केंद्रीय बजट 2026-27: पूंजीगत व्यय और राजकोषीय अनुशासन के बीच संतुलन साधेगी सरकार, ईवाई की रिपोर्ट में बड़े खुलासे
नई दिल्ली: भारत के आर्थिक भविष्य की रूपरेखा तैयार करने वाले केंद्रीय बजट वित्त वर्ष 2026-27 (Union Budget FY26-27) को लेकर चर्चाएं अब अपने चरम पर हैं। वित्त मंत्रालय में बजट निर्माण की प्रक्रिया जोर-शोर से चल रही है, और इस बीच वैश्विक परामर्शदाता फर्म अर्न्स्ट एंड यंग (EY) की नवीनतम ‘इकोनॉमी वॉच’ रिपोर्ट ने सरकार की संभावित रणनीति का एक विस्तृत खाका पेश किया है। रिपोर्ट के अनुसार, आगामी बजट में मोदी सरकार का मुख्य जोर ‘विकास के इंजन’ को रफ्तार देने और ‘राजकोषीय घाटे’ की लगाम कसने के बीच एक बारीक संतुलन बनाने पर होगा। ईवाई का मानना है कि सरकार अपनी पुरानी और सफल रणनीति पर कायम रहते हुए पूंजीगत व्यय (Capex) को अर्थव्यवस्था का मुख्य चालक बनाए रखेगी, जबकि साथ ही साथ वित्तीय अनुशासन को भी प्राथमिकता दी जाएगी।
मजबूत जीडीपी और गिरती महंगाई: नीति निर्माताओं के लिए स्वर्ण अवसर
ईवाई की रिपोर्ट में भारत के मौजूदा आर्थिक परिदृश्य को बेहद सकारात्मक बताया गया है। बजट सीजन से ठीक पहले आए आर्थिक आंकड़े सरकार के लिए किसी बड़ी राहत से कम नहीं हैं। वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही (Q2 FY26) के दौरान भारत की वास्तविक जीडीपी (Real GDP) ने 8.2% की शानदार विकास दर दर्ज की है। यह वृद्धि दर न केवल उम्मीदों से बेहतर है, बल्कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत की मजबूती को भी प्रदर्शित करती है। इस उच्च वृद्धि का श्रेय मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर की मजबूती को दिया जा रहा है, जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई ऊर्जा प्रदान की है।
इससे भी अधिक उत्साहजनक खबर महंगाई के मोर्चे पर है। रिपोर्ट के अनुसार, खुदरा महंगाई दर गिरकर 0.7% के ऐतिहासिक निचले स्तर पर आ गई है। महंगाई में यह अप्रत्याशित कमी नीति निर्माताओं के लिए एक ‘स्वर्ण अवसर’ की तरह है। आम तौर पर, सरकार और रिजर्व बैंक को विकास और महंगाई के बीच चुनाव करना पड़ता है, लेकिन मौजूदा स्थिति में महंगाई का दबाव न्यूनतम होने के कारण सरकार बिना किसी हिचकिचाहट के अपना पूरा ध्यान और संसाधन विकास कार्यों पर केंद्रित कर सकती है। यह स्थिति वित्त मंत्री को बजट में साहसिक निर्णय लेने की गुंजाइश प्रदान करती है।
पूंजीगत व्यय: विकास की नई परिभाषा और इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर
ईवाई के विश्लेषण के मुताबिक, आगामी वित्त वर्ष 2026-27 में भी सार्वजनिक पूंजीगत व्यय (Public Capex) ही विकास का सबसे बड़ा हथियार बना रहेगा। सरकार की मंशा चालू वित्त वर्ष के आंकड़ों में स्पष्ट रूप से झलकती है। अप्रैल से अक्टूबर के बीच वित्त वर्ष 2026 के दौरान पूंजीगत व्यय में 32.4% की भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह आंकड़ा इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि सरकार का पूरा ध्यान सड़क, रेलवे, बंदरगाह और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण पर है। इसके विपरीत, सरकार ने अपने राजस्व व्यय (Revenue Expenditure), जिसमें वेतन, पेंशन और सब्सिडी जैसे खर्च शामिल हैं, पर कड़ा नियंत्रण रखा है। इस अवधि में राजस्व व्यय में केवल 0.03% की नगण्य वृद्धि हुई है, जो सरकार के खर्च प्रबंधन की कुशलता को दर्शाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत को मध्यम अवधि में 6.5% या उससे अधिक की जीडीपी विकास दर को लगातार बनाए रखना है, तो पूंजीगत व्यय में प्रति वर्ष कम से कम 15-20% की वृद्धि अनिवार्य है। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में, जहां अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अनिश्चितता बनी हुई है और भारतीय निर्यात (Exports) पर दबाव है, घरेलू सरकारी निवेश ही अर्थव्यवस्था को सुरक्षा कवच प्रदान कर सकता है। सरकारी निवेश से न केवल संपत्ति का निर्माण होता है, बल्कि यह निजी निवेश को भी प्रोत्साहित करता है और बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करता है।
कर राजस्व में सुस्ती और वित्तीय चुनौतियों का सामना
यद्यपि विकास के आंकड़े उत्साहजनक हैं, लेकिन सरकार की कमाई यानी राजस्व के मोर्चे पर कुछ चुनौतियां भी उभर कर सामने आई हैं। कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स (CGA) के आंकड़ों का हवाला देते हुए ईवाई ने सचेत किया है कि अप्रैल-अक्टूबर FY26 के दौरान सरकार के सकल कर राजस्व (Gross Tax Revenue) में केवल 4.0% की वृद्धि हुई है। पिछले वित्त वर्ष की इसी समान अवधि में यह वृद्धि दर 10.8% थी। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही तरह के करों में आई यह सुस्ती सरकार के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह भविष्य में बड़े खर्चों के लिए ‘राजकोषीय गुंजाइश’ (Fiscal Space) को सीमित कर सकती है।
टैक्स कलेक्शन में आई इस कमी के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन ईवाई की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि सरकार के पास अब खर्च करने के लिए बहुत अधिक अतिरिक्त धन उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में, सरकार को अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं और राजकोषीय अनुशासन के बीच बहुत सावधानी से संतुलन बनाना होगा। विकास की गति को बनाए रखते हुए टैक्स राजस्व को कैसे बढ़ाया जाए, यह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए बजट 2026-27 की सबसे बड़ी पहेली होगी।
राजकोषीय घाटे का लक्ष्य और आय के वैकल्पिक स्रोत
राजस्व में सुस्ती के बावजूद, ईवाई की रिपोर्ट में यह उम्मीद जताई गई है कि सरकार वित्त वर्ष 2026 के लिए निर्धारित 4.4% के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहेगी। सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई मोर्चों पर काम कर रही है। सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ‘गैर-कर राजस्व’ (Non-Tax Revenues) की होगी, जिसमें सार्वजनिक उपक्रमों के लाभांश और अन्य स्रोतों से होने वाली आय शामिल है। इसके अलावा, सरकार ने हाल ही में तंबाकू जैसे उत्पादों पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर अपने राजस्व को सहारा देने की कोशिश की है।
खर्चों पर कड़ा नियंत्रण और फालतू व्यय में कटौती भी सरकार की रणनीति का हिस्सा है। ईवाई के अनुसार, सरकार अपनी उधारियों को सीमित रखकर बाजार में ब्याज दरों को स्थिर रखने का प्रयास करेगी, जिससे निजी क्षेत्र को सस्ता कर्ज मिल सके और निवेश का चक्र बना रहे। राजकोषीय अनुशासन का यह मार्ग न केवल देश की साख को वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की नजर में मजबूत करेगा, बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता भी सुनिश्चित करेगा।
अनुशासित विकास की ओर सरकार के बढ़ते कदम
आगामी बजट का सार ‘अनुशासित विकास’ रहने वाला है। ईवाई की रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एफआरबीएम (Fiscal Responsibility and Budget Management) अधिनियम के लक्ष्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहरा सकती हैं। बजट में घाटे को कम करने का एक स्पष्ट और विश्वसनीय रोडमैप पेश किए जाने की संभावना है। सरकार ‘चादर देखकर पैर पसारने’ की नीति पर चलते हुए केवल उन क्षेत्रों में निवेश बढ़ाएगी जो भविष्य में आर्थिक रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं।
कुल मिलाकर, बजट 2026-27 एक ऐसी आर्थिक नीति का दस्तावेज होगा जो भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में पूंजीगत निवेश को प्राथमिकता देगा, लेकिन वित्तीय अस्थिरता की कीमत पर नहीं। कम महंगाई और मजबूत जीडीपी की पृष्ठभूमि में, यह बजट भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई ऊंचाई पर ले जाने का सामर्थ्य रखता है। निवेशकों, उद्योगों और आम जनता की नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि सरकार अपनी इस जटिल वित्तीय गणित को बजट के माध्यम से कैसे जमीन पर उतारती है।