ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने राफेल विमान के खिलाफ चली गहरी चाल, रिपोर्ट में खुलासा
भारत ने बीते मई महीने में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया था। इसके बाद पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत पर हमले की कोशिश की थी जिसे भारत ने बुरी तरह से नाकाम कर दिया था। इस दौरान पाकिस्तान ने दावा किया था कि उसने भारत के राफेल लड़ाकू विमान को मार गिराया है। हालांकि, उसका ये दावा पूरी तरह से झूठा निकला। अब एक अमेरिकी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि चीन ने जानबूझकर राफेल विमान के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान शुरू किया था। आइए जानते हैं चीन की इस करतूत के बारे में विस्तार से।
अमेरिकी-चीन आर्थिक और सुरक्षा समीक्षा आयोग की रिपोर्ट का सारांश
अमेरिकी-चीन आर्थिक और सुरक्षा समीक्षा आयोग (USCC) ने नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट में चीन की दुष्प्रचार रणनीतियों पर गहन प्रकाश डाला है। मई 2025 में भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद के दौरान, जब भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाकर पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर हमला किया, तो चीन ने फ्रांसीसी राफेल लड़ाकू विमानों के खिलाफ AI-सहायता प्राप्त दुष्प्रचार अभियान शुरू किया। रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए राफेल विमानों के कथित मलबे की AI-जनरेटेड तस्वीरें फैलाईं, जो उसके हथियारों द्वारा नष्ट होने का दावा करती थीं। इसका उद्देश्य राफेल की बिक्री को रोकना और अपने J-35 विमानों को बढ़ावा देना था। पाकिस्तान ने छह भारतीय विमानों के नष्ट होने का दावा किया, लेकिन रिपोर्ट में केवल तीन की पुष्टि हुई। चीन ने इस संकट का फायदा उठाकर पाकिस्तान को 40 J-35 जेट्स, KJ-500 विमान और मिसाइल रक्षा प्रणालियां बेचने का प्रस्ताव दिया, जिसके बाद पाकिस्तान ने 2025-26 के रक्षा बजट में 20% की वृद्धि की। यह ‘ग्रे जोन’ रणनीति का हिस्सा था, जो चीन की सैन्य क्षमताओं को वैश्विक बाजार में प्रचारित करने का प्रयास था। रिपोर्ट में भारत-चीन सीमा मुद्दों पर असममिति का भी जिक्र है, जहां चीन की महत्वाकांक्षाएं भारत के लिए खतरा बनी हुई हैं।
चीन द्वारा अमेरिका में विभाजनकारी अभियान
रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में चीन समर्थक ऑनलाइन अभिनेता सक्रिय रूप से अमेरिका में सामाजिक विभाजन पैदा करने के लिए AI-जनरेटेड न्यूज एंकरों और प्रोफाइल फोटोज के साथ नकली सोशल मीडिया खातों का उपयोग कर रहे थे। संवेदनशील मुद्दों जैसे नशीली दवाओं का सेवन, आप्रवासन और गर्भपात पर फोकस करते हुए, ये अभियान अमेरिकी समाज को ध्रुवीकृत करने का लक्ष्य रखते थे। USCC की 2024 वार्षिक रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि चीन की यह रणनीति वैश्विक स्तर पर प्रभाव डाल रही है, जहां AI टूल्स का दुरुपयोग सूचना युद्ध को तेज कर रहा है। उदाहरणस्वरूप, फर्जी वीडियो और मीम्स के माध्यम से जनमत को प्रभावित किया गया, जो अमेरिकी चुनावों और नीतिगत बहसों को निशाना बनाते थे। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि अमेरिका को AI सुरक्षा उपायों को मजबूत करना चाहिए, जैसे कि फर्जी कंटेंट का पता लगाने वाली तकनीकों का विकास। इसके अलावा, चीन की आर्थिक प्रथाओं जैसे असुरक्षित उपभोक्ता सामानों की बाढ़ और मध्य पूर्व में प्रभाव विस्तार पर भी चर्चा की गई है। यह अभियान अमेरिका-चीन व्यापार असंतुलन को बढ़ावा देने का हिस्सा माना गया, जहां बीजिंग अपनी तकनीकी श्रेष्ठता का इस्तेमाल कर रहा है।
ताइवान के खिलाफ चीन के साइबर हमले और रणनीतिक कदम
2024 में ताइवान के राष्ट्रीय सुरक्षा ब्यूरो ने खुलासा किया कि सरकारी सेवा नेटवर्क पर औसतन 2.4 मिलियन साइबर हमले प्रतिदिन हो रहे थे, जिनमें अधिकांश चीन की साइबर ताकतों के जिम्मेदार थे। रिपोर्ट में बताया गया कि ये हमले टेलीकॉम, परिवहन और रक्षा क्षेत्रों को निशाना बनाते थे, जिसमें एडवांस्ड पर्सिस्टेंट थ्रेट्स और बैकडोर सॉफ्टवेयर का उपयोग शामिल था। ताइवान के चुनावों के दौरान चीन ने व्यापार जांच और टैरिफ लगाकर दबाव बनाया, जो उसके ‘ग्रे जोन’ दृष्टिकोण का हिस्सा था। इसके अलावा, 2024 में चीन ने पलाऊ सरकार पर साइबर हमला किया, जो दक्षिण प्रशांत में उसके विस्तार का संकेत था। USCC रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि चीन की ये कार्रवाइयां ताइवान की संप्रभुता को चुनौती दे रही हैं, साथ ही अमेरिकी हितों को प्रभावित कर रही हैं। सिफारिशों में अमेरिका को ताइवान को साइबर रक्षा सहायता बढ़ाने और चीन के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है। यह बढ़ता खतरा US-चीन टकराव को साइबर क्षेत्र में विस्तार दे रहा है, जहां AI का उपयोग मेम-स्टाइल कंटेंट के जरिए आंतरिक विभाजन पैदा करने के लिए हो रहा है।