शुभांशु शुक्ला का ऐतिहासिक मिशन: अंतरिक्ष स्टेशन से कुछ मिनट दूर
25 जून 2025 को, भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने फ्लोरिडा के नासा केनेडी स्पेस सेंटर से एक्सिओम-4 (Ax-4) मिशन के तहत उड़ान भरी। यह भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि शुभांशु ISS पहुंचने वाले पहले भारतीय बनने जा रहे हैं। उनके साथ तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री—एरिक फिलिप्स, राबिया रोगे, और जैनिक मिकेल्सन—ड्रैगन कैप्सूल में सवार हैं। 28 घंटे की यात्रा के बाद, 26 जून 2025 को दोपहर 3:48 बजे IST पर कैप्सूल ISS के हार्मनी मॉड्यूल के स्पेस-फेसिंग पोर्ट से डॉकिंग के लिए तैयार है। शुभांशु ने अंतरिक्ष से हिंदी में संदेश भेजा, “मेरे कंधे पर लगा तिरंगा मुझे गर्व से भर देता है।” यह मिशन भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान और ISRO-NASA सहयोग का प्रतीक है। सोशल मीडिया पर #ShubhanshuShukla ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग इसे भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षा का नया अध्याय बता रहे हैं।
स्पेसएक्स ड्रैगन: तकनीकी चमत्कार
स्पेसएक्स ड्रैगन 2 एक पुन: उपयोग योग्य अंतरिक्ष यान है, जो ISS तक चालक दल और कार्गो ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह कैप्सूल फाल्कन 9 रॉकेट से लॉन्च होता है और स्वचालित रूप से ISS के साथ डॉकिंग कर सकता है। ड्रैगन में 16 ड्रैको थ्रस्टर्स और आठ सुपरड्रैको इंजन हैं, जो आपात स्थिति में कैप्सूल को रॉकेट से अलग करने में सक्षम हैं। इसका पुन: उपयोग योग्य डिज़ाइन इसे लागत प्रभावी बनाता है। कैप्सूल में अंतरराष्ट्रीय डॉकिंग सिस्टम स्टैंडर्ड (IDSS) पोर्ट है, जो ISS के हार्मनी मॉड्यूल से जुड़ता है। Ax-4 मिशन में ड्रैगन 420 किमी की ऊंचाई पर 7,000 किमी/घंटा की रफ्तार से उड़ रहा है। यह 200-400 मीटर की दूरी पर ISS के साथ समान कक्षा में है, जिससे डॉकिंग प्रक्रिया आसान हो। ड्रैगन का हेड्स-अप डिस्प्ले और स्वचालित नेविगेशन सिस्टम इसे 21वीं सदी का सबसे उन्नत यान बनाते हैं।
डॉकिंग प्रक्रिया: जटिल लेकिन सटीक
ड्रैगन कैप्सूल की ISS के साथ डॉकिंग एक जटिल प्रक्रिया है, जो कई चरणों में पूरी होती है। कैप्सूल पहले ISS के चारों ओर 4×2 किमी के एलिप्सॉइड ज़ोन में प्रवेश करता है, फिर 200 मीटर के “कीप-आउट स्फीयर” में। 26 जून को, ड्रैगन ने मिड-कोर्स बर्न पूरा किया और ISS से 400 मीटर दूर था। यह अब हार्मनी मॉड्यूल के पोर्ट की ओर बढ़ रहा है। डॉकिंग के लिए कैप्सूल 20 मीटर की दूरी पर रुकता है, जहां अंतिम “गो/नो-गो” जांच होती है। इसके बाद, सॉफ्ट कैप्चर और हार्ड डॉकिंग होती है, जिसमें कैप्सूल और ISS के बीच वायुदाब समायोजन और लीक जांच की जाती है। शुभांशु और उनकी टीम ने अपने स्पेससूट की जांच पूरी कर ली है। डॉकिंग तय समय से 40-45 मिनट पहले, लगभग 3:48 बजे IST पर होने की उम्मीद है। यह प्रक्रिया पूरी तरह स्वचालित है, लेकिन मैनुअल ओवरराइड की सुविधा भी उपलब्ध है।
भारत के लिए मिशन का महत्व
शुभांशु शुक्ला का यह मिशन भारत के अंतरिक्ष इतिहास में मील का पत्थर है। 1984 में राकेश शर्मा के बाद, शुभांशु अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं। 14 दिनों तक ISS पर रहकर, वे वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, जिसमें माइक्रोग्रैविटी में मानव शरीर पर अध्ययन और ISS हैम रेडियो प्रोग्राम के माध्यम से छात्रों से बातचीत शामिल है। यह मिशन ISRO और नासा के बीच बढ़ते सहयोग को दर्शाता है, जो भविष्य में चंद्र मिशनों के लिए आधार तैयार कर सकता है। शुभांशु की उपलब्धि ने युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान में प्रेरित किया है। सोशल मीडिया पर लोग इसे “भारत का गर्व” बता रहे हैं। इस मिशन से भारत की तकनीकी क्षमता और वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में उसकी भूमिका मजबूत होगी। यह Ax-4 मिशन न केवल वैज्ञानिक, बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है।
