पाई-पाई जोड़ कर बनाया था आशियाना, चंद मिनटों में सब बर्बाद हो गया

राजधानी दिल्ली में तीन दिन लगातार हुई बारिश के कारण यमुना का जलस्तर बढ़ा। इससे कई इलाके प्रभावित हुए और पूरी दिल्ली जाम में फंस गई। दिल्ली में आई बाढ़ में सबसे ज्यादा यमुना खादर के साथ ही जैतपुर पार्ट-2 स्थित विश्वकर्मा कॉलोनी भी पूरी तरह जलमग्न हो गई। यहां रहने वाले करीब सात से आठ हजार लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हो गए। वहीं कुछ लोग अब भी जान हथेली में लेकर घर से जरूरी सामान लेने के लिए डूबते हुए जा रहे हैं।
स्थानीय लोगों ने बताया कि 20 से 25 साल से यहां पर रह रहे हैं। पाई-पाई जोड़कर अपना आशिायाना बनाया था, लेकिन चंद मिनटों में यमुना का पानी करीब 800 घरों में घुस गया। लोगों का सारा सामान पानी में डूब गया। लोगों के हाथों में जो लगा वह लेकर वहां से निकल पड़े। उसके बाद भी लोगों को दिल्ली सरकार की तरफ से अभी तक कोई मदद नहीं मिल रही है। वहीं प्रभावित लोगों को मंदिर, मदरसे और धर्मशाला में ठहराया गया है।
जैतपुर पार्ट-2 स्थित विश्वकर्मा कॉलोनी 1999 में बसा था। कॉलोनी के साथ ही वसंतपुर गांव नाला है। नाले के एक तरफ दिल्ली का जैतपुर पार्ट-2 है। वहीं दूसरी तरफ फरीदाबाद पड़ता है। इस इलाके में करीब 800 से अधिक घर हैं। इसमें करीब सात से आठ हजार लोग रहते हैं। यहां कुल करीब 3200 लोगों के घरों में बीएसईएस का बिजली का मीटर भी लगा हुआ है। ज्यादातर लोग प्रवासी हैं। यह लोग उप्र-बिहार और अन्य राज्यों से हैं।
सरकार की नहीं मिली मदद, अन्य लोग कर रहे मदद
स्थानीय लोगों का आरोप है कि यमुना का पानी घरों में घुस चुका है, लेकिन सरकार की तरफ से न तो खाने के लिए कुछ मिल रहा है, न ही उन्हें सुरक्षित जगह रखने की व्यवस्था की गई है। लोग भूखे-प्यासे बीते चार दिनों से इधर से उधर भटक रहे हैं। हालांकि जब सरकार से कोई मदद नहीं मिली तो स्थानीय लोग ही मदद के लिए आगे आए।
सोशल वर्कर वीरेन्द्र महाराज और नफीस कुरैशी ने बताया कि करीब 500 लोगों को मदरसे में रखा गया है और 500 लोगों को धर्मशाला में तो कुछ को जैतपुर स्थित सरकारी स्कूल में रखा गया है। वहीं कई लोग आसपास के मंदिर और सड़क के किनारे टेंट लगाकर रह रहे हैं। वहीं स्थानीय निवासियों में चार से पांच लोग मिलकर इन लोगों के लिए खाने की व्यवस्था भी कर रहे हैं।
वोट के लिए तो सभी नेता आते हैं
बाढ़ में अपना आशियाना गवां चुकी सुनीता ने बताया कि वह पिछले 20 वर्षों से यहां पर रह रही है। पति के साथ काम करके उन्होंने गृहस्थी बसाई थी, लेकिन चंद ही मिनटों में सब बर्बाद हो गया। घटना वाले दिन वह परिवार के साथ घर में मौजूद थी। अचानक तेजी से पानी आया और वह अपने बच्चों के साथ बाहर आ गई। देखते-देखते आधा घर पानी में डूब गया। सुनीता का आरोप है कि हर साल नेता लोग वोट के लिए आते है, लेकिन कोई काम नहीं करता। यहां रोड व बड़े नाले बना दिए होते तो उनका घर आज नहीं डूबता।
‘साहब पैसे होते तो यहां क्यों रहते’
देवेश कुमार ने बताया कि वह मूलत: बिहार के रहने वाले हैं। वह विश्वकर्मा कॉलोनी में पिछले 20 सालों से रह रहे हैं। वह जब यहां आये थे तो सब जंगल था। एक-एक पैसा जोड़कर उन्होंने छोटा सा घर बनाया। बड़े घर में कौन रहना नहीं चाहता। अगर उनके पास रुपये होते तो वह भी अच्छी जगह अपना घर बनाते। इस घर में उनकी यादें जुड़ी हैं। उनके दोनों बच्चे इसी घर में पैदा हुए और बड़े हुए। स्थानीय निवासी प्रवेश ने बताया कि सब जगह पानी कम हुआ है, यहां अभी नहीं हुआ। इस बाढ़ में लोग तो जैसे-तैसे बच गए, लेकिन कई मवेशी पानी में डूबकर मर गए। ऐसे में यहां अब बीमारी का डर भी बना हुआ है।
