• October 14, 2025

पूर्णिया में वंदे भारत का कहर: सुबह की चहल-पहल में छिपा खतरा

3 अक्टूबर 2025, पूर्णिया: बिहार के पूर्णिया जिले के कस्बा इलाके में एक ऐसी घटना घटी, जिसने पूरे इलाके को सन्नाटे में डुबो दिया। सुबह के धुंधले आलम में, जब लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की शुरुआत कर रहे थे, एक हाई-स्पीड ट्रेन ने कुछ युवाओं की जिंदगियां हमेशा के लिए थाम लीं। यह हादसा रेलवे ट्रैक के पास हुआ, जहां उत्सव की खुशियां अभी ताजा थीं। क्या यह लापरवाही थी, या भाग्य की मार? चार जिंदगियां खो चुकी हैं, और सवालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। आइए, इस दर्दनाक घटना की परतें खोलें।

दुर्गा मेले की रंगत में छिपा दर्द

शुक्रवार की सुबह, दशहरा मेला अपनी धूमधाम से संपन्न हो चुका था। पूर्णिया के बनमनखी प्रखंड के चांदपुर भंगहा गांव के युवक, उम्र महज 18 से 25 साल के बीच, सांस्कृतिक कार्यक्रम का लुत्फ उठाकर लौट रहे थे। हंसी-ठिठोली के बीच वे रेलवे ट्रैक पार करने को थे। जोगबनी से पाटलिपुत्र जा रही वंदे भारत एक्सप्रेस, अपनी रफ्तार पकड़ते हुए, अचानक सामने आ गई। तेज धुंध और उत्साह के जज्बे में वे ट्रेन की गति को भांप ही न पाए। ट्रैक पर सन्नाटा पसर गया, और चीखें गूंजने लगीं। प्रारंभिक आंकड़ों के मुताबिक, पांच युवक प्रभावित हुए, जिनमें से चार की सांसें उसी वक्त थम गईं।

हादसे का मंजर: चीखें और खामोशी

घटना कस्बा थाना क्षेत्र के यवनपुर रेलवे फाटक के पास, करीब साढ़े पांच बजे की है। कटिहार-जोगबनी रेल खंड पर यह जगह व्यस्त रहती है, लेकिन सुबह के समय धुंध ने सब कुछ ढक रखा था। युवक ट्रैक पार करने की जल्दबाजी में थे, शायद घर पहुंचने की बेचैनी में। वंदे भारत की 130 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार ने कोई मौका नहीं दिया। तीन युवकों की मौत मौके पर ही हो गई, जबकि चौथा घायल हालत में जीएमसीएच पहुंचा, जहां इलाज के दौरान उसकी सांसें थम गईं। बचा एक युवक गंभीर रूप से जख्मी है, जिसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। मौके पर एक मोबाइल फोन भी बरामद हुआ, जो शायद किसी मृतक का था। ग्रामीणों का कहना है कि फाटक पर कोई चेतावनी नहीं थी।

लापरवाही या अनजानी चूक?

हादसे की वजह अभी स्पष्ट नहीं, लेकिन संकेत गंभीर हैं। क्या रेलवे गुमटी के कर्मचारी सोते रहे? या युवाओं ने हाई-स्पीड ट्रेन की अनदेखी की? स्थानीय लोग बताते हैं कि इस इलाके में फाटक अक्सर बंद नहीं होता, और सुबह की धुंध ने हालात और बिगाड़ दिए। वंदे भारत जैसी आधुनिक ट्रेनें आमतौर पर सुरक्षित होती हैं, लेकिन पैदल यातायात वाले इलाकों में सतर्कता की कमी जानलेवा साबित हो रही है। रेलवे अधिकारियों ने प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है, जिसमें ट्रेन के ब्लैक बॉक्स और सीसीटीवी फुटेज की पड़ताल शामिल है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी घटनाओं में 70 प्रतिशत मामला पैदल चलने वालों की लापरवाही का होता है, लेकिन रेलवे की जिम्मेदारी भी उतनी ही।

जांच का इंतजार: परिवारों का सन्नाटा

मौके पर रेलवे पुलिस और प्रशासन की टीमें पहुंचीं। शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए जीएमसीएच भेजा गया। प्रभावित परिवारों में कोहराम मच गया—मांओं की चीखें, बहनों का रोना, और गांव का पूरा माहौल गमगीन। मृतकों की पहचान अभी पूरी नहीं हुई, लेकिन वे सभी मखाना फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर थे। रेलवे ने मुआवजे की घोषणा की है, लेकिन क्या यह खोई जिंदगियां लौटा सकता है? पूर्ण जांच के बाद ही सच्चाई सामने आएगी, लेकिन यह हादसा एक सबक है: हाई-स्पीड रेलयात्रा के दौर में सतर्कता ही सुरक्षा है। पूर्णिया का यह काला अध्याय हमें सोचने पर मजबूर करता है—कब तक ऐसी त्रासदियां दोहराई जाती रहेंगी?

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Rama Niwash Pandey

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