विहिप कार्याध्यक्ष के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज किया

विश्व हिन्दू परिषद् के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार (एडवोकेट) के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निचली कोर्ट के आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया। यह मामला कांग्रेस अध्यक्ष के करीबी रहे हर्ष मंदर ने दर्ज कराया था। हर्ष मंदर की याचिका पर जिला एवं सत्र न्यायालय ने मामला दर्ज करने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ आलोक कुमार ने उच्च न्यायालय में अपील की थी। न्यायालय ने अपने विस्तृत आदेश में कहा है कि आलोक कुमार के खिलाफ कोई भी तथ्य या साक्ष्य नहीं पाए गए और न ही उनके खिलाफ वास्तव में कोई शिकायत थी।

मामला जुलाई, 2019 में पुरानी दिल्ली के लाल कुआं इलाके में एक मंदिर को नुकसान पहुंचाए जाने से जुड़ा है। भगवान की कुछ मूर्तियों को भी तोडा गया। विश्व हिन्दू परिषद् के नेतृत्व में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया था। उस दौरान काशी से आए एक संन्यासी ने कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिया। हर्ष मंदर ने उस भाषण के आधार पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की। हालांकि हर्ष मंदर की पहली शिकायत में विहिप के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार का नाम भी नहीं था। पुलिस ने भी प्रारंभिक जांच में पाया कि उक्त संन्यासी के भाषण में आपत्तिजनक कुछ नहीं था।

इसके बाद भी हर्ष मंदर ने जिला एवं सत्र न्यायालय में याचिका दायर कर मांग की कि न्यायालय पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे। इस अपील में हर्ष मंदर ने आलोक कुमार का भी नाम जोड़ दिया। हालांकि शिकायतकर्ता ने याचिका में न तो यह कहा कि आलोक कुमार ने उस सभा में कोई भाषण दिया था, न ही यह बताया कि वह सभा में उपस्थित थे और न ही यह कि यह सभा आलोक कुमार ने आयोजित करवाई थी। याचिका में केवल यह लिखा था कि आलोक कुमार विश्व हिन्दू परिषद् के कार्याध्यक्ष हैं। इतने पर भी मैजिस्ट्रेट ने यह आदेश दे दिया कि उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए।

आलोक कुमार ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। पहली ही सुनवाई में हाई कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने पर रोक लगा दी। पूरे मामले की सुनवाई के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में आलोक कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया है। हाई कोर्ट ने पाया कि याचिका में आलोक कुमार के खिलाफ कोई भी आरोप नहीं है। अगर याचिकाकर्ता हर्ष मंदर के द्वारा लिखी गई सारी बातों को सच भी मान लिया जाये तो भी आलोक कुमार के खिलाफ कोई दोष नहीं बनता। इसके साथ हाई कोर्ट ने निचली न्यायालय का आदेश रद्द करते हुए टिप्पणी की है कि न्यायालयों को अपने आदेश पारित करते समय सतर्कता बरतनी चाहिए। न्यायाधीश ने यह भी कठोर टिप्पणी की कि किसी भी आपराधिक मामले का संज्ञान लेने और उसे दर्ज करने के लिए मजिस्ट्रेट पहली सीढ़ी होता है और उनके पास असीमित अधिकार हैं, पर उन्हें ध्यान रखना चाहिए के असीमित और स्वछंद अधिकार में अंतर है।

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