यूपी में 76वां जिला: कल्याण सिंह नगर से बदलेगा नक्शा, लेकिन क्या है पूरा खर्चा?
लखनऊ, 30 अक्टूबर 2025: उत्तर प्रदेश के नक्शे में एक नया अध्याय जुड़ने वाला है, जो सिर्फ प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि भावनाओं और इतिहास का प्रतीक बनेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की घोषणा ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है—एक नया जिला, जो पूर्व नेता की स्मृति को अमर करेगा। लेकिन यह फैसला कितना आसान है? सीमाओं का पुनर्गठन, संसाधनों का बंटवारा और विकास की चुनौतियां—सब कुछ एक जटिल प्रक्रिया का हिस्सा है। देशभर में जिलों की संख्या क्यों बढ़ रही है, और इसके पीछे छिपा खर्च क्या है? स्थानीय लोगों के लिए यह वरदान साबित होगा या नई मुश्किलें लाएगा? अभी तो बस शुरुआत है। आइए जानते हैं पूरी खबर क्या है।
कल्याण सिंह: आंदोलन का प्रतीक, नए जिले का नाम
कल्याण सिंह का नाम आते ही उत्तर प्रदेश की राजनीति का वह दौर याद आ जाता है, जिसने देश के सत्ता समीकरण तक बदल दिए थे। वे सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि जनभावनाओं के प्रतीक थे। राम मंदिर आंदोलन की पृष्ठभूमि में उनकी भूमिका ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक अलग मुकाम दिया। उनके नाम पर जिले का गठन केवल एक औपचारिक निर्णय नहीं, बल्कि एक भावनात्मक सम्मान भी है। यह कदम उन हजारों लोगों के लिए गर्व का विषय है, जिन्होंने कल्याण सिंह के नेतृत्व में राजनीति और समाज सेवा का नया अर्थ देखा था। अलीगढ़ के अतरौली-गंगीरी क्षेत्र और बुलंदशहर के डिबाई तहसील को मिलाकर बनने वाला यह जिला, कल्याण सिंह की जन्मभूमि से जुड़ा होगा। पूर्व सांसद राजवीर सिंह की मांग पर योगी सरकार ने यह कदम उठाया है, जो भाजपा की स्मृति राजनीति को मजबूत करेगा।
भारत में जिलों का सफर: 230 से 797 तक
आजादी के समय भारत में लगभग 230 जिले थे, लेकिन समय के साथ जनसंख्या और विकास की जरूरतों ने प्रशासनिक ढांचे को पुनर्गठित करने की दिशा में राज्यों को प्रेरित किया। वर्तमान में देश में 797 जिले हैं। उत्तर प्रदेश, जो कभी संयुक्त प्रांत के नाम से जाना जाता था, आज 75 से अधिक जिलों के साथ देश का सबसे बड़ा प्रशासनिक राज्य बन चुका है। पिछले एक दशक में राजस्थान और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में जिलों की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। राजस्थान ने हाल ही में 19 नए जिलों का गठन किया, जबकि आंध्र प्रदेश ने भी इतनी ही संख्या में जिलों को जोड़ा। मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने भी नए जिलों के गठन से प्रशासनिक तंत्र को अधिक प्रभावी बनाया है। यह रुझान बताता है कि नया जिला बनाना अब केवल भौगोलिक पुनर्संरचना नहीं, बल्कि सुशासन की अनिवार्य प्रक्रिया बन चुका है। 2011 की जनगणना के बाद से ही 100 से अधिक जिले जुड़े हैं।
नया जिला: प्रक्रिया और चुनौतियां
किसी भी नए जिले का गठन पूरी तरह से राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह या तो विधानसभा में विधेयक पारित करके किया जाता है, या फिर सरकारी अधिसूचना जारी करके। इसके तहत सीमाओं का निर्धारण, संसाधनों का बंटवारा, बजट और प्रशासनिक ढांचा तैयार किया जाता है। सबसे पहले नए जिले में जिलाधिकारी (डीएम) और पुलिस अधीक्षक (एसपी) की नियुक्ति होती है, जिनके माध्यम से प्रशासनिक ढांचा आकार लेना शुरू करता है। यदि जिले या शहर का नाम बदलना शामिल हो, तो केंद्र सरकार से मंजूरी आवश्यक होती है। गृह मंत्रालय और अन्य विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किए बिना यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती। कल्याण सिंह नगर का गठन इस लिहाज से एक राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों तरह का कदम है, जो भाजपा की स्मृति राजनीति और क्षेत्रीय पहचान को एक नई दिशा देता है। अलीगढ़ और बुलंदशहर के जिलाधिकारियों से फीजिबिलिटी रिपोर्ट मांगी गई है।
स्थानीय बदलाव और आर्थिक बोझ
अलीगढ़ और बुलंदशहर के कई गांवों में अब तक जिला मुख्यालय तक पहुंचने में लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी। यह केवल दूरी नहीं, बल्कि सरकारी योजनाओं और सुविधाओं से जुड़ने की एक बड़ी बाधा भी थी। नया जिला बनने के बाद लोगों को सरकारी सेवाएं, योजनाएं और प्रशासनिक सुविधाएं नजदीक मिल सकेंगी। भूमि विवाद, राजस्व संबंधी कार्य, पुलिसिंग और न्यायिक सेवाओं में तेजी आएगी। इसके अलावा, स्थानीय व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन के क्षेत्र में नए अवसर पैदा होंगे। हालांकि बदलाव तुरंत नहीं दिखेंगे, लेकिन विकास की दिशा तय हो जाएगी और यह दिशा लोगों के जीवन में स्थायी परिवर्तन की नींव रखेगी। किसी भी नए जिले के गठन में औसतन 2,000 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आता है। इसमें जिला मुख्यालय, कलेक्ट्रेट, न्यायालय, स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल, सड़कों और अन्य सरकारी भवनों के निर्माण पर लगभग 500 करोड़ रुपये तक का खर्च होता है। इन्फ्रास्ट्रक्चर, बिजली, पानी, सड़क और सफाई जैसी आधारभूत व्यवस्थाओं पर लगभग 1,500 करोड़ रुपये की जरूरत होती है।