बांग्लादेश में तारिक रहमान की वापसी: भारत का सधा हुआ रुख, कहा- ‘लोकतांत्रिक प्रक्रिया और निष्पक्ष चुनाव का करते हैं समर्थन’
नई दिल्ली। बांग्लादेश की राजनीति में करीब दो दशक बाद आए सबसे बड़े बदलावों के बीच, भारत ने बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान की स्वदेश वापसी पर अपनी पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया दी है। भारत के विदेश मंत्रालय ने एक संक्षिप्त लेकिन कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बयान जारी करते हुए कहा कि वह बांग्लादेश में ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ चुनावों का समर्थन करता है और तारिक रहमान की वापसी को इसी लोकतांत्रिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। 17 वर्षों के आत्म-निर्वासन के बाद लंदन से ढाका लौटे तारिक रहमान की यह घर वापसी न केवल बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति, बल्कि भारत-बांग्लादेश के भविष्य के रिश्तों के लिहाज से भी अत्यंत संवेदनशील मानी जा रही है।
विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया और अल्पसंख्यकों पर चिंता
साप्ताहिक प्रेस वार्ता के दौरान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बांग्लादेश के ताजा घटनाक्रमों पर भारत का पक्ष रखा। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि भारत पड़ोसी देश में होने वाली हर छोटी-बड़ी राजनीतिक गतिविधि पर पैनी नजर बनाए हुए है। तारिक रहमान की वापसी के सवाल पर भारत ने सीधे टिप्पणी करने के बजाय इसे चुनाव और लोकतंत्र से जोड़कर देखा। भारत का यह रुख संकेत देता है कि वह बांग्लादेश की संप्रभुता का सम्मान करते हुए वहां एक ऐसी स्थिर सरकार की उम्मीद कर रहा है जो जनता के जनादेश से चुनी गई हो।
हालांकि, राजनीतिक बदलावों के बीच भारत ने बांग्लादेश में रह रहे हिंदू, ईसाई और बौद्ध समुदायों की सुरक्षा को लेकर अपनी गंभीर चिंता एक बार फिर दोहराई है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ जारी शत्रुता और हिंसा की खबरें भारत के लिए गहरी चिंता का विषय हैं। भारत ने अंतरिम सरकार से यह सुनिश्चित करने की अपील की है कि सभी नागरिकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा की जाए, ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हर वर्ग का विश्वास बना रहे।
कौन हैं तारिक रहमान और क्यों अहम है उनकी वापसी?
तारिक रहमान बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे हैं। वे साल 2008 से ही लंदन में रह रहे थे और वहीं से अपनी पार्टी बीएनपी का संचालन कर रहे थे। उनके निर्वासन के दौरान उन पर भ्रष्टाचार और 2004 के कुख्यात ढाका ग्रेनेड हमले जैसे कई गंभीर मामलों में सजा सुनाई गई थी। हालांकि, बीएनपी का हमेशा से यह स्टैंड रहा है कि ये सभी मामले तत्कालीन अवामी लीग सरकार द्वारा राजनीतिक प्रतिशोध के तहत दर्ज कराए गए थे।
तारिक रहमान की 17 साल बाद वापसी बीएनपी के कार्यकर्ताओं के लिए एक नई ऊर्जा का संचार लेकर आई है। पार्टी को उम्मीद है कि उनके आने से संगठन मजबूत होगा और आगामी चुनावों में वे एक बड़ी ताकत बनकर उभरेंगे। हालांकि, उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। उन्हें न केवल पार्टी के भीतर विभिन्न गुटों को एकजुट रखना है, बल्कि बांग्लादेश के युवाओं का भरोसा भी जीतना होगा, जो एक नई और पारदर्शी व्यवस्था की मांग कर रहे हैं। साथ ही, आर्थिक संकट और सामाजिक अस्थिरता से जूझ रहे देश को एक नई दिशा देना उनके नेतृत्व की सबसे बड़ी परीक्षा होगी।
भारत के लिए बदलती कूटनीति और क्षेत्रीय समीकरण
भारत के लिए तारिक रहमान की वापसी और बांग्लादेश का वर्तमान परिदृश्य रणनीतिक रूप से काफी जटिल है। लंबे समय तक भारत के करीबी रहे शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग फिलहाल राजनीतिक परिदृश्य से बाहर है और फरवरी 2026 में होने वाले चुनावों में भी उसकी भागीदारी अनिश्चित है। वर्तमान अंतरिम सरकार, जिसके मुखिया नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस हैं, के कार्यकाल में बांग्लादेश के झुकाव में कुछ बदलाव देखे गए हैं। कूटनीतिक गलियारों में चर्चा है कि ढाका की दिल्ली से दूरी और इस्लामाबाद से नजदीकी बढ़ रही है।
इसके अलावा, कट्टरपंथी संगठन ‘जमात-ए-इस्लामी’ की बढ़ती सक्रियता ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। भारत पारंपरिक रूप से जमात-ए-इस्लामी को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) के प्रभाव वाला संगठन मानता रहा है। ऐसे में भारत के पास अब सीमित विकल्प हैं। कूटनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भारत अब बीएनपी को एक ‘अपेक्षाकृत उदार और लोकतांत्रिक’ विकल्प के रूप में देख सकता है। हालांकि अतीत में बीएनपी के शासनकाल के दौरान भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव रहा है, लेकिन बदलती परिस्थितियों में भारत एक व्यावहारिक रुख अपनाते हुए बीएनपी के साथ संवाद के रास्ते खुले रख रहा है ताकि क्षेत्र में स्थिरता बनी रहे और भारत विरोधी तत्वों को वहां पनाह न मिले।
भविष्य की राह: चुनाव और क्षेत्रीय स्थिरता
आगामी फरवरी के चुनाव बांग्लादेश के इतिहास के सबसे निर्णायक चुनाव होने जा रहे हैं। तारिक रहमान की वापसी ने इन चुनावों को और भी दिलचस्प बना दिया है। भारत का ध्यान इस बात पर है कि क्या बांग्लादेश एक समावेशी लोकतंत्र की ओर बढ़ पाएगा या फिर वहां कट्टरपंथ हावी होगा। भारत के लिए प्राथमिकता अपने पड़ोसी देश में शांति, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और आतंकवाद मुक्त वातावरण है। तारिक रहमान की वापसी के बाद भारत का सधा हुआ बयान यह दर्शाता है कि वह बांग्लादेश के किसी भी आंतरिक नेतृत्व के साथ काम करने को तैयार है, बशर्ते वह लोकतांत्रिक हो और भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति संवेदनशील हो।