पं. बंगाल के दो वैज्ञानिक भी जुड़े हैं आदित्य-एल 1 मिशन से

चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के बाद अब भारत सूरज की बनावट का अध्ययन करने के लिए तैयार है। भारत के आदित्य- एल 1 मिशन पर न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया की निगाह टिकी हुई है। इस मिशन से पश्चिम बंगाल के वैज्ञानिक वरुण विश्वास भी जुड़े हैं। वह पांच सदस्यों की उस टीम का हिस्सा हैं जो आदित्य- एल 1 मिशन से हासिल होने वाले डेटा का विश्लेषण करेगी।
हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में वरुण बताते हैं की धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर एल-1 पॉइंट पर आदित्य यान को भेजा जाएगा। यह ऐसा पॉइंट है जहां सूरज की रोशनी हमेशा पड़ती है। किसी भी ग्रह उपग्रह की छाया यहां नहीं पड़ती। यानी यहां इस यंत्र के स्थापित होने के बाद लगातार सूरज की रोशनी इस पर पड़ेगी जिसकी वजह से इसमें लगे यंत्रों के जरिए सूरज की बनावट, वहां वातावरण आदि के बारे में विस्तृत अध्ययन किया जाएगा। वरुण ने बताया कि इस मिशन के लिए 15 साल पहले से ही तैयारी शुरू हो गई थी। इसरो का यह बेहद ही महत्वाकांक्षी मिशन है क्योंकि यह भारत का पहला सौर अध्ययन अभियान भी है।
उन्होंने बताया कि रॉकेट से प्रक्षेपण के बाद अमूमन होता यह है कि चौतरफा गुरुत्वाकर्षण की वजह से यान अपना रास्ता भटक जाते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों की एक टीम लगातार आदित्य- एल 1 मिशन के सफर पर नजर रखेगी। अगर कहीं भी आदित्य मिशन अपना रास्ता भटकता है तो उसे श्रीहरिकोटा स्थित केंद्र से कमांड भेज कर सही रास्ते पर लाया जाएगा। उन्होंने बताया कि आदित्य- एल 1 मिशन के जरिए सूर्य के सबसे बाहरी आवरण की बनावट का अध्ययन किया जाएगा। वहां प्रकृति और सौर किरणों की प्रकृति का भी अध्ययन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि अगर यह अभियान भी सफल होता है तो भारत अंतरिक्ष की रेस में और एक कदम आगे बढ़ेगा।
बंगाल के एक और वैज्ञानिक दिव्येंदु नदी भी इस मिशन से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि आदित्य- एल 1 में सात प्रमुख यंत्र लगे हैं जिनम सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप की निगरानी की जिम्मेवारी इनकी है। सूरज से बहुत ही तेज अल्ट्रावायलेट किरणें भी आती हैं जो बेहद घातक होती हैं। उनका अध्ययन करना और उसके विश्लेषण करने की जिम्मेवारी नंदी की है। वह बताते हैं कि यह पहली बार होगा जब भारत अपने यंत्र के जरिए हासिल होने वाले डेटा के आधार पर सूरज के बारे में सबसे सटीक विश्लेषण कर पाएगा।
