• December 25, 2025

विभिन्नता में एकता का अद्भुत उदाहरण है भारत : डॉ सूर्यपाल सिंह

 विभिन्नता में एकता का अद्भुत उदाहरण है भारत : डॉ सूर्यपाल सिंह

 उत्तर भारतीय एवं दक्षिणी भाषाओं के बीच निरंतर संवाद होना भारतीय उत्कर्ष ही नहीं अस्मिता के लिए भी आवश्यक है। सुखद यह है कि यह संवाद विभिन्न अवसरों पर चल रहा है। विभिन्नता में एकता का अद्भुत उदाहरण है भारत, यही हमारी सम्पत्ति है। तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम से हिन्दी में तथा हिन्दी से इन भाषाओं में अनुवाद निरंतर हो रहे हैं।

उक्त विचार मुख्य अतिथि गोण्डा के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सूर्यपाल सिंह ने गांधी सभागार में ‘उत्तर दक्षिण भाषायी संवाद : स्थिति और संभावानाएं’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में व्यक्त किया। बुधवार को हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि दक्षिण के बहुत से लेखक हिन्दी में सार्थक लेखन कर रहे हैं। वास्तव में वे उत्तर और दक्षिण के मैत्री पुल को सशक्त बना रहे हैं। केरल में तो हिंदी अध्यापक के आचार्यों की एक पीढ़ी अवकाश प्राप्त और दूसरी पीढ़ी कार्यरत हैं। दूरियां निकटता में बदल रही हैं।

वरिष्ठ साहित्यकार, प्रयागराज रविनन्दन सिंह ने कहा कि भाषा सांस्कृतिक एकता की बुनियाद है। उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सदियों से भाषायी संवाद की स्थिति रही है। इस भाषायी संवाद का पहला और आधारभूत कारण रही है, भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक एकता। दूसरा कारण है अनुवाद। वर्तमान में अनुवाद उत्तर दक्षिण को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि उत्तर और दक्षिण भारतीय भाषाओं में सेतु निर्माण और वहां की साहित्य, संस्कृति के प्रचार-प्रसार और उत्तर भारत की गतिविधियों के माध्यम से दक्षिण भारत में यहां भी साहित्य, संस्कृति और भाषा के माध्यम से एक नए तरह का वातावरण तैयार हो जाने की सम्भावना है। तमिल संगमम् ऐसा ही एक प्रयास था। दोनों ध्रुवों की समरसता के निर्माण में ऐसे प्रयास महत्वपूर्ण साबित होंगे।

केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के प्रो. उमापति दीक्षित ने कहा कि दक्षिण की सबसे पुरानी भाषा तमिल का लिखित साहित्य 2300 वर्षों से भी अधिक माना जाता है। इसके बाद से तमिल भाषा का विकास जारी है। आज तमिल भाषा में लगभग 1863 अखबार प्रकाशित होते हैं। प्रमुख रूप से यह भाषा भारत, श्रीलंका, सिंगापुर और मलेशिया में बोली जाती हैं। काशी तमिल संगमम का आयोजन वाराणसी में हुआ। एक महीना चले इस कार्यक्रम में तमिल से आए लोगों ने काशी में रहकर साझी संस्कृति के उन्नयन व विकास में सकारात्मक सहयोग किया। केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा ने तमिल और तेलगु अध्येता कोषों का निर्माण भी किया है। सत्र का संचालन इविवि के डॉ विनम्रसेन सिंह ने किया।

द्वितीय सत्र में प्रयागराज के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के शोधार्थियों के द्वारा शोधपत्र वाचन किया गया। सी.एम.पी डिग्री कालेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सरोज सिंह ने कहा कि भारतीय साहित्य में समरसता और गतिशीलता है। साहित्यिक कथ्य उत्तर और दक्षिण में समान है। जिसमें रामायण, महाभारत, पुराण, भागवत बौद्ध, जैन तथा अन्य धर्मों का साहित्य लिया जा सकता है।

तृतीय सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार, कानपुर डॉ. रमेशचन्द्र शर्मा ने कहा कि भाषा व्यवहार में आने से सिद्ध होती है। उत्तर दक्षिण दोनों के हिन्दी प्रेमियों को सतत पुरूषार्थ करते रहना चाहिए। आज नहीं तो कल राष्ट्रीय एकता तथा भावनात्मक एकता हेतु हिन्दी सम्पर्क भाषा के रूप सम्पूर्ण भारत में प्रतिष्ठित होगी। उत्तर, दक्षिण पूर्व पश्चिम सर्वत्र हिन्दी बोलने व सीखने की ललक बढ़ रही है और बढ़ेगी। इविवि हिन्दी विभाग के प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि भाषायी संवाद से लोकभाषाएं मजबूत होती हैं। उत्तर-दक्षिण भाषायी संवाद से हिन्दी समर्थ होगी और वैश्विक स्तर पर तकनीकी नवाचारों से हिन्दी दुनिया की प्रथम भाषा बनेगी।

इसके पूर्व एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर हिन्दुस्तानी एकेडेमी उप्र, प्रयागराज द्वारा प्रकाशित ‘हिन्दुस्तानी’ त्रैमासिक के स्वाधीनता आन्दोलन पर केन्द्रित विशेषांक के द्वितीय खण्ड का विमोचन अतिथियों ने किया। संचालन डॉ. अनिल सिंह ने किया। कार्यक्रम में डॉ. मार्तण्ड प्रताप सिंह, डॉ. कल्पना वर्मा, डॉ. आभा त्रिपाठी, डॉ. आनंद कुमार सिंह, डॉ. श्लेष गौतम, उर्वशी उपाध्याय, विवेक सत्यांशु, शाम्भवी, सहित शोधार्थी एवं शहर के विद्वान उपस्थित रहे।

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