ब्रिटेन में क्यों बढ़ रहा है अप्रवासियों और मुस्लिम आबादी के खिलाफ गुस्सा?
15 सितंबर 2025 लखनऊ : ब्रिटेन इन दिनों सामाजिक और सांस्कृतिक बदलावों के कारण उथल-पुथल का सामना कर रहा है। देश में अप्रवासियों और बढ़ती मुस्लिम आबादी के खिलाफ गुस्सा और विरोध तेजी से बढ़ रहा है। यह गुस्सा सड़कों पर प्रदर्शनों, सोशल मीडिया पर बहसों और राजनीतिक बयानों में साफ नजर आ रहा है। लेकिन आखिर ऐसा क्या हो रहा है कि ब्रिटेन जैसे विकसित और उदार देश में यह तनाव बढ़ रहा है? इस लेख में हम इस सवाल का जवाब आसान भाषा में समझने की कोशिश करेंगे।अप्रवासियों के खिलाफ गुस्सा: क्या है वजह?ब्रिटेन में अप्रवासियों के खिलाफ भावनाएं कई सालों से बदल रही हैं। ब्रेक्जिट (Brexit) के बाद से, जब ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ छोड़ने का फैसला किया, अप्रवासन एक बड़ा मुद्दा बन गया। बहुत से ब्रिटिश नागरिकों का मानना था कि यूरोपीय संघ के नियमों के कारण देश में बहुत अधिक अप्रवासी आ रहे थे, जिससे नौकरियों, स्वास्थ्य सेवाओं और आवास जैसी सुविधाओं पर दबाव पड़ रहा था।हाल के वर्षों में, गैर-कानूनी अप्रवासन, खासकर छोटी नावों के जरिए इंग्लिश चैनल पार करके आने वाले शरणार्थियों की संख्या बढ़ी है।
2022 से 2025 तक, हजारों लोग इस खतरनाक रास्ते से ब्रिटेन पहुंचे। कई ब्रिटिश नागरिकों को लगता है कि यह गैर-कानूनी तरीके से आने वाले लोग देश के संसाधनों पर बोझ डाल रहे हैं। इसके अलावा, कुछ लोगों को डर है कि अप्रवासियों की बढ़ती संख्या उनकी संस्कृति और परंपराओं को बदल रही है।मुस्लिम आबादी का विरोध: क्या है असल मुद्दा?ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है। 2021 की जनगणना के अनुसार, ब्रिटेन की कुल आबादी का लगभग 6.5% हिस्सा मुस्लिम समुदाय से है, और यह संख्या खासकर लंदन, बर्मिंघम और मैनचेस्टर जैसे बड़े शहरों में ज्यादा है। इस बढ़ती आबादी ने कुछ लोगों में चिंता पैदा की है। कुछ का मानना है कि मुस्लिम समुदाय की संस्कृति और मूल्य ब्रिटिश परंपराओं से मेल नहीं खाते, जिससे सामाजिक एकता को खतरा है।इसके अलावा, आतंकवाद और चरमपंथ से जुड़ी कुछ घटनाओं ने इस गुस्से को और हवा दी है। हालांकि, अधिकांश मुस्लिम ब्रिटिश नागरिक शांतिपूर्ण जीवन जीते हैं और देश के विकास में योगदान देते हैं, लेकिन कुछ घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने से पूरे समुदाय के खिलाफ नकारात्मक भावनाएं बन रही हैं।
सोशल मीडिया पर फैलने वाली गलत सूचनाएं और अफवाहें भी इस तनाव को बढ़ा रही हैं।सामाजिक और आर्थिक कारणब्रिटेन में यह गुस्सा केवल सांस्कृतिक या धार्मिक मतभेदों तक सीमित नहीं है। आर्थिक समस्याएं भी इसमें बड़ी भूमिका निभा रही हैं। हाल के वर्षों में, ब्रिटेन में महंगाई बढ़ी है, और कई लोगों को लगता है कि अप्रवासियों की वजह से नौकरियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। खासकर निम्न-आय वर्ग के लोग, जो पहले से ही आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं, अप्रवासियों को अपनी समस्याओं का कारण मानते हैं।स्वास्थ्य सेवाएं और स्कूलों में भीड़, मकानों की कमी और बढ़ते किराए जैसे मुद्दों ने भी इस गुस्से को बढ़ाया है। बहुत से लोग सरकार पर आरोप लगाते हैं कि वह अप्रवासियों को प्राथमिकता दे रही है, जबकि स्थानीय नागरिकों की जरूरतों को नजरअंदाज कर रही है।राजनीतिक और मीडिया की भूमिकाब्रिटेन की राजनीति में भी अप्रवासन और मुस्लिम आबादी के मुद्दे गर्म रहे हैं। कुछ दक्षिणपंथी राजनीतिक दल और नेता इन मुद्दों को जोर-शोर से उठाते हैं, जिससे समाज में विभाजन और बढ़ता है। ब्रेक्जिट के बाद, कुछ नेताओं ने अप्रवास को नियंत्रित करने के वादे किए, लेकिन कई लोगों को लगता है कि ये वादे पूरे नहीं हुए।मीडिया भी इस तनाव को बढ़ाने में योगदान दे रहा है।
कुछ समाचार चैनल और अखबार सनसनीखेज सुर्खियां बनाते हैं, जो अप्रवासियों और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नकारात्मक छवि बनाती हैं। उदाहरण के लिए, गैर-कानूनी अप्रवासियों को “घुसपैठिए” जैसे शब्दों से जोड़ा जाता है, जो लोगों में डर और गुस्सा पैदा करता है।सड़कों पर विरोध और हिंसापिछले कुछ महीनों में, ब्रिटेन के कई शहरों में अप्रवासियों और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं। कुछ प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे, लेकिन कई बार हिंसा भी देखने को मिली। मस्जिदों और अप्रवासी केंद्रों पर हमले की खबरें सामने आईं, जिससे तनाव और बढ़ा। इन घटनाओं ने न केवल स्थानीय समुदायों को डराया, बल्कि ब्रिटेन की उदार और बहुसांस्कृतिक छवि को भी नुकसान पहुंचाया।सरकार का रुखब्रिटिश सरकार ने इस तनाव को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। गैर-कानूनी अप्रवासन को रोकने के लिए सख्त नीतियां बनाई गई हैं, जैसे कि रवांडा डिपोर्टेशन योजना, जिसमें गैर-कानूनी तरीके से आए शरणार्थियों को रवांडा भेजने की बात थी। हालांकि, इस योजना को लेकर बहुत विवाद हुआ, और इसे लागू करना मुश्किल रहा।साथ ही, सरकार ने सामाजिक एकता को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं, ताकि विभिन्न समुदायों के बीच समझ और सहयोग बढ़े। लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि इन कदमों का असर तभी होगा, जब सरकार आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का समाधान करेगी।
