आज कलश स्थापना के दिन मंदिरों सहित घरों में भी कलश की की गई स्थापना

शक्ति की देवी मां दुर्गा की नवरात्र पूजा आज से कलश स्थापना के साथ प्रारंभ हो गई है। विभिन्न मोहल्ले तथा कसबों के मंदिरों में भी कलश की स्थापना कर भक्ति भाव से पूजा अर्चना की गई।
पंडित जमुना झा भारद्वाज कहते हैं किसससससण् नवरात्र के इन नौ दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा होती है। इस बार हाथी पर सवार होकर मां दुर्गा अपने साथ सुख समृद्धि लेकर आ रही है। नवरात्र शारदीय पूजा में इस 9 दिनों में मां के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है जिसमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी ,चंद्रघंटा , कूष्मांडा ,स्कंदमाता, कात्यायनी ,कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धदात्री की पूजा की जाती है।
वह कहते हैं कि शारदीय नवरात्र में जो पूजा की जाती है यह बहुत ही संयम तथा धैर्य के साथ शुद्धता धारण कर यज्ञ के समान नवरात्र के सभी दिनों में पूजा करनी होती है। मां दुर्गा के सभी भक्त इन नौ दिनों में संयम के साथ उपासना करते हैं नवरात्र के नौवें दिन कुमारी कन्या पूजन की जाती है। बहुत या अधिकतर जगहों पर नवरात्र के दिन बलि प्रदान की प्रथम है। कई देवियों जैसे माता काली माता लक्ष्मी और माता सरस्वती के रूप में उपासक या सड़क अपने विभिन्न ईस्ट के रूप में मां दुर्गा की पूजा करते हैं क्योंकि इस शारदीय नवरात्र में अलग ही प्रकार की शक्ति विचरण करती है।
इस दौरान तांत्रिक पूजा करने वाले भी अपने तांत्रिक शक्ति के द्वारा पूजन विधि कर अपने आप को माता दुर्गा के प्रति समर्पित करते हैं। मां दुर्गा के सभी अध्यायों की पाठ करने के उपरांत ही पुजारी अथवा उपासक कुछ आहार लेते हैं। नवरात्र के दिन ही हवन किया जाता है एवं नवग्रह की लड़कियों के साथ नवग्रह की पूजा की जाती है।
पंडित जमुना झा भारद्वाज कहते हैं कि अपने मन के हिसाब से फल पाने के लिए उपासक या भक्त सप्तश्लोकी दुर्गा माता के पाठ करते हैं ।यह पाठ 108 बार अष्टमी की रात्रि में किया जाता है। इस दौरान नौ दिनों तक अखंड दीपक जलाए जाते हैं।
वह कहते हैं कलश स्थापना से पहले मिट्टी के कलश को अच्छे से साफ कर एक मिट्टी का छोटा सा चबूतरा तैयार कर उसपर कलश को रखा जाता है। कलर्स पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाने के बाद कलश के ऊपरी भाग में कच्चे सुते का मौली बांधा जाता है। कलर्स पर आम का पल्लव रखने के बाद उसे पर मौली बांधकर नारियल को शुद्धिकरण कर रखा जाता है। इस नारियल को लाल कपड़े में लपेट दिया जाता है। जिस मिट्टी के चबूतरे पर कलश को रखा जाता है कलश के चारों ओर मिट्टी पर जौ के बीज छिट दिए जाते हैं जो बाद में नवरात्र के समय तक बड़ा हो जाता है और उसे माता का बहुत बड़ा प्राकृतिक आशीर्वाद मानकर पुरोहित द्वारा जजमानों को कान पर रखने के लिए दिया जाता है। जिससे एक बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
पंडित जमुना झा भारद्वाज कहते हैं कि इस बार माता दुर्गा जी हाथी पर आई हैं इसलिए हाथी पर आना अच्छे बारिश के होने का संकेत है। सुख संपत्ति तथा खुशियां एवं समृद्धि के आने का संकेत है।
