• October 15, 2025

इतिहास के पन्नों में 03 अगस्तः आ गया राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को याद करने का मौका

 इतिहास के पन्नों में 03 अगस्तः आ गया राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को याद करने का मौका

देश दुनिया के इतिहास में 03 अगस्त की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। कई ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं, जिन्होंने इस तारीख को ऐतिहासिक बनाया है। हिंदी साहित्य में आज की तारीख बेहद अहम है। इसी तारीख को 1886 में कवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म हुआ था। हिंदी साहित्य को उसकी बुलंदियों तक पहुंचाने में उनका अहम योगदान है। उनकी रचनाओं ने न केवल हिंदी काव्य की परिभाषा बदल दी, बल्कि लोगों में साहित्य के प्रति रुचि को भी बढ़ाया। मैथिलीशरण गुप्त की कृतियों में सरलता और नई दिशा देखने को मिलती है। इस साल तीन अगस्त को हम उनकी 138वीं जयंती मनाएंगे।

झांसी जिले के चिरगांव में जन्मे मैथिलीशरण गुप्त के पिता का नाम रामचरण और माता का नाम काशी देवी था। वे अपने माता-पिता की तीसरी संतान थे। इनके पिता का व्यापार करते थे। साथ ही भक्ति-भाव की कविताएं लिखा करते थे। उनसे ही प्रेरित होकर मैथिलीशरण गुप्त भी कविताएं लिखने लगे थे। इनके गुरु पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी थे। मैथिलीशरण गुप्त खड़ी बोली के पहले कवि माने जाते हैं।

मैथिली शरण गुप्त की शादी मात्र नौ वर्ष की उम्र में ही हो गई थी, लेकिन शादी के कुछ ही वर्षों बाद उनकी पत्नी का देहांत हो गया। मैथिली शरण गुप्त ने अपने लेखन के शुरुआती दौर में सरस्वती जैसी पत्रिकाओं में कविताएं लिखीं। इनकी पहली प्रमुख कृति ‘रंग में भंग’ वर्ष 1910 में प्रकाशित हुई। इनकी प्रमुख काव्यगत कृतियां हैं ‘रंग में भंग’, ‘भारत-भारती’, ‘जयद्रथ वध’, ‘विकट भट’, ‘प्लासी का युद्ध’, ‘गुरुकुल’, ‘किसान’, ‘पंचवटी’, ‘सिद्धराज’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘अर्जुन-विसर्जन’, ‘काबा’ और कर्बला’, ‘जय भारत’, ‘द्वापर’, ‘नहुष’, ‘वैतालिक’, ‘कुणाल’। गुप्त जी की कृति ‘भारत भारती’ वर्ष 1912 में आई थी। यह एक राष्ट्रवादी कविता है।

‘भारत भारती’ प्रसिद्ध काव्यकृति है। यह स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का एक सफल प्रयोग है। भारतवर्ष के संक्षिप्त दर्शन की काव्यात्मक प्रस्तुति ‘भारत भारती’ निसंदेह किसी शोध कार्य से कम नहीं है। भारतीय साहित्य में ‘भारत भारती’ सांस्कृतिक नवजागरण का ऐतिहासिक दस्तावेज है।

मैथिलीशरण गुप्त जिस काव्य के कारण जनता के प्राणों में रचे-बसे और ‘राष्ट्रकवि’ कहलाए, वह कृति ‘भारत भारती’ ही है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में पहले पहल हिन्दीप्रेमियों का सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली पुस्तक भी यही है। इसकी लोकप्रियता का आलम यह रहा है कि इसकी प्रतियां रातोंरात खरीदी गईं। प्रभातफेरियों, राष्ट्रीय आन्दोलनों, शिक्षा संस्थानों, प्रातःकालीन प्रार्थनाओं में भारत भारती के पद गांवों-नगरों में गाये जाने लगे। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका में कहा कि यह काव्य वर्तमान हिन्दी साहित्य में युगान्तर उत्पन्न करने वाला है। इसमें यह संजीवनी शक्ति है जो किसी भी जाति को उत्साह जागरण की शक्ति का वरदान दे सकती है। ‘हम कौन थे क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी’ का विचार सभी के भीतर गूंज उठा। उल्लेखनीय है कि ‘भारत भारती’ की इसी परम्परा का विकास माखनलाल चतुर्वेदी, नवीन जी, दिनकर जी, सुभद्रा कुमारी चौहान, प्रसाद-निराला जैसे कवियों में हुआ।

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Rama Niwash Pandey

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