वैश्विक व्यापार में ‘टैरिफ युग’ की शुरुआत: एचएसबीसी की रिपोर्ट ने 2026 को बताया अर्थव्यवस्था के लिए निर्णायक मोड़
नई दिल्ली। वैश्विक अर्थव्यवस्था इस समय एक ऐसे दौर से गुजर रही है जहां पुराने नियम बदल रहे हैं और नए व्यापारिक अवरोध खड़े हो रहे हैं। एचएसबीसी एसेट मैनेजमेंट की नवीनतम रिपोर्ट ने वर्ष 2025 और आगामी 2026 के लिए एक विस्तृत आर्थिक खाका पेश किया है। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 को वैश्विक व्यापार इतिहास में एक ‘टैरिफ-प्रभावित’ (tariff-ied) वर्ष के रूप में दर्ज किया जाएगा। इस दौरान दुनिया भर में सप्लाई चेन में बड़े व्यवधान देखे गए और व्यापारिक नीतियों में संरक्षणवाद का बोलबाला रहा। हालांकि, रिपोर्ट में भारत के लिए एक मिली-जुली लेकिन अंततः सकारात्मक तस्वीर पेश की गई है, जिसमें घरेलू मजबूती को ‘स्वर्ण युग’ का आधार बताया गया है।
2025 का व्यापारिक परिदृश्य और टैरिफ का बढ़ता साया
एचएसबीसी एसेट मैनेजमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2025 में वैश्विक व्यापार व्यवस्था ने एक निर्णायक मोड़ लिया है। भू-राजनीतिक तनावों और विभिन्न देशों की बदलती प्राथमिकताओं के कारण सप्लाई चेन में अभूतपूर्व व्यवधान आए हैं। रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि वर्तमान में वैश्विक स्तर पर औसत प्रभावी टैरिफ दर लगभग 14 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह दर दर्शाती है कि मुक्त व्यापार का दौर अब पीछे छूट रहा है और देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बचाने के लिए ऊंचे शुल्कों का सहारा ले रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 में जो टैरिफ और व्यापारिक बाधाएं लगाई गईं, वे केवल तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं थीं, बल्कि एक दीर्घकालिक संरचनात्मक बदलाव की शुरुआत थीं। इस झुकाव ने वैश्विक विकास दर और व्यापार के पारंपरिक मॉडलों को चुनौती दी है। रिपोर्ट यह भी संकेत देती है कि 2025 में पैदा हुए ये व्यवधान 2026 में एक नए स्वरूप में सामने आएंगे, जब दुनिया इन बदली हुई परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करेगी।
2026: वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण संक्रमण काल
एचएसबीसी की रिपोर्ट 2026 को एक अत्यंत महत्वपूर्ण ‘संक्रमणकाल’ के रूप में देखती है। यह वह पहला पूरा वर्ष होगा जब दुनिया भर की सरकारें और बहुराष्ट्रीय कंपनियां टैरिफ-प्रधान वैश्विक सिस्टम की वास्तविकताओं को पूरी तरह से स्वीकार करेंगी और उनके अनुसार अपनी रणनीतियों को ढालेंगी। 2026 में ऊंचे टैरिफ का प्रभाव केवल आयात-निर्यात तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका सीधा असर वैश्विक निवेश, आर्थिक वृद्धि, मुद्रास्फीति (महंगाई) और ब्याज दरों पर भी देखने को मिलेगा।
रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि मुद्राओं के मूल्य में उतार-चढ़ाव और देशों के बीच बढ़ते द्विपक्षीय व्यापार समझौते वैश्विक परिदृश्य को और अधिक जटिल बना देंगे। विशेष रूप से अमेरिका के साथ अन्य देशों के बदलते संबंध व्यापारिक समीकरणों को नए सिरे से परिभाषित करेंगे। बहुपक्षीय व्यापार समझौतों के बजाय अब देश चुनिंदा साझेदारों के साथ अलग-अलग समझौते करने की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे वैश्विक व्यापार की एकीकृत प्रकृति खंडित हो सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियां और रुपये पर दबाव
भारत के संदर्भ में एचएसबीसी की रिपोर्ट एक सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट के अनुसार, 2025 की दूसरी छमाही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण रही है। वैश्विक स्तर पर बढ़े हुए टैरिफ के झटकों ने भारतीय बाजार को भी प्रभावित किया। शुरुआत में ये झटके अल्पकालिक लग रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे इनके प्रतिकूल प्रभाव भारत के महत्वपूर्ण मैक्रो संकेतकों पर दिखने लगे। सबसे बड़ा असर भारतीय रुपये पर पड़ा है।
आंकड़ों के अनुसार, 1 जुलाई से भारतीय रुपया लगभग 4.2 प्रतिशत तक कमजोर हुआ है। इस गिरावट ने रुपये को उभरते बाजारों की मुद्राओं की श्रेणी में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में से एक बना दिया है। रुपये की इस कमजोरी ने न केवल आयात को महंगा किया है, बल्कि व्यापार घाटे और भुगतान संतुलन पर भी दबाव डाला है। इसके अलावा, भारतीय रिजर्व बैंक के लिए तरलता प्रबंधन (liquidity management) एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। बाहरी मोर्चे पर बढ़ती अस्थिरता के बीच घरेलू वित्तीय स्थिरता बनाए रखना एक कठिन कार्य साबित हो रहा है।
मजबूत घरेलू बुनियाद और भारत का स्वर्ण युग
तमाम वैश्विक चुनौतियों और रुपये की कमजोरी के बावजूद, एचएसबीसी की रिपोर्ट भारत के भविष्य को लेकर काफी आशान्वित है। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत की घरेलू आर्थिक बुनियाद अभी भी बेहद मजबूत है। यही वह मजबूती है जो भारत को ‘स्वर्ण युग’ की ओर ले जाने का संकेत देती है। भारत का विशाल आंतरिक बाजार, बढ़ता उपभोग और बुनियादी ढांचे में निरंतर निवेश इसे वैश्विक झटकों को सहने की क्षमता प्रदान करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास वह सामर्थ्य है कि वह बाहरी बाधाओं के बावजूद अपनी विकास यात्रा को जारी रख सके। हालांकि, इसके लिए जरूरी है कि भारत अपनी नीतियों को वैश्विक स्तर पर हो रहे बदलावों के अनुरूप ढाल ले। घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने वाली योजनाएं और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए किए जा रहे सुधार भारत को इस नए ‘टैरिफ युग’ में एक विजेता के रूप में उभार सकते हैं।
अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों की अनिश्चितता
भारतीय बाजारों और नीति निर्माताओं की नजरें इस समय सबसे ज्यादा अमेरिका के साथ होने वाले संभावित व्यापार समझौतों पर टिकी हैं। एचएसबीसी की रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि अमेरिका के साथ होने वाले समझौते का समय और उसका नतीजा भारत की भविष्य की आर्थिक दिशा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाएगा। अमेरिका के साथ एक बेहतर और संतुलित व्यापार समझौता भारत के लिए निर्यात के नए रास्ते खोल सकता है और टैरिफ से होने वाले नुकसान की भरपाई कर सकता है।
फिलहाल, इस मोर्चे पर अनिश्चितता बनी हुई है, जिससे निवेशक थोड़े सतर्क हैं। 2026 की ओर बढ़ते हुए, भारत को अपनी कूटनीतिक और आर्थिक नीतियों के बीच एक महीन संतुलन बनाना होगा। रिपोर्ट का निष्कर्ष यही है कि जहां वैश्विक स्तर पर परिस्थितियां कठिन हो रही हैं, वहीं भारत अपनी मजबूत आंतरिक शक्ति के बल पर इस संक्रमण काल से सफलतापूर्वक निकल सकता है। आने वाले महीने यह तय करेंगे कि भारत इन बाहरी चुनौतियों को किस प्रकार अपने पक्ष में मोड़ता है।