राम काज से जुड़ जाऊंगा, यह कभी सोचा नहीं थाः कामेश्वर चौपाल
श्रीराम जन्मभूमि पर आज जो मंदिर बन रहा है इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देशभर में कई आंदोलन और अभियान चलाए। तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम की घटना के बाद संघ ने 1983 में एकात्मता यात्रा निकालकर पूरे देश को मथ दिया। वर्ष 1984 में राम मंदिर का विषय आ गया। तब से लेकर आज तक राम मंदिर के लिए लगातार कोई न कोई अभियान चलता रहा। मेरा सौभाग्य है कि उस पहली बैठक से आज तक मंदिर निर्माण को लेकर हुई सभी प्रमुख बैठकों में रहा हूं। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में भी हूं। यह बातें श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी और विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय उपाध्यक्ष कामेश्वर चौपाल ने हिन्दुस्थान समाचार के संवाददाता बृजनन्दन राजू से बातचीत में कही। प्रस्तुत है संपादित अंश-
प्रश्न- राम मंदिर का शिलान्यास आपके हाथों से हुआ था, आज प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है, क्या कहेंगे?
उत्तर- मैं अपने जीवन में प्रभु राम के काम से जुड़ जाऊंगा, यह कल्पना नहीं की थी। मैं कभी-कभी अपने भाग्य पर इतराता भी हूं कि प्रभु ने मेरे ऊपर बहुत कृपा की थी। आज उल्लास से पूरा देश भरा है। यह जो परिवर्तन हैं सांस्कृतिक पुनर्जागरण का काल है। जो इस धारा के सामने आ जाएगा वह धूमिल होकर जाएगा। 500 वर्षों में लोगों ने तन भी दिया, मन भी दिया और प्राण भी दिया। तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित।
प्रश्न- क्या शिलान्यास से पहले आपको बताया गया था कि राम मंदिर की पहली ईंट आपके हाथों रखी जाएगी?
उत्तर- उस समय बात जरूर हो रही थी कि किसी अनुसूचित समाज के व्यक्ति से पहली ईंट रखवाई जाएगी लेकिन वह सौभाग्यशाली मैं ही होऊंगा, यह नहीं पता थाा। शिलान्यास दैवीय काम था। वर्ष 1989 में कहा गया था कि अयोध्या संगठन मंत्रियों को नहीं आना है। राम शिलाओं को भेजकर मैं गया में था। रास्ते में झगड़ा हो गया तो कहा गया कि किसी जिम्मेदार पदाधिकारी को शिला के साथ जाना है। यहां युद्ध की स्थिति थी। बजरंग दल के कार्यकर्ता झंडा गाड़कर डटे थे। पुलिस कब्जा करना चाहती थी। मुझे अयोध्या बुलाया गया। अशोक सिंहल जी ने अचानक मुझे मंच पर बुलाया और मेरे नाम की घोषणा कर दी गई। उस समय जब घोषणा हुई तो मैं संज्ञा शून्य हो गया। अचानक मुझे लगा कि क्या हो रहा है, मुझे पता ही नहीं चला।
प्रश्न- कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने रामलला का निमंत्रण ठुकरा दिया, इस पर आपका क्या कहेंगे?
उत्तर- राम के नाम पर कांग्रेस को चिढ़ हो गयी है। रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीताराम गाने वाले महात्मा गांधी ने ही इस देश की राजनीति में राम के नाम का उपयोग किया था। हमारे शास्त्रों में आचार्यों ने लिखा है कि सत्ता निष्ठुर होती है। सत्ता का न तो धर्म होता है और न ही कोई चरित्र होता है।
प्रश्न- अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में थोड़ा बताएं।
उत्तर- मैंने जिस परिवार में जन्म लिया था वह दलित परिवार जरूर था लेकिन संस्कार की दृष्टि से मुझे लगता है कि वह किसी भक्त का परिवार था। मेरी मां भक्तिभाव में रमी रहती थीं। मेरे घर संतों का आना जाना हुआ करता था। इसलिए धर्म के प्रति अनुराग बचपन से था। मेरे घर की 15 किलोमीटर की परिधि में कोई पढ़ने-लिखने की व्यवस्था नहीं थी। जहां मेरा जन्म हुआ कोसी नदी का वह किनारा अत्यंत पिछड़ा था। सरकारी सहायता भी वहां तक नहीं पहुंच पाती थी।
प्रश्न- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से आपका संपर्क कैसे आया?
उत्तर- हाईस्कूल में पढ़ाई के दौरान शिक्षक हृदय नारायण यादव ने मुझे स्वयंसेवक बनाया। जहां मैं रहता था वह अनुसूचित जाति का छात्रावास था। विद्यालय के प्रबंधक कांग्रेस के नेता थे। उसी विद्यालय में हमारे शिक्षक भी रहते थे। हृदय नारायण यादव संघ के हैं कोई जानता नहीं था क्योंकि उस समय कांग्रेस का बोलबाला था। वह सुबह-शाम खेल खिलाते थे। प्रेम एवं अपनत्व के कारण धीरे-धीरे वह हम लोगों के मन में रम गये थे। वह हर प्रकार की सहायता भी करते थे। हाईस्कूल पास करने के बाद आगे की पढ़ाई कराने के लिए घरवाले तैयार नहीं थे। बहुत अनुनय-विनय के बाद पिता जी ने 90 रुपये दिये। हृदय नारायण यादव ने संघ के जिला बौद्धिक प्रमुख भोगेन्द्र झा के नाम से हमें एक चिट्ठी लिखकर दी जिसके कारण जगदीशनन्दन महाविद्यालय में हमारा दाखिला हो पाया। धीरे-धीरे हम संघ में रम गये। संघ के साथ-साथ विद्यार्थी परिषद में काम करने को कहा गया। जिला प्रमुख बनाया। छात्रसंघ का चुनाव लड़ा तो छात्रसंघ अध्यक्ष बन गया।





