• October 14, 2025

ट्रंप को कानूनी झटका: पोर्टलैंड में सैन्य तैनाती पर कोर्ट की रोक

पोर्टलैंड, 5 अक्टूबर 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को एक अप्रत्याशित कानूनी झटके का सामना करना पड़ा है। पोर्टलैंड की संघीय अदालत ने उनकी उस योजना पर अस्थायी रोक लगा दी, जिसमें वे शहर की संघीय सुविधाओं की सुरक्षा के नाम पर राज्य राष्ट्रीय गार्ड के सैनिकों को तैनात करना चाहते थे। जज करिन इमरगुट ने शनिवार को यह फैसला सुनाया, जो कम से कम 18 अक्टूबर तक लागू रहेगा। ट्रंप ने हाल ही में पोर्टलैंड को ‘युद्धग्रस्त शहर’ करार दिया था, लेकिन स्थानीय अधिकारी इसे राजनीतिक हथकंडा बता रहे हैं। क्या यह तैनाती वाकई आवश्यक थी, या यह सिर्फ डेमोक्रेटिक शहरों पर दबाव बनाने की चाल? विरोध प्रदर्शन छोटे-मोटे बताए जा रहे हैं, फिर भी संघीय हस्तक्षेप क्यों? यह मामला अमेरिकी संविधान की सीमाओं और राष्ट्रपति की शक्तियों पर सवाल खड़े कर रहा है। आगे की कहानी और भी रोचक है।

ट्रंप की विवादास्पद घोषणा

डोनाल्ड ट्रंप ने 27 सितंबर को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ सोशल पर एक पोस्ट के जरिए पोर्टलैंड को निशाना बनाया। उन्होंने शहर को ‘युद्धग्रस्त’ बताते हुए कहा कि वहां आगजनी और अराजकता फैली हुई है, और ‘घरेलू आतंकवादियों’ से संघीय संपत्ति को खतरा है। ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने ओरेगन की गवर्नर टिना कोटेक से बात की है और रक्षा सचिव पीट हेगसेथ को 200 राष्ट्रीय गार्ड सदस्यों को संघीय नियंत्रण में लेने का आदेश दिया है। यह तैनाती 60 दिनों के लिए आईसीई (इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट) सुविधाओं की रक्षा के लिए थी। लेकिन राज्य अधिकारियों ने इसे खारिज कर दिया। गवर्नर कोटेक ने कहा कि स्थानीय पुलिस ही पर्याप्त है, और यह कदम राज्य की संप्रभुता पर हमला है। ट्रंप प्रशासन का कहना था कि हाल के प्रदर्शन हिंसक हैं, लेकिन पोर्टलैंड पुलिस के रिकॉर्ड कुछ और ही बयान देते हैं। सितंबर में प्रदर्शन ज्यादातर शांतिपूर्ण रहे, जिसमें मुश्किल से कुछ दर्जन लोग शामिल थे। यह घोषणा ट्रंप की व्यापक रणनीति का हिस्सा लगती है, जहां वे डेमोक्रेटिक शहरों जैसे लॉस एंजिल्स और शिकागो में भी सैन्य हस्तक्षेप की बात कर चुके हैं। व्हाइट हाउस ने इसे ‘कानून व्यवस्था बहाल करने’ का प्रयास बताया, लेकिन आलोचक इसे चुनावी स्टंट मान रहे हैं। इस पोस्ट ने तुरंत विवाद खड़ा कर दिया, और राज्य ने कोर्ट का रुख किया।

राज्य का कोर्ट में कदम

ओरेगन अटॉर्नी जनरल डैन रेफील्ड ने 28 सितंबर को पोर्टलैंड की संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया। मुकदमे में दावा किया गया कि ट्रंप का यह फैसला असंवैधानिक है और राज्य की संप्रभुता का उल्लंघन करता है। वकीलों ने तर्क दिया कि पोर्टलैंड में हाल के विरोध प्रदर्शन 2020 के बड़े आंदोलनों से बिल्कुल अलग हैं—वे छोटे, शांतिपूर्ण और सीमित हैं। सितंबर में औसतन 50-60 प्रदर्शनकारी ही थे, और कोई बड़ा विद्रोह या कानून-व्यवस्था का संकट नहीं दिखा। पोर्टलैंड पुलिस ब्यूरो और ओरेगन स्टेट पुलिस के बयानों से स्पष्ट था कि स्थानीय बल स्थिति संभाल सकता है। ट्रंप प्रशासन ने जवाब में कहा कि आईसीई सुविधा पर ‘उग्र हमले’ हो रहे हैं, लेकिन अदालत को दिए सबूतों में केवल 27 गिरफ्तारियां ही दर्ज थीं जून से। राज्य ने अमेरिकी संविधान के 10वें संशोधन का हवाला दिया, जो राज्यों को असंबंधित शक्तियां सौंपता है। उन्होंने आरोप लगाया कि ट्रंप सिर्फ राजनीतिक विरोधी डेमोक्रेटिक शहरों को निशाना बना रहे हैं। सुनवाई 3 अक्टूबर को हुई, जहां जज इमरगुट ने दोनों पक्षों के तर्क सुने। ट्रंप ने ही 2019 में इमरगुट को नियुक्त किया था, जो इस मामले को और दिलचस्प बनाता है। राज्य ने तत्काल रोक की मांग की, ताकि सैनिक तैनाती न हो सके। रेफील्ड ने कहा, ‘यह लोकतंत्र की रक्षा का सवाल है।’ मुकदमा आगे बढ़ेगा, लेकिन अस्थायी रोक ने ट्रंप की योजनाओं को पंगु बना दिया।

जज का फैसला और प्रभाव

शनिवार को जज करिन इमरगुट ने 14 दिनों की अस्थायी रोक लगाने का फैसला सुनाया, जो 18 अक्टूबर तक चलेगी। उन्होंने लिखा, ‘राष्ट्रपति को सैन्य निर्णयों में सम्मान मिलता है, लेकिन वे तथ्यों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। यहां कोई विद्रोह या गंभीर खतरा नहीं है।’ जज ने कहा कि प्रदर्शन हिंसक या बाधक नहीं हैं, और ऐसी तैनाती स्थिति को और भड़का सकती है—जैसा कि 2020 में लॉस एंजिल्स में हुआ था। ट्रंप प्रशासन ने अपील करने की धमकी दी है, और व्हाइट हाउस प्रवक्ता अबिगेल जैक्सन ने कहा, ‘हम उच्च अदालत में जीतेंगे।’ लेकिन यह फैसला ट्रंप की व्यापक रणनीति पर सवाल उठाता है, जहां वे चिकागो और मेम्फिस जैसे शहरों में सैनिक भेज रहे हैं। ओरेगन गवर्नर कोटेक ने स्वागत किया, कहते हुए, ‘कानून का राज बरकरार है।’ विशेषज्ञों का मानना है कि यह 10वें संशोधन की जीत है, जो राज्य अधिकारों की रक्षा करता है। पोर्टलैंड में प्रदर्शन अब भी जारी हैं, लेकिन बिना सैन्य हस्तक्षेप के। यह मामला राष्ट्रपति की शक्तियों की सीमाओं पर बहस छेड़ सकता है, खासकर आगामी चुनावों से पहले। राज्य 17 अक्टूबर को रोक बढ़ाने की सुनवाई मांगेगा। कुल मिलाकर, यह ट्रंप के ‘कठोर कानून’ अभियान को झटका है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों को चुनौती दे रहा था।
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Rama Niwash Pandey

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