• December 25, 2025

रेलवे पटरियों पर थमेगा खूनी खेल: असम रेल हादसे के बाद जागा रेल मंत्रालय, अब AI रखेगा वन्यजीवों पर पैनी नजर

नई दिल्ली/गुवाहाटी: भारतीय रेलवे की पटरियां अक्सर वन्यजीवों, विशेषकर हाथियों के लिए ‘डेथ ट्रैप’ साबित होती रही हैं। हाल ही में असम में राजधानी एक्सप्रेस के साथ हुई भीषण दुर्घटना ने एक बार फिर रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण के बीच के संघर्ष को सुर्खियों में ला दिया है। इस हादसे की गंभीरता को देखते हुए भारतीय रेलवे अब पूरी तरह से अलर्ट मोड में है। रेल मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि अब पटरियों पर हाथियों, शेरों और बाघों जैसे बड़े जानवरों की जान बचाने के लिए अत्याधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित सुरक्षा कवच का सहारा लिया जाएगा।

असम हादसा: जब राजधानी एक्सप्रेस की चपेट में आए सात गजराज

यह पूरी कवायद असम के होजाई जिले में हुई एक हृदयविदारक घटना के बाद शुरू हुई है। दरअसल, सैरांग-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस अपनी तेज रफ्तार से गुजर रही थी, तभी हाथियों का एक झुंड रेलवे ट्रैक पार करने लगा। अंधेरा और ट्रेन की तेज गति के कारण लोको पायलट समय रहते ट्रेन नहीं रोक सका। टक्कर इतनी भीषण थी कि मौके पर ही सात हाथियों की दर्दनाक मौत हो गई।

इस टक्कर का प्रभाव इतना जोरदार था कि राजधानी एक्सप्रेस का शक्तिशाली इंजन और पांच कोच पटरी से उतर गए। गनीमत यह रही कि ट्रेन में सवार यात्रियों को कोई गंभीर चोट नहीं आई और एक बड़ा मानवीय हादसा टल गया। हालांकि, सात वन्यजीवों की मौत ने रेलवे और वन विभाग के बीच समन्वय और तकनीक की कमी को उजागर कर दिया। इस घटना के बाद देशभर के पर्यावरण प्रेमियों और वन्यजीव विशेषज्ञों ने रेलवे की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे।

क्या है ‘इंट्रूज़न डिटेक्शन सिस्टम’ और कैसे काम करता है AI?

हादसे से सबक लेते हुए रेलवे ने अब ‘एआई आधारित इंट्रूज़न डिटेक्शन सिस्टम’ (IDS) को देशभर के संवेदनशील रेल खंडों में लागू करने का फैसला किया है। यह सिस्टम मुख्य रूप से ‘डिस्ट्रिब्यूटेड एकॉस्टिक सिस्टम’ (DAS) तकनीक पर आधारित है। सरल शब्दों में कहें तो यह तकनीक पटरियों के आसपास होने वाली किसी भी असामान्य हलचल और भूमिगत कंपन (Vibration) को पहचानने में सक्षम है।

जब भी कोई बड़ा जानवर जैसे हाथी या शेर पटरी के करीब (लगभग 5 से 10 मीटर के दायरे में) आता है, तो उसके भारी पैरों से उत्पन्न होने वाले कंपन को यह एआई सिस्टम तुरंत भांप लेता है। यह सिस्टम इतना सटीक है कि यह हवा के दबाव, बारिश के शोर और जानवरों की आवाजाही के बीच अंतर कर सकता है। जैसे ही किसी खतरे की पुष्टि होती है, यह रीयल-टाइम डेटा विश्लेषण करता है और बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के तुरंत चेतावनी जारी कर देता है।

हादसा होने से पहले ही मिलेगा लोको पायलट को अलर्ट

इस तकनीक की सबसे बड़ी खूबी इसका रिस्पांस टाइम है। जैसे ही ट्रैक पर किसी जानवर की मौजूदगी का पता चलता है, सिस्टम तुरंत लोको पायलट (ट्रेन चालक), निकटतम स्टेशन मास्टर और मुख्य कंट्रोल रूम को अलर्ट भेज देता है। लोको पायलट को उसके केबिन में लगे उपकरण के माध्यम से करीब आधा से एक किलोमीटर पहले ही चेतावनी मिल जाती है।

इतनी दूरी ट्रेन की गति को नियंत्रित करने या उसे पूरी तरह रोकने के लिए पर्याप्त होती है। इससे न केवल पटरियों पर खड़े जानवरों की जान बचेगी, बल्कि ट्रेन के पटरी से उतरने (Derailment) की घटनाओं पर भी लगाम लगेगी, जिससे हजारों यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। रेलवे का मानना है कि तकनीक का यह हस्तक्षेप भविष्य में वन्यजीव-ट्रेन टकराव की घटनाओं को शून्य तक ला सकता है।

नॉर्थ ईस्ट में सफल परीक्षण के बाद अब देशभर में विस्तार

भारतीय रेलवे ने इस एआई सिस्टम का परीक्षण पहले ही नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर रेलवे के 141 किलोमीटर लंबे हिस्से में शुरू कर दिया था। इस क्षेत्र में हाथियों के कॉरिडोर होने के कारण टकराव की घटनाएं सबसे अधिक होती थीं। शुरुआती नतीजों में पाया गया कि इस सिस्टम ने कई बार हाथियों के झुंड को ट्रैक पर आने से पहले ही लोको पायलट को सतर्क कर दिया, जिससे दर्जनों संभावित हादसे टल गए।

असम के ताजा हादसे के बाद रेल मंत्रालय ने इस परियोजना की गति बढ़ा दी है। अब रेलवे ने 981 किलोमीटर के नए ट्रैक पर इस एआई आधारित सिस्टम को लगाने के लिए टेंडर जारी कर दिए हैं। यह सिस्टम उन सभी राज्यों में लगाया जाएगा जहाँ रेल ट्रैक घने जंगलों या नेशनल पार्क के बीच से गुजरते हैं, जैसे पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, उत्तराखंड और केरल।

यात्री सुरक्षा और वन्यजीव संरक्षण का अनूठा मेल

अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि विकास और पर्यावरण साथ-साथ नहीं चल सकते, लेकिन रेलवे का यह नया कदम इस धारणा को बदल रहा है। तेज रफ्तार वाली ट्रेनों (जैसे वंदे भारत और राजधानी) के दौर में वन्यजीवों की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बन गई है। जब कोई भारी भरकम जानवर ट्रेन से टकराता है, तो इंजन को भारी नुकसान होता है और ट्रेन के बेपटरी होने का खतरा बढ़ जाता है।

रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एआई आधारित यह समाधान ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘डिजिटल इंडिया’ का एक शानदार उदाहरण है। इससे रेलवे को न केवल अपने इंजनों और कोचों की मरम्मत पर होने वाले करोड़ों रुपये के खर्च को बचाने में मदद मिलेगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की छवि एक ऐसे देश के रूप में उभरेगी जो अपनी प्रगति के साथ-साथ प्राकृतिक संपदा का भी ख्याल रखता है।

वन विभाग और रेलवे के बीच बढ़ेगा तालमेल

तकनीक के अलावा, रेलवे अब वन विभाग के साथ मिलकर रीयल-टाइम डेटा शेयरिंग पर भी काम कर रहा है। एआई सिस्टम से मिलने वाली सूचनाएं सीधे वन अधिकारियों को भी भेजी जाएंगी ताकि वे जानवरों को ट्रैक से दूर खदेड़ने के लिए त्वरित कार्रवाई कर सकें। इसके अतिरिक्त, रेलवे संवेदनशील क्षेत्रों में अंडरपास और ओवरपास (Wildlife Corridors) बनाने की योजना पर भी तेजी से काम कर रहा है, ताकि जानवरों को पटरियां पार करने की आवश्यकता ही न पड़े।

असम का हादसा एक चेतावनी थी, जिसे रेलवे ने गंभीरता से स्वीकार किया है। पटरियों पर बिछाया जा रहा यह एआई का जाल न केवल गजराजों को अभयदान देगा, बल्कि सफर कर रहे यात्रियों को भी एक सुरक्षित और निर्बाध यात्रा का भरोसा दिलाएगा। तकनीक और संवेदनशीलता का यह संगम भारतीय रेल के भविष्य की एक नई तस्वीर पेश कर रहा है।

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