कफ सिरप की जहरीली लहर: बच्चों की मौतों पर WHO का सवाल, भारत की दवा निगरानी पर उंगली
नई दिल्ली, 9 अक्टूबर 2025: भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर एक और सवालिया निशान लग गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मध्य प्रदेश में कफ सिरप से 20 से ज्यादा बच्चों की मौतों पर चिंता जताते हुए सरकार से जवाब मांगा है—क्या यह जहरीला सिरप दूसरे देशों में भी बिक रहा था? कोल्ड्रिफ सिरप में मिले डायएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) ने किडनी फेलियर का कहर बरपाया, लेकिन CDSCO का दावा है कि यह सिर्फ लोकल था। WHO ने भारत की दवा टेस्टिंग और फार्माकोविजिलेंस सिस्टम पर सवाल उठाए, जो 2023 के गाम्बिया कांड की याद दिला रहा। क्या यह घटना भारत को वैश्विक स्तर पर बदनाम करेगी, या सरकार के नए कदम सिस्टम को मजबूत बनाएंगे? आइए, इसकी परतें खोलें, जहां मासूमों की मौतें सवालों का पुलिंदा बुन रही हैं।
मौतों का सिलसिला: कोल्ड्रिफ सिरप में छिपा था DEADLY toxin, 20 बच्चे बेमौत गए
मध्य प्रदेश और राजस्थान में अगस्त से शुरू हुआ यह सिलसिला दहला देने वाला है। कोल्ड्रिफ कफ सिरप, जो बच्चों की खांसी-जुकाम के लिए दिया जाता था, इसमें डायएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) की मात्रा 500 गुना से ज्यादा मिली—एक ऐसा केमिकल जो एंटी-फ्रीज में इस्तेमाल होता है, लेकिन दवाओं में घुस जाए तो किडनी फेल, लकवा या मौत का कारण बन जाता। 2 अक्टूबर को टेस्ट से पुष्टि हुई, और तब तक 17-22 बच्चे (रिपोर्ट्स के मुताबिक) सरकारी अस्पतालों में दम तोड़ चुके थे। चिंदवाड़ा के डॉक्टर प्रवीण सोनी पर लापरवाही का केस, और तमिलनाडु की श्रीसन फार्मा के मालिक रंगनाथन को चेन्नई से गिरफ्तार कर लिया गया। SIT जांच में साफ हुआ कि सिरप मई 2025 में बना था, एक्सपायरी अप्रैल 2027 की। केरल, पंजाब, यूपी, झारखंड जैसे राज्यों ने बैन कर दिया, जबकि गुजरात ने रेस्पिफ्रेश और रीलिफ सिरप पर भी अलर्ट जारी किया। प्रत्यक्षदर्शी माता-पिता रोते हुए बताते हैं— “बच्चा सिरप पीया और रातोंरात किडनी फेल।” यह घटना 2023 के गाम्बिया कांड (140 मौतें) की नकल लग रही, जहां भी भारतीय सिरप दोषी थे। कुल मिलाकर, यह सिलसिला दवा बाजार की लापरवाही को उजागर कर रहा, जहां सस्ते सिरप की होड़ में जानें दांव पर लग रही।
WHO का सवालों का तीर: एक्सपोर्ट से निगरानी तक, भारत को घेरा
WHO ने 8 अक्टूबर को भारत सरकार को ईमेल भेजा, जिसमें साफ सवाल— कोल्ड्रिफ कितने देशों में एक्सपोर्ट हुआ? जवाब मिलने पर ग्लोबल मेडिकल प्रोडक्ट्स अलर्ट जारी करेंगे। CDSCO ने पुष्टि की—कोई एक्सपोर्ट नहीं, सिर्फ लोकल सेल। लेकिन WHO ने चिंता जताई, “भारत में लोकल सिरप टेस्टिंग में रेगुलेटरी गैप है।” ईमेल में पूछा— निर्यात से पहले/बाद की क्वालिटी चेक सिस्टम कितना मजबूत? मध्य प्रदेश जैसी घटनाओं को रोकने के कदम क्या? फार्माकोविजिलेंस कितनी प्रभावी? अमेरिका की 1937 वाली रिकॉल ड्राइव जैसी मुहिम क्यों नहीं? WHO ने याद दिलाया— DEG की पहचान में महीनों लग सकते हैं, जैसे गाम्बिया में 6 महीने बाद पुष्टि हुई। संगठन ने कहा, “हम जांच में मदद को तैयार, लेकिन बच्चों को कफ-कोल्ड दवाओं से दूर रखें।” यह सवाल भारत की ‘फार्मा हब’ वाली इमेज को चुनौती दे रहे, जहां 20% ग्लोबल जेनरिक दवाएं बनती हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट में WHO अधिकारी बोले, “कॉनफर्मेशन के बाद अलर्ट जरूरी।” कुल मिलाकर, WHO का यह तीर न केवल मौतों पर, बल्कि पूरे सिस्टम की कमजोरियों पर निशाना साध रहा।
सरकार के कदम और सबक: 2023 का आदेश, गिरफ्तारी, लेकिन क्या काफी?
2023 के गाम्बिया-उज्बेकिस्तान कांड के बाद सरकार ने 18 दिसंबर को सख्त आदेश जारी किया— हर एक्सपोर्टेड कफ सिरप की सरकारी लैब में टेस्टिंग अनिवार्य। क्लोरफेनिरामाइन और फिनाइलेफ्राइन का FDC 4 साल से कम बच्चों के लिए बैन। लेकिन लोकल मार्केट में यह सिरप घूमता रहा, जो सिस्टम की खामी दिखा रहा। अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने SIT गठित की, AIOCD ने लेबलिंग पर सख्ती के निर्देश दिए— “4 साल से कम बच्चों के लिए न दें।” कंपनी मालिक रंगनाथन की गिरफ्तारी से जांच तेज हुई, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं— फार्माकोविजिलेंस को मजबूत करने की जरूरत, जहां रिपोर्टिंग कमजोर है। 1937 के अमेरिकी रिकॉल (100+ मौतों के बाद) से सबक लेते हुए भारत को पब्लिक रिकॉल ड्राइव चलानी चाहिए। WHO की चिंता सही— DEG पहचान मुश्किल, लेकिन रोकथाम आसान। विश्लेषक मानते हैं, यह घटना फार्मा रेगुलेशन सुधार का मौका है। कुल मिलाकर, कदम उठे हैं, लेकिन मासूमों की मौतें चेतावनी दे रही— सस्ताई की दौड़ में क्वालिटी न दांव पर लगे, वरना ग्लोबल ट्रस्ट टूटेगा।
