्राइवर की कहानी साबित करती कि सिटिजनशिप भी जॉब सिक्योरिटी नहीं देती।
सबक और उम्मीद: अमेरिकी ड्रीम की कड़वी सच्चाई, लेकिन हौसले की मिसाल
यह दास्तां अमेरिकी ड्रीम की चमक को फीका कर देती है—भारतीय इमिग्रेंट्स, जो 40% टेक वर्कफोर्स हैं, लेऑफ वेव का शिकार। ड्राइवर ने नेटावत से कहा, “उबर चलाना अस्थायी, लेकिन इससे फ्रीडम मिली—कोई बॉस नहीं।” नेटावत ने कहा, “यह ह्यूमिलिटी सिखाता—कभी CTO, कभी ड्राइवर।” स्टोरी ने बहस छेड़ी कि क्या US नीतियां टैलेंट को बाहर धकेल रही? ट्रंप का प्लान आत्मनिर्भरता लाएगा, लेकिन इनोवेशन को झटका। फिर भी, ड्राइवर की टेस्ला वाली सवारी उम्मीद जगाती—मेहनत कभी बेकार नहीं। X पर फैंस ने कहा, “यह रेजिलिएंस की स्टोरी।” क्या यह लाखों भारतीयों के लिए चेतावनी? या नई शुरुआत की प्रेरणा? समय बताएगा।