• October 14, 2025

बिहार में दलितों की जमीनें क्यों हो रही हैं बंजर? मायावती ने उठाए सवाल, याद दिलाई अपनी सीएम वाली विरासत

पटना, 15 सितंबर 2025: बिहार में दलित समुदाय की जमीनें तेजी से बंजर होती जा रही हैं। दबंगों के अत्याचार, भूमि विवाद और सरकारी उदासीनता के कारण दलित परिवार अपनी पुश्तैनी जमीनें खोते जा रहे हैं। इस मुद्दे पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि बिहार में दलितों के साथ हो रही बर्बरता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मायावती ने याद दिलाया कि वे खुद दलित समुदाय से आती हैं और एक समय उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री पद तक पहुंची थीं, जहां उन्होंने दलितों के लिए कई कदम उठाए थे। लेकिन बिहार में ऐसी कोई व्यवस्था क्यों नहीं?मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए बिहार सरकार को चेतावनी दी। उन्होंने लिखा, “बिहार में दलितों की जमीनों पर दबंगों का कब्जा और उनके घरों को आग लगाने की घटनाएं बढ़ रही हैं। यह दलितों का भविष्य बर्बाद करने जैसा है। सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।” मायावती का यह बयान नवादा जिले की हालिया घटना के बाद आया है, जहां दबंगों ने दलित बस्ती में 80 से ज्यादा घरों को आग के हवाले कर दिया। यह घटना भूमि विवाद से जुड़ी थी, जिसमें दलित परिवार अपनी जमीन बचाने के लिए लड़ रहे थे।बिहार में दलितों की स्थिति: एक कड़वी सच्चाईबिहार में दलित समुदाय की आबादी लगभग 16 प्रतिशत है। ये लोग मुख्य रूप से अनुसूचित जाति (एससी) के अंतर्गत आते हैं। लेकिन स्वतंत्रता के बाद से भूमि सुधार की कमी के कारण दलितों के पास जमीन का हिस्सा बहुत कम है। एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में कुल कृषि भूमि का केवल 5-6 प्रतिशत ही दलितों के पास है, जबकि उनकी आबादी इतनी ज्यादा है।
दबंग जातियां, जैसे ऊपरी जातियों के लोग, अक्सर दलितों की जमीनों पर कब्जा कर लेती हैं। कोर्ट में मामले लंबे चलते हैं, और दलित परिवार गरीबी के कारण लड़ नहीं पाते। नतीजा? उनकी जमीनें बंजर पड़ जाती हैं या फिर दबंगों के हाथों बिक जाती हैं।पिछले कुछ सालों में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं। उदाहरण के लिए, सितंबर 2024 में नवादा के कृष्णा नगर में दबंगों ने दलित बस्ती पर हमला किया। उन्होंने फायरिंग की, मारपीट की और 80 घरों को जला दिया। वजह? एक पुराना भूमि विवाद। दलित परिवार वहां सालों से रह रहे थे, लेकिन दबंगों ने दावा किया कि जमीन उनकी है। इस घटना में कई मवेशी जल गए, लेकिन कोई मौत नहीं हुई। फिर भी, दलित परिवार बेघर हो गए। बसपा प्रमुख मायावती ने इस पर दुख जताते हुए कहा, “यह अति-दुखद है। सरकार दोषियों पर सख्त कार्रवाई करे और पीड़ितों को पुनर्वासित करे।”इसी तरह, अगस्त 2024 में मुजफ्फरपुर और मोतिहारी में दलित लड़कियों के साथ गैंगरेप और हत्या की घटनाएं हुईं। इनमें भी भूमि विवाद की आशंका जताई गई। मायावती ने नीतीश कुमार सरकार को निशाना बनाते हुए कहा, “बिहार कब बदलेगा? दलितों पर अत्याचार कब रुकेगा?” जून 2025 में मुजफ्फरपुर में एक 9 साल की दलित बच्ची का रेप हुआ और पटना के अस्पताल में इलाज की लापरवाही से उसकी मौत हो गई। मायावती ने इसे कानून व्यवस्था की नाकामी बताया।महादलित योजना: मदद या धोखा?बिहार सरकार ने 2007 में ‘महादलित’ श्रेणी बनाई।
यह दलितों के सबसे गरीब समूह के लिए थी। इसमें 18 अनुसूचित जातियां शामिल हैं, जैसे मुशहर, डोम, पासी आदि। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि इसका मकसद इनका सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास करना है। योजना के तहत मुफ्त जमीन, आवास, शिक्षा और ऋण जैसी सुविधाएं दी जाती हैं। 2014 में नीतीश ने आदेश दिया कि सभी महादलित परिवारों को आवास के लिए जमीन दी जाए। 2018 में पासवान जाति को भी इसमें शामिल किया गया, जिससे अब बिहार में कोई ‘सिर्फ दलित’ श्रेणी नहीं बची।लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। कई दलित परिवारों को जमीन मिली भी तो दबंगों ने कब्जा कर लिया। एक सर्वे के मुताबिक, महादलितों को दी गई जमीन का 40 प्रतिशत हिस्सा विवादों में फंसा है। दलितों को जमीन मिलने के बाद भी वे उसे खेती नहीं कर पाते, क्योंकि दबंग धमकाते हैं। नतीजा, जमीन बंजर हो जाती है। मायावती ने इस योजना को ‘नकली दलित प्रेम’ बताया। उन्होंने कहा, “कांग्रेस और भाजपा जैसी पार्टियां दलितों का सिर्फ वोट लेने के लिए ऐसी योजनाएं चलाती हैं। असली हित बसपा ही कर सकती है।”मायावती की विरासत: दलितों के लिए संघर्ष की मिसालमायावती का जिक्र आते ही दलित समुदाय में जोश भर जाता है।
वे खुद जाटव समुदाय (दलित) से हैं और कांशीराम के मार्गदर्शन में बसपा को मजबूत बनाया। 1995 में पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। फिर 1997, 2002 और 2007 में चार बार यह पद संभाला। उनके शासन में दलितों के लिए कई बड़े कदम उठाए गए। जैसे, ताज कॉरिडोर प्रोजेक्ट के अलावा दलितों को सरकारी नौकरियां, आवास और जमीन का आवंटन बढ़ाया। उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर के नाम पर पार्क और स्मारक बनवाए।मायावती कहती हैं, “मैं दलित हूं, इसलिए दलितों का दर्द समझती हूं। उत्तर प्रदेश में हमने जमीन सुधार किए, लेकिन बिहार में नीतीश सरकार सिर्फ दिखावा कर रही है।” उन्होंने बिहार के दलितों से अपील की कि वे एकजुट हों और बसपा को मजबूत बनाएं। हाल ही में एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “देश में दलित राजनीति का गठबंधन हो तो मैं नेतृत्व संभालूंगी। लेकिन बिहार जैसे राज्यों में पहले स्थानीय स्तर पर संघर्ष जरूरी है।राजनीतिक पृष्ठभूमि: वोट बैंक और सियासी खेलबिहार में दलित वोट बहुत महत्वपूर्ण हैं। 243 विधानसभा सीटों में 40 से ज्यादा पर दलित प्रभाव है। नीतीश कुमार ने महादलित योजना से अपना वोट बैंक मजबूत किया। लेकिन विपक्षी नेता जैसे तेजस्वी यादव और राहुल गांधी इसे ‘जंगलराज’ बताते हैं। मायावती ने भी नीतीश पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “पीएम मोदी पहले मुझे ‘बहन जी’ कहते थे, अब बुआ-बबुआ। यह उनका दलित प्रेम है?”बसपा का बिहार में आधार कमजोर है।
2020 के चुनाव में बसपा को सिर्फ 1.5 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन मायावती लगातार कोशिश कर रही हैं। हाल ही में उन्होंने पार्टी में फेरबदल किया और दलित एकता पर जोर दिया। विश्लेषकों का कहना है कि अगर दलित वोट बंटे तो भाजपा-जदयू को फायदा होगा। मायावती ने चंद्रशेखर आजाद जैसे युवा नेताओं को भी एकजुट होने की सलाह दी।क्या है समाधान? विशेषज्ञों की रायविशेषज्ञों का मानना है कि बिहार में भूमि सुधार कानून को सख्ती से लागू करना जरूरी है। दलितों को जमीन देने के बाद उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो। कोर्ट केसों को तेजी से निपटाना चाहिए। एक रिपोर्ट में कहा गया कि बिहार में 50 हजार से ज्यादा भूमि विवाद लंबित हैं, जिनमें 30 प्रतिशत दलितों से जुड़े हैं। मायावती ने मांग की है कि दलितों के लिए अलग भूमि आयोग बने।सामाजिक कार्यकर्ता रामदास आठवले ने कहा, “दलित एकता जरूरी है। मायावती जैसी नेता आगे आएं।” लेकिन चुनौतियां हैं। दलितों में शिक्षा की कमी और आर्थिक कमजोरी उन्हें कमजोर बनाती है। फिर भी, मायावती का संदेश साफ है: “संघर्ष से ही अधिकार मिलेंगे।”
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Rama Niwash Pandey

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