• October 18, 2025

शिक्षा के क्षेत्र में अस्थाई नौकरी और उसके दुष्परिणाम

 शिक्षा के क्षेत्र में अस्थाई नौकरी और उसके दुष्परिणाम

हिमाचल प्रदेश में अस्सी के दशक से विद्या उपासक के रूप में शिक्षा विभाग में अस्थाई तौर पर नियुक्तियों की जो शुरुआत हुई थी, अब यह गंभीरतम शक्ल लेती जा रही है। यह क्रम रूटीन विषय बन कर रह गया है। सभी विभागों में सरकारें नये-नये स्वरूप में हालात को बद से बदतर बनाती रही हैं। इस अस्थाई व्यवस्था को स्थाई बनाने के लिए न्यायालय, सरकार और यूनियनें लंबे समय तक अपनी ऊर्जा और समय का ह्रास करती हैं। व्यक्तिगत केस अलग से बढ़ते हैं। इस तरह की नियुक्ति मापदंड को दरकिनार कर होती हैं, जिससे कार्य कुशलता तो प्रभावित होती ही है, युवावर्ग में व्यापक असंतोष भी उभरता है। अनेक केसों में आरक्षण भी उपेक्षित रह जाता है।

नई शिक्षा नीति के तहत विभिन्न स्तर पर हजारों पद भरे जाने आवश्यक हैं, जिनके लिए लोकसेवा आयोग जैसी एजेंसियां हैं। उनको बाईपास करते हुए नौकरी देना सरकारी अपराध है। इस प्रक्रिया पर विराम या अंकुश क्या कभी नहीं लगेगा।समान कार्य के लिए समान वेतन के आधार पर ऐसी व्यवस्था गैरकानूनी है, सभी जानते हैं। उसी पद पर कॉलेज में सरकारी वेतनमान लगभग एक लाख है, जहाँ औसतन बीस हजार रुपए मासिक और वह भी अस्थाई नियुक्ति के रूप में होगी। विद्या उपासक, एडहाक, टेन्योर, कांट्रैक्ट, पैरा टीचर्स, पीटीए, एसएमसी, पीरियड पर और अब गेस्ट फैकल्टी यह सूची केवल एक विभाग की है और एक ही बीमारी के अलग-अलग नाम भर हैं। मल्टी टास्क वर्कर्स आदि अन्य व्यवस्थाएं और भी हैं। केन्द्र सहित कई राज्य सरकारें नियुक्ति की निश्चित प्रकिया का अनुसरण करती हैं जो कर्मचारी की कार्य निष्पादन शक्ति बढ़ाती हैं, कानूनी लड़ाई और असंतोष को नियंत्रित रखने के साथ सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती हैं।

प्रस्तावित योजना कई मायनों में घातक है। बेरोजगार तो इसे अपनाकर अल्पकालीन संतोष की अनुभूति करेंगे और विकल्प भी क्या है, बाद में जो होगा देखा जाएगा। मूल प्रश्न है कि मूल वेतन और नियमानुसार नियुक्ति क्यों नहीं। कब और कैसे होगी, कभी होगी भी या नहीं। ये सरकारी दांवपेंच कब तक चलेंगे। बैकडोर व्यवस्था पर विराम क्या कभी नहीं लगेगा?

यदि साधनों की कमी है तो नियुक्ति चाहे थोड़ी हो लेकिन मेरिट और सम्मानजनक वेतनमान के बिना न हो। यूजीसी नेट और सेट पास अभ्यर्थी को सामान्य दिहाड़ी दार के पैसे देकर विद्यार्थी वर्ग को कहां तक पहुंचाया जा सकता है, स्पष्ट झलक रहा है। पिछली गलतियों के परिणाम सामने हैं और जो अब होंगी वे भी सामने आएंगे। शिक्षा नीति अपने में कुछ नहीं है यदि इसके पीछे का अध्यापक सक्षम और आवश्यक ऊर्जा से ओतप्रोत नहीं है तो और उसे क्रियाशील रखना सरकार और समाज का सामूहिक उत्तरदायित्व है। इस प्रक्रिया पर पुनर्विचार आवश्यक है।

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Rama Niwash Pandey

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