• December 27, 2025

‘मनरेगा बचाओ अभियान’: कांग्रेस ने फूंका केंद्र के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन का बिगुल, 5 जनवरी से सड़क पर उतरेंगे कार्यकर्ता

नई दिल्ली: भारतीय राजनीति के क्षितिज पर एक बार फिर बड़े आंदोलन की सुगबुगाहट तेज हो गई है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने संयुक्त रूप से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को खत्म करने के सरकार के कथित प्रयास के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है। नई दिल्ली में आयोजित कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की महत्वपूर्ण बैठक के बाद पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह ग्रामीण भारत की इस ‘जीवन रेखा’ के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करेगी। कांग्रेस ने आगामी 5 जनवरी से देशव्यापी ‘मनरेगा बचाओ अभियान’ शुरू करने का निर्णय लिया है, जिसका उद्देश्य सरकार के इस कदम को जनता के बीच ले जाना और एक विशाल जन-आंदोलन खड़ा करना है।

मनरेगा केवल योजना नहीं, ‘काम का अधिकार’ है: मल्लिकार्जुन खरगे

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सरकार के फैसले पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि मनरेगा को कमजोर करना या खत्म करना सीधे तौर पर गरीबों और मजदूरों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला है। उन्होंने जोर देकर कहा कि मनरेगा केवल एक सरकारी कल्याणकारी योजना मात्र नहीं है, बल्कि यह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा देश के नागरिकों को दिया गया ‘काम करने का कानूनी अधिकार’ है। खरगे ने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार इस अधिकार को छीनकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गर्त में धकेलने की कोशिश कर रही है।

खरगे ने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि मनरेगा की दूरदर्शिता की सराहना पूरी दुनिया ने की है। इसी महत्व के कारण इसका नाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर रखा गया था। उन्होंने चेतावनी दी कि इस फैसले से ग्रामीण क्षेत्रों में भारी नाराजगी है और अगर सरकार ने अपना रुख नहीं बदला, तो उसे इसके गंभीर राजनीतिक नतीजे भुगतने होंगे। कांग्रेस अध्यक्ष ने स्पष्ट किया कि पार्टी इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेगी और लोकतांत्रिक तरीके से तब तक विरोध जारी रखेगी जब तक सरकार अपने कदम पीछे नहीं खींच लेती।

तीन कृषि कानूनों जैसा होगा विरोध: जनशक्ति का आह्वान

मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने संबोधन में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुए किसान आंदोलन का उदाहरण देते हुए सरकार को आईना दिखाया। उन्होंने कहा कि जिस तरह कड़े और संगठित विरोध के बाद सरकार को वे काले कानून वापस लेने पड़े थे, उसी तरह मनरेगा के मामले में भी देश की जनता की आवाज उठेगी। उन्होंने 2015 के भूमि अधिग्रहण कानून में किए गए बदलावों को वापस लेने के उदाहरण का भी जिक्र किया, जहां विपक्ष की एकजुटता और जनभावना के आगे सरकार को झुकना पड़ा था।

खरगे ने कहा कि यह हम सबकी ‘सामूहिक जिम्मेदारी’ है कि मनरेगा को लेकर एक ठोस और विस्तृत रणनीति बनाई जाए। उन्होंने पार्टी पदाधिकारियों और राज्य इकाइयों को निर्देश दिया कि वे गांव-गांव जाकर मजदूरों को संगठित करें। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने बिना किसी अध्ययन, बिना किसी मूल्यांकन और बिना राज्यों या विपक्षी दलों से परामर्श किए इस महत्वपूर्ण कानून को रद्द करने या बदलने का एकतरफा फैसला लिया है, जो लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत है।

राहुल गांधी का हमला: ‘गरीबों और संघीय ढांचे पर घातक प्रहार’

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मल्लिकार्जुन खरगे की अपील का पुरजोर समर्थन करते हुए सरकार के इस कदम को ‘अधिकार आधारित प्रणाली’ पर एक घातक हमला बताया। राहुल गांधी ने कहा कि मनरेगा ने ग्रामीण भारत को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत किया था, बल्कि लोगों को सम्मान के साथ जीने का अवसर भी दिया था। उन्होंने आरोप लगाया कि इस योजना को खत्म करना सीधे तौर पर देश के संघीय ढांचे (Federal Structure) पर हमला है क्योंकि यह राज्यों के अधिकारों को सीमित करता है और केंद्र की सत्तावादी सोच को दर्शाता है।

राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि इतना बड़ा फैसला बिना कैबिनेट की सलाह और बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन के लिया गया। उन्होंने इस कदम की तुलना ‘नोटबंदी’ से करते हुए कहा कि यह भी उसी तरह का एकतरफा और अदूरदर्शी फैसला है, जिसने रातों-रात करोड़ों लोगों के जीवन को अनिश्चितता में डाल दिया है। राहुल गांधी ने विश्वास व्यक्त किया कि केवल कांग्रेस ही नहीं, बल्कि पूरा विपक्ष इस मुद्दे पर एकजुट होकर सरकार को चुनौती देगा।

एसआईआर और लोकतंत्र पर मंडराता खतरा

बैठक के दौरान मल्लिकार्जुन खरगे ने केवल मनरेगा ही नहीं, बल्कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने इसे लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को सीमित करने की एक ‘सुनियोजित साजिश’ करार दिया। खरगे के अनुसार, यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब देश में लोकतंत्र, संविधान और नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।

कांग्रेस का आरोप है कि सरकार एक तरफ रोजगार के अवसर खत्म कर रही है और दूसरी तरफ चुनावी प्रक्रिया में हेरफेर करने के प्रयास कर रही है। पार्टी ने ‘मनरेगा बचाओ अभियान’ को इन सभी लोकतांत्रिक चिंताओं के साथ जोड़कर एक व्यापक अभियान बनाने का संकल्प लिया है।

5 जनवरी से ‘मनरेगा बचाओ अभियान’ की रूपरेखा

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने इस अभियान के लिए 5 जनवरी की तारीख तय की है। इस अभियान के तहत कांग्रेस देशभर के जिला मुख्यालयों और ब्लॉक स्तर पर विरोध प्रदर्शन करेगी। पार्टी का उद्देश्य उन करोड़ों मनरेगा कार्ड धारकों तक पहुंचना है जिनकी आजीविका इस योजना पर निर्भर है। कांग्रेस के प्रवक्ता ने बताया कि इस अभियान के दौरान पर्चे बांटे जाएंगे, नुक्कड़ सभाएं होंगी और सोशल मीडिया के जरिए सरकार की ‘मजदूर विरोधी’ नीतियों को उजागर किया जाएगा।

कार्यसमिति की बैठक में यह भी तय किया गया कि कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री इस अभियान का नेतृत्व करेंगे और केंद्र सरकार के समक्ष राज्यों की ओर से कड़ा विरोध दर्ज कराएंगे। पार्टी का मानना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी पहले ही चरम पर है और ऐसे में मनरेगा का खत्म होना आग में घी डालने जैसा काम करेगा।

निष्कर्ष: संघर्ष के पथ पर कांग्रेस

सीडब्ल्यूसी की बैठक और खरगे-राहुल के बयानों से यह साफ है कि कांग्रेस अब रक्षात्मक मुद्रा को छोड़कर सीधे संघर्ष के मूड में है। पार्टी ने मनरेगा को अपनी सबसे बड़ी विरासत और उपलब्धि माना है, और इसके बचाव को उसने अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। आने वाले दिनों में यह अभियान किस तरह का रूप लेता है और सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है, यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन इतना तय है कि 2026 के विधानसभा चुनावों और भविष्य की राजनीति के लिए कांग्रेस ने ‘मनरेगा’ को एक बड़ा चुनावी हथियार बनाने की तैयारी कर ली है।

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