आगरा में दुर्गा विसर्जन का काला अध्याय: उटंगन नदी ने कैसे निगला 12 युवाओं की जिंदगियां?
3 अक्टूबर 2025, आगरा: दशहरा की धूम में छिपी एक ऐसी त्रासदी, जिसने पूरे गांव को सन्नाटे में डुबो दिया। उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के खेरागढ़ इलाके में उटंगन नदी के किनारे दुर्गा प्रतिमा विसर्जन की खुशियां मौत में बदल गईं। 13 युवक नदी में उतरे, लेकिन 12 की सांसें थम गईं। एकमात्र बचे सचिन की रोंगटे खड़े करने वाली कहानी—हाथ पकड़े एक-दूसरे को बचाने की कोशिश, फिर अचानक का वह झटका। क्या गहरे गड्ढे और अनजानी गहराई ने सब कुछ छीन लिया? आइए, इस दर्दनाक हादसे की परतें खोलें।
विसर्जन की धूम से मौत का साया: कैसे बदला इरादा?
गुरुवार दोपहर, दशहरा के उल्लास में कुसियापुर डूंगरवाला गांव के 40-50 लोग चामुंडा माता मंदिर से दुर्गा प्रतिमा लेकर उटंगन नदी की ओर बढ़े। महिलाएं-बच्चे किनारे रुके, तो 13 युवक—उम्र 16 से 26 साल—प्रतिमा विसर्जन के लिए आगे बढ़े। शुरू में नदी के पुल के नीचे बने कुंड का प्लान था, लेकिन अचानक इरादा बदल गया। बाबू महाराज मंदिर के पास नदी किनारे पहुंचे, जहां हाल ही में पक्का रास्ता बना था। ग्रामीणों के मुताबिक, पुलिस ने चेतावनी दी कि यहां कुंड नहीं है, लेकिन युवकों ने कहा—राजस्थान के कैला देवी धाम जाकर विसर्जन करेंगे। प्रतिमा उतारते ही नहाने उतरे, और फिर सब कुछ पलक झपकते बदल गया।
सचिन की जीवट कहानी: हाथ छूटा, साथी खोए
मौत से बचकर निकले सचिन (26, पुत्र रामवीर) की आंखों में आज भी वह दृश्य घूम रहा है। भय से पीला चेहरा, लरजती आवाज—सचिन ने बताया, “हम 13 दोस्त एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नदी में उतरे। गगन, ओमपाल और मनोज सबसे आगे थे। पानी कमर तक था, 70-80 मीटर अंदर तक पहुंचे। अचानक एक के बाद एक डूबने लगे। हाथ पकड़े होने से सब एक-दूसरे को खींचने लगे, लेकिन एक झटके से मेरा हाथ छूट गया। जब तक समझा, सब गायब।” विष्णु (20) को ग्रामीणों ने बाहर निकाला, लेकिन उसकी हालत गंभीर है—एसएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती। बाकी 12—ओमपाल (25), गगन (24), हरेश (20), अभिषेक (17), भगवती (22), दीपक, ओके (16) समेत—नदी ने निगल लिया। बचाव में युवक एक-दूसरे को बचाने की कोशिश में उलझ गए, जो उनकी आखिरी भूल साबित हुई।
गड्ढों का जाल: खनन और पानी की धोखेबाजी
ग्रामीणों का कहना है, बाबू महाराज मंदिर के पास इस बार नदी में इतना पानी कभी नहीं आया। हाल ही पक्का मार्ग बनने से पहुंच आसान हो गई, लेकिन खतरा भी। अवैध खनन माफिया ने जेसीबी से गहराई बढ़ा दी—हादसे वाली जगह पर 20-25 फीट का गड्ढा। दोपहर 1 बजे के आसपास युवक कम गहराई समझकर आगे बढ़े, लेकिन गड्ढे में फिसल पड़े। “पहले पानी कम रहता था, अब खनन ने जाल बिछा दिया,” बोले ग्रामीण। एसडीआरएफ और गोताखोरों ने रातभर सर्च किया—3 अक्टूबर तक 4 शव बरामद (भगवती सहित), बाकी की तलाश जारी। डीसीपी पश्चिमी जोन अतुल शर्मा ने कहा, “हाथ पकड़कर बचाने की कोशिश में सब फंस गए। सतर्कता की कमी घातक साबित हुई।”
परिवारों का कोहराम: चीखें और प्रार्थनाएं
हादसे की खबर फैलते ही कुसियापुर गांव में सन्नाटा पसर गया। मांएं-बहनें नदी किनारे प्रार्थना करती रहीं—कई घंटे तक बेटों का इंतजार। गोताखोर खाली हाथ लौटते देख चीखें गूंजीं, धैर्य टूटा। “बेटा हाथ पकड़े था, फिर कैसे?”—एक मां की पुकार। ग्रामीणों ने पुलिस की देरी पर गुस्सा जताया, एसडीएम की गाड़ी के शीशे तोड़े। सुबह पुलिस आयुक्त रामबदन सिंह ने समझाया, “संयम रखें, ऑपरेशन जारी है।” जिलाधिकारी अरविंद मलप्पा बंगारी ने मुआवजे का ऐलान किया, लेकिन खोई जिंदगियां कौन लौटाएगा? गांव में मातम छाया है—दशहरा का जश्न अब शोक सभा बन गया।
सबक या दोहराव? सुरक्षा के जख्म
यह हादसा नदी किनारों पर सुरक्षा की पोल खोलता है। अवैध खनन, गहरे गड्ढे, चेतावनी की कमी—सब मिलकर घातक साबित हुए। ताजगंज में भी यमुना में 2 किशोर डूबे, जहां 3 को बचाया गया। प्रशासन ने विसर्जन स्थलों पर फ्लोटिंग डिवाइस और गोताखोर तैनाती का वादा किया, लेकिन सवाल वही—क्या अगले दशहरे तक भूल जाएंगे? सचिन की कहानी चेतावनी है: उत्साह में सतर्कता न भूलें। आगरा का यह काला दिन हमें सोचने पर मजबूर करता है—जश्न की चमक में छिपे खतरे को पहचानें।
