• September 8, 2024

जस करनी तस भोगहु ताता- अरविंद जयतिलक

 जस करनी तस भोगहु ताता- अरविंद जयतिलक

‘जस करनी तस भोगहु ताता, नरक जात पुनि क्या पछताता’। गोस्वामी तुलसीदास की यह पंक्ति देश के उन माननीयों के लिए सख्त संदेश है जो बिना विचार किए हर पल विषवमन करने को आतुर दिखतेे हैं। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर निर्वाचित जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारी होती है कि वह भाषा की मर्यादा और ईमानदार आचरण का ख्याल रखते हुए अपनी बात कहे। यह कहीं से भी उचित नहीं कि वह दूसरे को नीचा दिखाने के लिए जुबानी बर्बरता पर उतर जाए और संसदीय मर्यादा को मिट्टी में मिला दे। बेशक एक राजनेता को अधिकार है कि वह लोकतंत्र की रक्षा और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना इंकलाबी तेवर दिखाए। उसे यह भी अधिकार है कि सत्ता पक्ष की नाकामियों को जनता के बीच ले जाए। लेकिन यह कहीं से भी उचित नहीं कि इसके लिए अनर्गल प्रलाप कर समाज में विद्वेश पैदा करे। सभी को ध्यान रखना होगा कि कोई भी भावना राष्ट्र व समाज के भविष्य से बढ़कर नहीं होती। लेकिन विडंबना है कि देश के राजनेता इसे समझने-गुनने को तैयार नहीं हैं और अदालत को उनकी जुबानी बर्बरता के लिए दंडित करना पड़ रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है।

सूरत की एक अदालत ने उन्हें 2019 के मानहानि मामले में दो साल की सजा सुनायी है। लिहाजा उनकी संसद की सदस्यता समाप्त हो गयी है। हालांकि राहुल गांधी के पास निचली अदालत की सजा के खिलाफ उपरी अदालत में जाने का विकल्प मौजूद है। निःसंदेह वे अदालत जाएंगे भी। अगर उन्हें राहत मिलती है तो ठीक है अन्यथा दो साल की सजा भुगतनी तय है। यहीं नहीं वह सजा की अवधि और उसके पूरा होने के 6 साल बाद तक चुनाव लड़ने के योग्य भी नहीं रह जाएंगे। फिलहाल सभी की नजर अब उपरी अदालत और चुनाव आयोग के रुख पर है। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या देश के जिम्मेदार नेता राहुल गांधी को मिली सजा से सबक लेंगे? क्या वे जाति-मजहब की बात करने से बचेंगे? कहना मुश्किल है। राहुल गांधी भी सबक नहीं लिए। याद होगा जब वे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बार-बार ‘चैकीदार चोर है’ कह रहे थे तब अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को माफी देते हुए संभलकर बोलने की नसीहद दी। लेकिन राहुल गांधी नहीं माने। गौरतलब है कि उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक के कोलार की रैली में प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलते हुए कहा कि ‘सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है, चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो चाहे नरेंद्र मोदी’। गौर करें तो राहुल गांधी कमाल के नेता हैं। वे तनिक भी विचलित व चिंतित नहीं होते कि उनकी जुबानी बर्बरता का परिणाम क्या होगा। वे सरकार की आलोचना के फेर में देश की साख और मर्यादा का भी ख्याल नहीं रखते। बेशक राहुल गांधी को अधिकार है कि वह सरकार की नीतियों की आलोचना करे। अगर उन्हें लगता है कि सत्ताधारी भाजपा देश की समस्याओं के निराकरण में विफल है तो उसकी घेराबंदी करें। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि भाषायी मर्यादा को लांघ जाए और देश की छवि खराब करें। उन्हें समझना होगा कि एक लोकतांत्रिक देश में देश की छवि, साख और मर्यादा की रक्षा की जिम्मेदारी जितना सत्तापक्ष की होती है उतना ही विपक्ष की भी। लेकिन राहुल गांधी इसे समझने को तैयार नहीं हैं। उनके पिछले कुछ संबोधनों पर गौर करें तो सारा माजरा समझ में आ जाएगा। अभी हाल ही उन्होंने लंदन के एक कार्यक्रम में देश के लोकतंत्र पर सवाल उठाया जिसकी चतुर्दिक निंदा हुई। इसी तरह उन्होंने जर्मनी के हैम्बर्ग में बुसेरियस समर स्कूल में छात्रों और प्रवासियों को संबोधित करते हुए माॅब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को बेरोजगारी से जोड़ा।

ये भी पढ़ें- गोरखपुर: सीएम योगी ने लगाया जनता दरबार, फरियादियों की सुनीं समस्याएं

लंदन में ही आरएसएस की तुलना आतंकी संगठन ब्रदरहुड से की। उनके इस दुर्लभ प्रवचन से न केवल भारज-जर्मनी बल्कि दुनिया भर के समाजशास्त्री और अर्थशस्त्री हतप्रभ रह गए। लोगबाग भी नहीं समझ पाए कि आखिर राहुल गांधी को क्या हो गया है जो मोदी विरोध के नाम पर देश की आबरु से खिलवाड़ करने पर आमादा हैं। वह भी तब जब देश के प्रधानमंत्री दुनिया भर में भारत की प्रतिष्ठा को चार चांद लगा रहे हैं। याद होगा गत वर्ष पहले विकिलीक्स ने खुलासा किया था कि राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत से कहा था कि देश को इस्लामिक आतंकवाद से ज्यादा खतरा हिंदू कट्टरवाद से है। तब राहुल गांधी की खूब फजीहत हुई थी। याद होगा 2013 में उन्होंने इंदौर की एक रैली में जुगाली किया कि इंटेलिजेंस के एक अधिकारी ने उन्हें बताया की पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई मुज्जफरनगर दंगा पीड़ितों से संपर्क कर उन्हें आतंकवाद के लिए उकसाने की कोशिश कर रही है। मजे की बात यह कि उनके इस बयान के तत्काल बाद ही गृहमंत्रालय ने ऐसे किसी भी रिपोर्ट से इंकार कर दिया। तब राहुल गांधी की खूब फजीहत हुई थी। उन्होंने चुरु की एक रैली में उन्होंने कहा था कि सांप्रदायिक तत्वों ने उनकी दादी को मारा, उनके पिता को मारा और अब शायद उन्हें भी मार सकते हैं। जबकि वे अच्छी तरह सुपरिचित हंै कि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या सांप्रदायिक तत्वों ने नहीं बल्कि आतंकियों ने की थी। याद होगा 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी का घोषणापत्र ही फाड़ दिया। यही नहीं उन्होंने 2014 में एक चुनावी जनसभा में गांधी जी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिम्मेदार ठहराया। लेकिन जब इससे नाराज संघ के एक कार्यकर्ता ने उन्हें अदालत में घसीटा तो उनकी असहजता बढ़ गयी। उच्चतम न्यायालय ने तब राहुल गांधी को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि वह या तो वह माफी मांगे या मानहानि के मुकदमें का सामना करने के लिए तैयार रहें।

ये भी पढ़ें: सीएम आवास पर कैबिनेट बैठक आज, कई प्रस्तावों पर लगेगी मुहर

राहुल गांधी के इन गैर जिम्मेदराना रवैए से साफ है कि उनमें सुझबुझ की कमी है और वे बार-बार अपनी गलत बयानबाजी के जरिए खुद की मुसीबत बढ़ाते रहते हैं। राहुल गांधी की इसी नासमझी का नतीजा है कि कांग्रेस का जनाधार तेजी से खिसक रहा है और राजनीतिक समझ और अंतर्दृष्टि रखने वाले उसके शीर्ष नेता पार्टी छोड़ रहे हंै। जिस तरह कांग्रेस पार्टी को बार-बार चुनाव-दर-चुनाव हार मिल रही है, उसके लिए कोई और नहीं बल्कि खुद राहुल गांधी ही जिम्मेदार हैं। सच यह भी है कि कांग्रेस और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पच नहीं रही है। उसी का नतीजा है कि राहुल गांधी ऐसे लफ्जों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। राहुल गांधी के सिपाहसालार भी देश को कभी हिंदू पाकिस्तान तो कभी हिंदू तालिबान बताने से बाज नहीं आते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी और उनकी पार्टी जुबानी बर्बरता के जरिए देश का दिल जीत पाएंगे? क्या वे विदेशी धरती पर खड़े होकर देश के खिलाफ आग उगलकर सत्ता तक पहुंच पाएंगे? यह संभव ही नहीं है। सच तो यह है कि देश उनके और उनकी पार्टी के बदजुबानी भरे रवैए से आहत है। राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी दोनों को समझना होगा कि अगर वे यह सोच रहे हैं कि भोथरे दलीलों और अपशब्दों के जरिए देश को गुमराह करने में सफल हो जाएंगे तो वे भ्रम में हैं। देश चैतन्य और सतर्क है। नकारात्मक राजनीति का खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना होगा। क्योंकि राहुल गांधी कांग्रेस के अग्रणी नेता ही नहीं बल्कि भविष्य भी हैं। अगर वह गली छाप नेताओं की तरह राजनीतिक आचरण की नुमाईश करेंगे तो कांग्रेस का भविष्य अधर में जाना तय है। ऐसा नहीं है कि देश राहुल गांधी और कांग्रेस को बात रखने का अवसर नहीं दे रहा है। लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस दोनों मौके का लाभ उठाने के बजाए अपने अशोभनीय आचरण से देश को शर्मसार कर रहे हैं।

 

Digiqole Ad

अरविंद जयतिलक

https://ataltv.com/

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *