• November 14, 2025

मैक 5.5 की रफ्तार, 350 KM तक लक्ष्य खत्म: भारत का ‘सुदर्शन चक्र’ — Project Kusha तैयार कर रहा नया युग

नई दिल्ली, 8 नवंबर: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने एक ऐसे हाइपरसोनिक एयर-डिफेंस सिस्टम — ‘Project Kusha’ — पर काम शुरू किया है जो भविष्य की हवाई चुनौतियों को चुनौती देने वाला प्रतीत होता है। यह प्रणाली मैक 5.5 (लगभग 6,800 किलोमीटर/घंटे) की रफ्तार और 350 किलोमीटर तक की इंटरसेप्शन क्षमता का दावा करती है, जिससे इसके ज़रिये उच्च गति की बैलिस्टिक मिसाइलें, क्रूज़ मिसाइलें, हाइपरसोनिक व्हीकल और यहां तक कि स्टील्थ फाइटर जेट भी निशाने पर आ सकेंगे। सरकार ने इसे ‘सुदर्शन चक्र मिशन’ का केन्द्रीय घटक बताया है, जिसे 15 अगस्त 2025 को राष्ट्र स्तरीय पहल के रूप में पेश किया गया था। विशेषज्ञ इसे स्वदेशी मिसाइल तकनीक में बड़ा कदम बताते हैं, लेकिन DRDO के सामने अभी भी थर्मल, मार्गदर्शन और नियंत्रण जैसी तकनीकी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

‘Project Kusha’: भारत के लिए गेम-चेंजर

DRDO द्वारा विकसित यह Surface-to-Air Missile (SAM) सिस्टम पारंपरिक वर्टिकल लाइन्स से हटकर हाइपरसोनिक गति पर लक्ष्यों को इंटरसेप्ट करने के लिए डिजाइन किया जा रहा है। जो खास बात इसे अलग बनाती है वह है इसकी लंबी दूरी — 350 किलोमीटर तक के लक्ष्यों को रोकने और नष्ट करने की क्षमता — जो इसे लंबी दूरी के वायु खतरों के खिलाफ एक निर्णायक परत बनाती है। परियोजना को देश के सुदर्शन चक्र मिशन का मुख्य स्तम्भ बताया गया है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा 15 अगस्त 2025 को किया गया था। आधिकारिक और अनौपचारिक रिपोर्टों के अनुसार यह प्रणाली न केवल पारंपरिक फाइटर और क्रूज़ मिसाइलों को बल्कि उच्च-रफ्तार बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक वाहनों को भी निशाना बना सकेगी। हालांकि, ऐसे सिस्टम के सफल कार्यान्वयन के लिए तेज़ी से काम करने वाले सीकर, थ्रस्ट-वेक्तर कंट्रोल और कठोर थर्मल-प्रोटेक्शन आवश्यक होते हैं। इसलिए Kusha को सिर्फ मिसाइल नहीं, बल्कि एयर-डिफेंस आर्किटेक्चर में लंबी दूरी का एक नया आयाम माना जा रहा है।

तीन वेरिएंट और हाई-टेक फीचर्स: M1, M2, M3

Project Kusha के तहत तीन इंटरसेप्टर विकसित किए जा रहे हैं — M1, M2 और M3 — जिनमें से M3 को सिस्टम का मुख्य ऊँचाई-मार्ग इंटरसेप्टर बताया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक मिसाइलों में ड्यूल-पल्स सॉलिड रॉकेट मोटर, थ्रस्ट-वेक्टर कंट्रोल और सहज RF- तथा IR-सीकर्स शामिल होंगे, जो लक्ष्य को तेज़ी से पहचानने और फाइनल-एप्रोच में सटीक मार्गदर्शन सुनिश्चित करेंगे। Kusha हिट-टू-किल (direct impact) टेक्नोलॉजी का उपयोग करेगी — इसका मतलब है कि यह विस्फोटक वारहेड पर निर्भर नहीं रहकर लक्ष्य से सीधा टकराकर उसे निष्क्रिय करने की कोशिश करेगी, जिससे सटीकता और सफलता दर बढ़ती है। DRDO के आकलन में यह तकनीक 80–90% तक की सफलता दर दे सकती है, बशर्ते पायलट प्रोजेक्ट के परीक्षण और वास्तविक-ज़मीन पर तैनाती में अपेक्षित परिशुद्धता मिल जाए। MCX जैसे वायदा बाजार की तरह यह रक्षा प्रोजेक्ट भी कई चरणों में परखा जाएगा — प्रोटोटाइप परीक्षण, HSTDV से मिली तकनीकी सीख और वास्तविक-लड़ाकू परिस्थितियों में इंटीग्रेशन।

रणनीतिक असर: स्टील्थ, हाइपरसोनिक और तीन-स्तरीय रक्षा नेटवर्क

Project Kusha का एक बड़ा दायरा रणनीतिक है — माना जा रहा है कि यह सिस्टम रूस की S-500 जैसी क्षमताओं के बराबर आ सकता है और इसे देश के मौजूदा S-400 तथा स्वदेशी आकाश जैसे सिस्टम के साथ मिलाकर मल्टी-लेयर एयर-डिफेंस बनाया जाएगा। तंत्र में जुड़ने पर यह नजदीकी, मीडियम और लॉन्ग रेंज पर तीन परतें तैयार करेगा — निकट रेंज के लिए आकाश/एमआरएसएएम, मीडियम के लिए S-400 और लॉन्ग रेंज के लिए Kusha — जिससे किसी भी उन्नत हवाई खतरों के खिलाफ समेकित प्रतिक्रिया संभव होगी। रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि स्टील्थ जेट्स (जैसे F-35, Su-57) और हाइपरसोनिक पुनः-प्रवेश काल (re-entry phase) में आने वाली मिसाइलें भी ट्रैक व इंटरसेप्ट हो सकेंगी। लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी भी दे रहे हैं — हाइपरसोनिक गति पर मार्गदर्शन, ऊष्मा-प्रबंधन और रडार-डिटेक्शन जैसी चुनौतियाँ तकनीकी रूप से जटिल हैं, इसलिए तैनाती से पहले विस्तृत परीक्षण और इंटीग्रेशन आवश्यक होगा। कुल मिलाकर, अगर Project Kusha सफल होता है तो यह भारत की वायु रक्षा को वैश्विक स्तर पर और अधिक सक्षम बना सकता है — पर सफलता की दिशा में DRDO को तकनीकी, परीक्षण-संबंधी और एकीकृत संचालन चुनौतियों का सामना करना होगा।

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