• October 14, 2025

बानू मुश्ताक को मैसूर दशहरा उद्घाटन के मुख्य अतिथि बनाने पर बढ़ा विवाद, कर्नाटक सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

बेंगलुरु, 18 सितंबर 2025: कर्नाटक में मैसूर दशहरा समारोह को लेकर राजनीतिक विवाद ने तूल पकड़ लिया है। राज्य सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका बानू मुश्ताक को इस साल के दशहरा उत्सव के उद्घाटन के लिए मुख्य अतिथि बनाया है। इस फैसले पर विपक्षी दल भाजपा और कुछ हिंदू संगठनों ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह हिंदू परंपराओं और धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है, जहां याचिका दायर की गई है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने पहले इन याचिकाओं को खारिज कर दिया था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।मैसूर दशहरा कर्नाटक का एक प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक त्योहार है, जो हर साल अक्टूबर में आयोजित होता है। यह समारोह चामुंडेश्वरी देवी के सम्मान में होता है और इसमें वैदिक मंत्रोच्चार, पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होते हैं। इस साल का उद्घाटन 22 सितंबर को होना है। राज्य सरकार ने 3 सितंबर को बानू मुश्ताक को औपचारिक निमंत्रण भेजा था।
सरकार का कहना है कि बानू मुश्ताक एक प्रसिद्ध लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्हें आमंत्रित करने से सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ेगा। लेकिन विपक्ष का तर्क है कि एक मुस्लिम महिला को हिंदू धार्मिक समारोह का उद्घाटन करने देना परंपराओं का अपमान है।बानू मुश्ताक कौन हैं? 62 वर्षीय बानू मुश्ताक कन्नड़ भाषा की प्रमुख लेखिका हैं। उन्होंने अपनी कहानी संग्रह ‘एडेया हनाटे’ (हार्ट लैंप) के लिए मई 2025 में अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता था। वे किसान आंदोलनों, कन्नड़ भाषा संरक्षण और महिला अधिकारों से जुड़ी रही हैं। उनके लेखन में सामाजिक मुद्दों पर गहराई से चर्चा होती है। लेकिन विवाद तब भड़का जब उनके कुछ पुराने बयानों का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इस वीडियो में बानू मुश्ताक ने कन्नड़ भाषा को ‘देवी भुवनेश्वरी’ के रूप में पूजने पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि यह अल्पसंख्यकों के लिए बहिष्करणकारी है। भाजपा नेताओं ने इसे हिंदू संस्कृति के खिलाफ बताया और उनसे देवी चामुंडेश्वरी के प्रति अपनी आस्था स्पष्ट करने की मांग की।विवाद की शुरुआत अगस्त के अंत में हुई। कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने कहा, “दशहरा एक हिंदू त्योहार है। इसका उद्घाटन हमेशा वैदिक परंपराओं के अनुसार होता है।
बानू मुश्ताक के बयान हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं। उन्हें पहले अपनी श्रद्धा साबित करनी चाहिए।” अन्य भाजपा नेता जैसे सी.टी. रवि ने भी सरकार के फैसले पर आश्चर्य जताया। उन्होंने कहा कि यह धार्मिक समारोह की पवित्रता को भंग करने जैसा है। कुछ हिंदू संगठनों ने तो सड़कों पर विरोध प्रदर्शन भी किए। उनका कहना था कि मुस्लिम महिला को चामुंडेश्वरी मंदिर में उद्घाटन करने देना परंपराओं का उल्लंघन है।दूसरी ओर, कर्नाटक सरकार ने इसका बचाव किया। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा, “बानू मुश्ताक एक सम्मानित लेखिका हैं। उन्हें आमंत्रित करना भारत की गंगा-जमुनी तहजीब को मजबूत करेगा। धर्म के नाम पर भेदभाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।” सरकार के मंत्री ने भी कहा कि दशहरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव है, जिसमें सभी को भाग लेने का अधिकार है। बानू मुश्ताक ने खुद भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “मैं सम्मानित महसूस कर रही हूं। मैं सभी धर्मों का सम्मान करती हूं और उत्सव में भाग लेना चाहती हूं।”इस विवाद के बाद विरोधियों ने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कीं। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सरकार का फैसला संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है। उन्होंने मांग की कि बानू मुश्ताक को उद्घाटन से रोका जाए। लेकिन 15 सितंबर को हाईकोर्ट ने सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति के बेंच ने कहा, “किसी विशेष धर्म के व्यक्ति का दूसरे धर्म के त्योहार में शामिल होना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। लोगों की भावनाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे संवैधानिक सिद्धांतों से ऊपर नहीं हो सकतीं।” कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 25 का अधिकार केवल एक व्यक्ति को सीमित नहीं है।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष को झटका लगा। लेकिन वे रुके नहीं। भाजपा समर्थक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। 17 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर लिया। अब 20 सितंबर को सुनवाई हो सकती है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हाईकोर्ट का फैसला गलत है और यह धार्मिक भावनाओं की अनदेखी करता है। वे चाहते हैं कि उद्घाटन रद्द हो या किसी हिंदू व्यक्तित्व को चुना जाए।यह विवाद कर्नाटक की राजनीति को और गर्म कर रहा है। राज्य में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और भाजपा इसे सांप्रदायिक मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस सरकार पर आरोप लगा रही है कि वह अल्पसंख्यक तुष्टिकरण कर रही है। वहीं, सरकार इसे सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बता रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता और परंपराओं के बीच संतुलन का सवाल है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह भविष्य के ऐसे मामलों को प्रभावित कर सकता है।मैसूर दशहरा की तैयारियां जोरों पर हैं। समारोह में रंगारंग झांकियां, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। लेकिन इस विवाद ने उत्सव की छवि पर साया डाल दिया है। बानू मुश्ताक ने कहा है कि वे कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगी। अगर सुप्रीम कोर्ट भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखता है, तो उद्घाटन तय समय पर होगा। अन्यथा, समारोह में बदलाव हो सकता है।यह घटना भारत की विविधता को दर्शाती है, जहां धर्म और संस्कृति के बीच तनाव अक्सर उभरता है। लेकिन उम्मीद है कि कोर्ट का फैसला शांति और एकता का संदेश देगा।
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Rama Niwash Pandey

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