दुनिया को अध्यात्म के साथ संस्कृति एवं परम्परा से परिचित करायेगी अयोध्या
त्रेतायुग की अयोध्या कैसी थी, हमने नहीं देखी पर कलयुग की अयोध्या पूरी दुनिया देखेगी और यह अयोध्या अध्यात्म के साथ सनातन संस्कृति और परंपरा से परिचित करायेगी। रामकथा,रामलीला,शास्त्रीय संगीत की श्रृंखला जहां संपूर्ण भारत को एकसूत्र में पिरोएगी,वहीं 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बनकर सामने आएगा। साथ ही 22 जनवरी को देश भर में दीपोत्सव मनाया जाएगा। यह दीपोत्सव दीपावली पर्व से बिल्कुल अलग और बृहद होगा। तेल और बाती की लौ (रामज्योति) भगवान राम के प्रति अगाध आस्था प्रदर्शित करेगी।
अयोध्या के हनुमत निवास के महंत डॉ.मिथिलेशनंदिनी शरण जी महाराज कहते हैं कि रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे, ये छह शब्द 500 वर्षों से भारत के जनमानस में गूंज रहे थे। आज हम गर्व से कह सकते हैं-रामलला हम आ रहे हैं, मंदिर वहीं बन गया है। जो कभी समर्पण लेने आए थे,अब निमंत्रण देने आ रहे हैं। कोटि-कोटि जन जिन राम से जुड़े हैं,रामजी उन कोटि-कोटि जन से जुड़ने जा रहे हैं। देश के साथ सब रामरंग में रंगे हुए हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का स्वभाव भी यही है। पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण, भारत का हर अंचल और हर व्यक्ति जुड़ा हुआ है श्रीराम से।
राम नाम की अमिट महिमा
उन्होंने बताया कि राम का अर्थ है मेरे भीतर प्रकाश, मेरे हृदय में प्रकाश। निश्चय ही ‘राम’ ईश्वर का नाम है, जो इस धरती पर 7560 ईसा पूर्व अर्थात 9500 वर्ष पूर्व अवतरित हुए थे। हजारों वर्षों बाद आज भी भगवान राम अपनी सच्चाई के लिए जाने जाते हैं। उन्हें पुरुषोत्तम भी कहा जाता है- एक आदर्श सम्राट। उन्होंने बताया कि एक बार महात्मा गांधी ने कहा था, ‘आप मेरा सब कुछ ले लीजिए मैं तब भी जीवित रह सकता हूं परंतु यदि आपने मुझसे राम को दूर कर दिया तो मैं नहीं रह सकता। उन्होंने मृत्यु से पूर्व जो अंतिम शब्द कहे थे, वह ‘हे राम!’ थे। भारत के लगभग हर क्षेत्र में राम को पाया जा सकता है। हर राज्य में हमें एक ‘रामपुर’ या एक ‘रामनगर’ मिल ही जायेगा। हर जगह, किसी पत्र पर केवल ‘रामनगर’ लिखने से डाक विभाग भ्रमित हो जाएगा। भारत में हजारों ‘रामनगर’ हैं।
उन्होंने कहा कि भारतवासियों के रोम-रोम में ‘राम’ हैं। हम जब किसी से मिलते हैं या किसी का अभिवादन करते हैं तो नमस्कार,प्रणाम या राम-राम कहते हैं। किसी को अभिवादन करना हमारी संस्कृति ही नहीं सभी संस्कृतियों का अभिन्न अंग है। राम शब्द संस्कृत के दो धातुओं,रम् और घम से बना है। रम् का अर्थ है रमना या निहित होना और घम का अर्थ है ब्रह्मांड का खाली स्थान। इस प्रकार राम का अर्थ सकल ब्रह्मांड में निहित या रमा हुआ तत्व यानी चराचर में विराजमान स्वयं ब्रह्म। शास्त्रों में लिखा है, ‘रमन्ते योगिनः अस्मिन सा रामं उच्यते’ अर्थात, योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं उसे राम कहते हैं।





