• November 26, 2025

मायावती पर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं विपक्षी नेता, क्या है वजह ?

लखनऊ, 25 नवंबर 2025: उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों एक अजीब खामोशी में डूबी है। सत्ता के बड़े खिलाड़ी हों या विपक्ष के दिग्गज—सबकी निगाहें एक ही नाम पर अटकी हैं, लेकिन कोई खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा रहा। चार बार की मुख्यमंत्री, एक ऐसा चेहरा जिसकी गतिविधियाँ अचानक बढ़ गई हैं… और जिसकी वजह से यूपी की सियासत में हलचल तो है, मगर बयानबाज़ी पूरी तरह गायब। आखिर दलित वोटर्स को लेकर इतना सन्नाटा क्यों? कौन-सी चालें आने वाले चुनावों को पलट सकती हैं? क्या 2027 की चाबी फिर उसी हाथ में लौटने वाली है? असल तस्वीर धीरे-धीरे साफ हो रही है।

दलित कोर का फिर से सक्रिय होना

2007 में यूपी की मुख्यमंत्री रहीं मायावती चार बार राज्य की कमान संभाल चुकी हैं। लेकिन 2007 के बाद उनका ग्राफ लगातार गिरता गया और हालात ऐसे हुए कि विधानसभा में बसपा के पास अब सिर्फ एक विधायक—बलिया के उमाशंकर सिंह—बचे हैं। लोकसभा में पार्टी शून्य पर है। यह स्थिति मायावती को नई रणनीति के साथ पार्टी को दोबारा खड़ा करने की ओर ले गई है। लखनऊ की रैली में यह संदेश बिल्कुल साफ दिखा कि बसपा अपने पुराने दलित वोट बैंक को फिर सक्रिय करने की तैयारी में है। भाजपा, सपा, कांग्रेस या चंद्रशेखर की पार्टी—कोई भी मायावती पर आक्रामक बयान नहीं दे रहा। वजह भी साफ है—यूपी के करीब 20% दलित वोटर्स अब भी मायावती के नाम से भावनात्मक रूप से जुड़े माने जाते हैं। थोड़ी-सी भी नाराज़गी वोटों के सीधे नुकसान में बदल सकती है। यही वजह है कि सभी पार्टियाँ बेहद सतर्क हैं और दलित मतदाताओं के मूड को समझने में जुटी हैं।

दलित समीकरण जिसने सभी पार्टियों को संभलने पर मजबूर किया

अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के नेताओं को साफ निर्देश दिया है कि मायावती पर अनावश्यक टिप्पणी नहीं करनी है। 2024 लोकसभा चुनावों में दलित समाज बड़े पैमाने पर इंडिया गठबंधन के साथ जुड़ा और सपा को रिकॉर्ड 37 सीटें मिलीं। कुल 43 सीटों के जीतने के बाद सपा और गठबंधन समझ गए कि दलित वोट गँवाना राजनीतिक आत्मघात होगा। कांग्रेस और भाजपा भी इसी रणनीति पर चल रहे हैं। दलित समाज की भावनाएँ, मायावती की साख और बसपा की पहचान—ये तीनों फैक्टर विरोधियों को हर कदम फूंक-फूंक कर रखने को मजबूर कर रहे हैं। एक गलत बयान पूरे माहौल को बदल सकता है। इसलिए बयानबाज़ी की जगह खामोशी ने ली है, और हर पार्टी मायावती की गतिविधियों को दूरी से लेकिन बेहद ध्यान से देख रही है।

2027 की तैयारी शुरू?

मायावती अब पूरी तरह एक्टिव मोड में लौट आई हैं। लखनऊ की रैली के बाद वे अब ग्रेटर नोएडा में अपनी ताकत दिखाने जा रही हैं। बसपा में आकाश आनंद, सतीश चंद्र मिश्रा, विश्वनाथ पाल जैसे नेता मौजूद हैं, लेकिन “सुप्रीम लीडर” मायावती ही हैं—और दलित समाज में भरोसा भी उन्हीं पर टिकता है। इसी वजह से उन्होंने संगठन को फिर से खड़ा करने में तेजी दिखाई है। लगातार मीटिंग्स, ज़मीनी रिपोर्ट, कैडर एक्टिवेशन और बड़े पैमाने पर रैलियों की तैयारी—इन सबने यूपी की राजनीति में बेचैनी बढ़ाई है। विरोधी खुलकर बात नहीं कर रहे, क्योंकि एक गलत बयान 2027 में महँगा पड़ सकता है। चुप्पी इसलिए है… क्योंकि सब जानते हैं—मायावती की हर चाल सियासत का रुख बदलने की ताकत रखती है।

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Rama Niwash Pandey

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