‘सम्राट की कब्र’ में सामने आया ब्रज के किसानों का पराक्रम
मुगल काल में उनके उत्पीड़न से त्रस्त लोगों को नेतृत्व करने वाले किसान रामकी चाहर और भरतपुर के किसान राजाराम के संघर्षों को लेकर आगरा के वरिष्ठ पत्रकार डॉ सुरेंद्र सिंह की पुस्तक ‘सम्राट की कब्र’ (कहानी रामकी चाहर की) बाजार में आ गई है। इस पुस्तक में करीब 350 साल पहले के एक ऐतिहासिक घटनाक्रम को दर्शाया गया है। यह घटना यह प्रमाणित करती है कि मुगलकाल में ब्रज क्षेत्र के किसानों को दबाया नहीं जा सका था। उन्होंने अपने पराक्रम और साहस से उस समय मुगल सल्तनत से टक्कर ली थी, जिसका डंका पूरी दुनिया में बजता था।
पुस्तक ‘सम्राट की कब्र’ के नायक मुगलकाल के दौरान आगरा के रामकी चाहर और भरतपुर के राजाराम सामान्य किसान हैं, जिनके नेतृत्व में किसानों ने न केवल मुगलों को टैक्स देना बंद कर दिया था बल्कि आगरा में सिकंदरा इलाके में स्थित अकबर की कब्र के स्मारक पर हमला कर दिया था और अकबर की कब्र को खोदकर उसकी हड्डियों को जला दिया था। किसानों के हमले में स्मारक को काफी नुकसान पहुंचाया था। उस घटना के निशान आज भी वहां हैं।
बेशक अकबर के मकबरे को दुरुस्त किया गया और टूटी मीनारों की मरम्मत हो गई है, लेकिन उसका एक हिस्सा आज भी क्षतिग्रस्त है, जो उस समय के भारतीय किसानों के संघर्ष की गौरव गाथा बखान करता है। घटना के समय औरंगजेब सम्राट था। पुस्तक के अनुसार औरंगजेब किसानों के इस दुस्साहस से इतना आहत हुआ था कि उसे पछतावा हुआ था कि उसने क्यों किसानों से पंगा लिया।
पुस्तक में इस बात का विस्तार से जिक्र है कि किसानों ने यह विद्रोह क्यों किया और मुगलों से टक्कर लेने के लिए उन्होंने अपनी ताकत को कैसे बढ़ाया, कितनी बार हमला किया। हमला के दौरान क्या क्या किया। पुस्तक के इन दोनों नायकों ने मुगल साम्राज्य के जिन तीन सेनापतियों को मारा था, वह कौन-कौन थे, उन्हें कब और कैसे मारा। लेखक ने अकबर के मकबरे पर किसानों के हमले की घटना को विस्तार से लिखा है। इस घटना में किसानों को अपनी जान चुकानी पड़ी थी।
राजस्थान में हुई एक लड़ाई में किसान राजाराम ने वीरगति प्राप्त की थी और रामकी चाहर को घायल अवस्था में पकड़कर मुगल सेना ने आगरा किले में पहले फांसी पर लटकाया और फिर सिर धड़ से अलग कर किले के बाहर लटका दिया ताकि लोगों में खौफ पैदा हो और वे विद्रोह न कर सके। किसानों के दुस्साहस से मुगलों के खिलाफ विद्रोह की जो चिंगारी उठी थी, उसका परिणाम हुआ कि कुछ ही साल में आगरा से मुगलों का लगभग सफाया हो गया। इस लड़ाई को आजादी की पहली लड़ाई भी माना गया था। पुस्तक में सप्रमाण इसका वर्णन है, अनेक सजीव फोटो भी हैं।
लेखक ने पुस्तक को रोचक बनाने के लिए इसे तोता-मैना के किस्सा के रूप में प्रस्तुत किया है। इस ऐतिहासिक घटनाक्रम पर आधारित यह पहली पुस्तक है, जिसमें इस घटना का विस्तार से वर्णन किया गया है। अभी तक तमाम लेखकों और इतिहासकारों ने अपनी किताबों में इस घटनाक्रम को बहुत ही संक्षिप्त में लिखा है। इस पुस्तक को नई दिल्ली के एसोसिएटिड पब्लिसिंग हाउस ने प्रकाशित किया है और इसका मूल्य 595 रुपये है।




