• December 29, 2025

बिहार में जमीन का ‘जाल’ और विजय सिन्हा का ‘प्रहार’: भ्रष्टाचार के खिलाफ जनसंवाद या मर्यादा का उल्लंघन? जानें अंचल कार्यालयों में म्यूटेशन से लेकर फर्जीवाड़े तक का पूरा सच

बिहार : बिहार में जमीन केवल मिट्टी का टुकड़ा नहीं, बल्कि मान-सम्मान, रसूख और कई बार मौत का कारण भी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बार-बार गवाही देती है कि बिहार में होने वाली हत्याओं का सबसे बड़ा कारण जमीनी विवाद है। इस जटिल व्यवस्था में एक आम आदमी के लिए जमीन खरीदना जितना कठिन है, उससे कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण उसे अपने नाम पर दर्ज कराना यानी दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) कराना है। राज्य में भ्रष्टाचार की जड़ें अंचल कार्यालयों (Block Offices) में इतनी गहरी हैं कि बिना ‘टेबल के नीचे’ पैसे दिए एक पत्ता भी नहीं हिलता। इसी सड़े हुए सिस्टम को साफ करने के लिए बिहार के उपमुख्यमंत्री सह राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने मोर्चा खोल दिया है। उनके द्वारा शुरू किए गए ‘जनसंवाद’ और ‘ऑन द स्पॉट’ कार्रवाई ने जहाँ जनता को उम्मीद दी है, वहीं विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच खलबली मचा दी है। स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि भ्रष्ट तंत्र को सुधारने की कोशिश अब सरकार बनाम अधिकारी की जंग में बदल गई है।

जनसंवाद से जनता की पोल-खोल और राजस्व अधिकारियों का विद्रोह

विजय कुमार सिन्हा ने जिम्मेदारी संभालते ही जिलों में घूम-घूमकर ‘जनसंवाद’ कार्यक्रम शुरू किया। इस मंच पर उन्होंने सीधे फरियादियों को बुलाया और उनके सामने अंचल अधिकारियों (CO) और राजस्व कर्मचारियों को बैठाया। जब जनता ने सरेआम घूसखोरी और फाइलों को महीनों तक लटकाने की दास्तां सुनाई, तो मंत्री का पारा चढ़ गया। उन्होंने कई अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से फटकार लगाई और तत्काल निलंबन (Suspension) के आदेश दे दिए। हाल ही में मुजफ्फरपुर के कांटी के तत्कालीन सीओ को निलंबित करना इसी कड़ी का हिस्सा है, जिन्होंने सरकारी जमीन का ही फर्जी म्यूटेशन माफियाओं के नाम कर दिया था।

हालांकि, इस “ऑन द स्पॉट” इंसाफ की शैली ने प्रशासनिक अधिकारियों को नाराज कर दिया है। बिहार राजस्व सेवा संघ ने मंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संघ का आरोप है कि मंत्री ‘तात्कालिक तालियां’ बटोरने के लिए प्रशासनिक मर्यादाओं और संवैधानिक प्रक्रियाओं को दरकिनार कर रहे हैं। उनका कहना है कि “खड़े-खड़े सस्पेंड कर देंगे” जैसी भाषा लोकतंत्र के अनुरूप नहीं है और यह ‘मोंब जस्टिस’ या ‘ड्रमहेड कोर्ट मार्शल’ जैसा तमाशा है। अधिकारियों का तर्क है कि वे नियमों के तहत काम करते हैं और इस तरह सार्वजनिक अपमान से उनका मनोबल गिर रहा है।

दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) का पेच: जहाँ शुरू होती है अवैध वसूली की कहानी

बिहार में जमीन विवाद की पहली और सबसे बड़ी समस्या म्यूटेशन यानी दाखिल-खारिज है। जब कोई व्यक्ति जमीन खरीदता है, तो रजिस्ट्री के बाद सरकारी रिकॉर्ड में अपना नाम चढ़वाना अनिवार्य होता है ताकि उसे मालिकाना हक का आधिकारिक प्रमाण मिल सके। रजिस्ट्री तो हो जाती है, लेकिन अंचल कार्यालय में फाइल पहुँचते ही ‘वसूली’ का खेल शुरू होता है। निगरानी विभाग की जांच में यह बार-बार सामने आया है कि राजस्व कर्मचारी और सीओ जानबूझकर फाइलों में त्रुटियां निकालते हैं।

दाखिल-खारिज को अटकाने के लिए कई कुख्यात तरीके अपनाए जाते हैं। कभी बिना किसी दस्तावेज के जमीन को ‘विवादित’ घोषित कर दिया जाता है, तो कभी किसी तीसरे पक्ष से जानबूझकर फर्जी आपत्ति (Objection) दर्ज करवा दी जाती है। यह सारा खेल इसलिए होता है ताकि परेशान होकर खरीदार पैसे देने पर मजबूर हो जाए। ताज्जुब की बात यह है कि म्यूटेशन को अटकाने के मामले में पटना और मंत्री का अपना गृह जिला लखीसराय टॉप-10 जिलों में शामिल है। लाखों रुपये खर्च कर जमीन खरीदने वाला व्यक्ति तब तक चैन से नहीं सो पाता जब तक सरकार के रजिस्टर-2 में उसका नाम नहीं चढ़ जाता, और इसी डर का फायदा बिचौलिए और भ्रष्ट कर्मचारी उठाते हैं।

फर्जी कागजातों का खेल और भू-माफिया का अंचल कार्यालयों पर कब्जा

जमीन विवाद की दूसरी बड़ी समस्या फर्जी दस्तावेजों के जरिए अवैध कब्जा करना है। यह खेल अंचल कार्यालयों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। अक्सर देखा जाता है कि भू-माफिया किसी और की जमीन के फर्जी कागजात तैयार करवाते हैं और अंचल के रिकॉर्ड (रजिस्टर-2) में हेराफेरी करवाकर रसीद कटवा लेते हैं। एक बार सरकारी रसीद कट गई, तो उसे मालिकाना हक का आधार बनाकर जमीन पर झोपड़ी डालना या घेराबंदी करना आसान हो जाता है।

यह समस्या उन लोगों के लिए सबसे विकराल है जो शहर में रहते हैं या अपनी पैतृक जमीन से दूर हैं। माफिया स्थानीय रसूख और अंचल के भ्रष्ट तंत्र के दम पर ऐसी जमीनों को निशाना बनाते हैं। मुजफ्फरपुर का मामला इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहाँ भू-माफिया ने अंचल अधिकारी के साथ साठगांठ कर सरकार की जमीन को ही निजी संपत्ति बनाकर बेच दिया। ऐसे मामलों में स्थानीय प्रशासन और राजनीतिक रसूखदारों की साठगांठ इतनी मजबूत होती है कि पीड़ित व्यक्ति थाने और कचहरी के चक्कर काटते-काटते थक जाता है, लेकिन उसकी जमीन वापस नहीं मिलती।

परिमार्जन की सुस्त रफ्तार: मामूली सुधार के लिए वर्षों का इंतजार

सरकार ने जमीन के रिकॉर्ड में लिपिकीय या तकनीकी सुधार के लिए ‘परिमार्जन’ की ऑनलाइन सुविधा शुरू की थी। इसका उद्देश्य था कि यदि नाम, रकबा या खतियान में कोई छोटी गलती है, तो उसे सुधारा जा सके। लेकिन यहाँ भी ‘वसूली’ का दीमक लग गया है। मामूली सुधार के आवेदनों को भी महीनों तक ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। निगरानी ब्यूरो ने हाल के वर्षों में कई राजस्व कर्मचारियों को परिमार्जन के नाम पर घूस लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा है।

इस समस्या के समाधान के लिए विजय सिन्हा ने अब समय सीमा (Deadline) निर्धारित कर दी है। नए निर्देशों के अनुसार, परिमार्जन प्लस के तहत मामूली त्रुटियों का सुधार अब 15 कार्य दिवसों में करना अनिवार्य होगा। वहीं, अन्य जमाबंदी संबंधी सुधारों के लिए 35 दिन और छूटी हुई जमाबंदी को ऑनलाइन करने के लिए 75 दिनों का समय तय किया गया है। यदि नापी की आवश्यकता पड़ती है, तब भी 75 दिनों के भीतर निष्पादन करना होगा। मंत्री ने चेतावनी दी है कि यदि तय समय सीमा के भीतर काम नहीं हुआ, तो संबंधित कर्मचारी पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।

पारिवारिक बंटवारा: अब कोर्ट के चक्करों से मिलेगी मुक्ति

बिहार में पारिवारिक जमीन का बंटवारा हिंसा का सबसे बड़ा केंद्र रहा है। अब तक स्थिति यह थी कि अगर परिवार के पांच में से चार सदस्य बंटवारे के लिए तैयार हैं और एक असहमत है, तो मामला सालों तक कोर्ट में लटका रहता था। इसी खींचतान में मारपीट और हत्याएं होती थीं। वंशावली बनवाने से लेकर पुराने कागजात निकालने तक, अंचल कार्यालयों में लोगों का शोषण होता था।

इस ऐतिहासिक समस्या को खत्म करने के लिए सरकार ने 27 दिसंबर से ‘पारिवारिक बंटवारा पोर्टल’ लॉन्च किया है। अब पारिवारिक बंटवारे के लिए कोर्ट के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं होगी। यदि परिवार का एक भी हिस्सेदार चाहता है, तो वह ऑनलाइन आवेदन कर सकता है और अंचल के माध्यम से पूरे परिवार का जमीनी बंटवारा कानूनी रूप से संपन्न हो जाएगा। यह कदम न केवल थानों और अदालतों पर बोझ कम करेगा, बल्कि ग्रामीण इलाकों में होने वाली खूनी झड़पों पर भी लगाम लगाएगा। वंशावली के नाम पर अटकाने वाली परंपरा को खत्म करना इस सुधार की सबसे बड़ी चुनौती और उपलब्धि दोनों होगी।

भविष्य की चुनौती: सिस्टम का सुधार बनाम प्रशासनिक प्रतिरोध

विजय कुमार सिन्हा के इन कड़े फैसलों ने बिहार के भूमि सुधार विभाग में एक हलचल पैदा कर दी है। एक तरफ जनता खुश है कि कोई तो उनकी सुनने वाला है, वहीं दूसरी तरफ अधिकारियों का संगठन इसे ‘तालिबानी शैली’ करार दे रहा है। असली चुनौती यह है कि क्या यह सुधार केवल कुछ निलंबनों तक सीमित रहेगा या बिहार का पूरा भूमि रिकॉर्ड तंत्र पारदर्शी बन पाएगा।

बिहार में जमीन का मामला सीधे तौर पर ‘वोट बैंक’ और ‘कानून-व्यवस्था’ से जुड़ा है। यदि दाखिल-खारिज, परिमार्जन और पारिवारिक बंटवारे की प्रक्रिया पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त हो जाती है, तो यह नीतीश सरकार की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। हालांकि, जिस तरह से राजस्व सेवा संघ ने मंत्री के खिलाफ मोर्चा खोला है, उससे साफ है कि भ्रष्ट तंत्र अपनी जगह इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि विजय सिन्हा का यह ‘जनसंवाद’ और कड़े तेवर बिहार की जमीन से ‘भ्रष्टाचार की धूल’ साफ कर पाते हैं या नहीं।

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