कर्नाटक में RSS मार्च पर सस्पेंशन का तड़का: सरकारी नौकरशाही में राजनीतिक तटस्थता की कसौटी
रायचूर, 17 अक्टूबर 2025: कर्नाटक के रायचूर जिले में एक सरकारी अधिकारी का RSS के शताब्दी समारोह में हिस्सा लेना नौकरशाही के लिए सबक बन गया। पंचायत विकास अधिकारी को यूनिफॉर्म पहनकर मार्च में शामिल होने के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया, जिससे राजनीतिक तटस्थता का सवाल फिर गरमाया। यह कार्रवाई मंत्री प्रियांक खड़गे के पत्र के बाद आई, जो RSS से जुड़े अधिकारियों पर सख्ती की मांग कर रहे थे। लेकिन क्या यह सिर्फ अनुशासन की कार्रवाई है या सियासी संदेश? BJP ने इसे ‘एंटी-हिंदू’ करार दिया, तो कांग्रेस ने नियमों का हवाला दिया। विभागीय जांच के बीच अधिकारी गुजारा भत्ता लेकर इंतजार कर रहे हैं। आइए, जानते हैं इस घटना की पूरी परतें, जो सरकारी सेवा और संगठनात्मक गतिविधियों के बीच की बारीक रेखा को उजागर करती हैं।
RSS शताब्दी समारोह में भागीदारी: सस्पेंशन की शुरुआत
कर्नाटक के रायचूर जिले के सिरावर तालुक पंचायत में तैनात पंचायत विकास अधिकारी प्रवीण कुमार केवी को 12 अक्टूबर को लिंगसुगुर में RSS के शताब्दी समारोह के दौरान आयोजित रूट मार्च में हिस्सा लेने के लिए निलंबित कर दिया गया। सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीरों में वे संगठन की यूनिफॉर्म पहने और छड़ी थामे मार्च में शामिल दिखे, जो सरकारी नियमों का स्पष्ट उल्लंघन माना गया। ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज विभाग की आयुक्त डॉ. अरुंधति चंद्रशेखर ने सस्पेंशन ऑर्डर जारी किया, जिसमें कहा गया कि यह कंडक्ट सरकारी कर्मचारियों की राजनीतिक तटस्थता और अनुशासन की अपेक्षा के विपरीत है। प्रवीण कुमार को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया और विभागीय जांच के आदेश दिए गए। वे अगले नोटिस तक गुजारा भत्ता प्राप्त करेंगे तथा मुख्यालय छोड़ने की अनुमति के बिना बाहर नहीं जा सकेंगे। यह कार्रवाई कर्नाटक सिविल सर्विसेज (कंडक्ट) रूल्स, 2021 के नियम 3 का हवाला देकर की गई, जो कर्मचारियों को ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और राजनीतिक न्यूट्रैलिटी बनाए रखने का निर्देश देता है। घटना के बाद सोशल एक्टिविस्टों ने भी शिकायत दर्ज कराई थी, जिससे विभाग ने त्वरित कदम उठाया। BJP विधायक मनप्पा वज्जल के करीबी बताए जाने वाले प्रवीण की यह हरकत सियासी विवाद को हवा दे रही है। कुल मिलाकर, यह मामला सरकारी सेवा में व्यक्तिगत आस्थाओं की सीमा को रेखांकित करता है।
मंत्री खड़गे का पत्र और सरकारी निर्देश: राजनीतिक दबाव का खेल
सस्पेंशन की पृष्ठभूमि में ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज मंत्री प्रियांक खड़गे का मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को लिखा पत्र महत्वपूर्ण है। उन्होंने RSS से जुड़े सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की थी, जो संगठन के कार्यक्रमों में भाग लेते पाए जाते हैं। यह पत्र हालिया घटनाओं के बाद आया, जब राज्य सरकार ने सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों पर RSS शाखाओं पर प्रतिबंध लगाने के कदम उठाए। कर्नाटक कैबिनेट ने गुरुवार को निजी संगठनों की गतिविधियों पर रोक लगाने का फैसला लिया, विशेष रूप से RSS पर निशाना साधते हुए। खड़गे ने तमिलनाडु के मॉडल का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे कदम सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। प्रवीण कुमार का मामला इस नीति का पहला बड़ा उदाहरण बन गया, जहां वायरल फोटोज ने कार्रवाई को मजबूर किया। विभाग ने स्पष्ट किया कि कर्मचारी का आचरण कर्नाटक सिविल सर्विसेज (क्लासिफिकेशन, कंट्रोल एंड अपील) रूल्स, 1957 के नियम 10(1)(d) के तहत अनुचित था। BJP ने इसे ‘एंटी-हिंदू’ करार देते हुए सस्पेंशन रद्द करने की मांग की, जबकि विपक्षी नेता एन. रविकुमार ने चेतावनी दी कि अन्यथा आंदोलन तेज होगा। सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है, जहां कुछ इसे अनुशासन की जीत बता रहे हैं, तो कुछ राजनीतिक प्रतिशोध। यह घटना राज्य की सियासत में RSS के प्रभाव को चुनौती दे रही है।
नियमों का उल्लंघन और जांच की राह: भविष्य में क्या होगा?
सस्पेंशन ऑर्डर में स्पष्ट रूप से कहा गया कि प्रवीण कुमार ने कर्नाटक सिविल सर्विसेज (कंडक्ट) रूल्स, 2021 के नियम 5(1) का उल्लंघन किया, जो सरकारी कर्मचारियों को किसी राजनीतिक दल या संगठन की सदस्यता या गतिविधियों से जुड़ने से रोकता है। रिपोर्ट में उल्लेख है कि उनका कंडक्ट एक सरकारी सेवक की अपेक्षित गरिमा के अनुरूप नहीं था, जो राजनीतिक गतिविधियों से दूरी बनाए रखने का आदेश देता है। विभाग ने जांच प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिसमें प्रवीण को अपना पक्ष रखने का अवसर मिलेगा। यदि दोषी पाए गए, तो स्थायी कार्रवाई हो सकती है। यह मामला कर्नाटक में RSS गतिविधियों पर बढ़ते नियंत्रण का हिस्सा लगता है, जहां हाल ही में सरकारी स्कूलों में शाखाओं पर रोक लगाई गई। BJP ने कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा कि वे हिंदू संगठनों को निशाना बना रही हैं, जबकि कांग्रेस ने इसे नियमों का पालन बताया। प्रवीण कुमार, जो BJP विधायक के पीए के रूप में भी कार्यरत रहे, अब जांच के दायरे में हैं। स्थानीय स्तर पर यह विवाद सांप्रदायिक सद्भाव पर असर डाल सकता है। कुल मिलाकर, यह घटना सरकारी कर्मचारियों के लिए चेतावनी है कि व्यक्तिगत आस्था पद की गरिमा से ऊपर नहीं। आने वाले दिनों में जांच का परिणाम तय करेगा कि यह सस्पेंशन अस्थायी रहेगा या स्थायी सबक।
