सुप्रीम कोर्ट का वक्फ संशोधन कानून पर अहम फैसला: कानून को हरी झंडी, लेकिन कुछ शर्तों पर रोक, गैर-मुस्लिम सीईओ संभव, कलेक्टर की शक्तियों पर लगाम
वक्फ का मतलब होता है धार्मिक या चैरिटी के उद्देश्य से संपत्ति दान करना। भारत में वक्फ संपत्तियां मस्जिदों, कब्रिस्तानों, स्कूलों और गरीबों की मदद के लिए इस्तेमाल होती हैं। देश में करीब 8 लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जिनकी कीमत अरबों रुपये बताई जाती है। लेकिन कई जगहों पर इन संपत्तियों पर अवैध कब्जे और विवाद हो रहे हैं। इसी को दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने 2025 में वक्फ कानून में संशोधन किया। नए कानून में वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने, सीईओ को गैर-मुस्लिम बनाने, कलेक्टर को विवाद सुलझाने की शक्ति देने और वक्फ बनाने के लिए कम से कम पांच साल इस्लाम मानने की शर्त जैसे प्रावधान थे।मुस्लिम संगठनों, जैसे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB), ने इन बदलावों का विरोध किया। उनका कहना था कि यह मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर हमला है और संविधान के अनुच्छेद 25-26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। दूसरी तरफ, सरकार का तर्क था कि ये बदलाव पारदर्शिता लाएंगे और वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग रोकेगा। कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुईं, जिन पर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने सुनवाई की।कोर्ट ने किस पक्ष की दलील मानी?
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में संतुलन बनाए रखा। मुस्लिम पक्ष की कई दलीलों को स्वीकार किया गया, लेकिन सरकार के कुछ बिंदुओं पर भी सहमति जताई। आइए समझते हैं विस्तार से:
- कानून को पूरी तरह हरी झंडी: कोर्ट ने कहा कि वक्फ संशोधन कानून 2025 पर पूरी रोक नहीं लगाई जा सकती। चीफ जस्टिस ने स्पष्ट किया कि किसी कानून की संवैधानिकता का अनुमान हमेशा उसके पक्ष में होता है। केवल बहुत दुर्लभ मामलों में ही रोक लगाई जाती है। यहां सरकार की दलील मानी गई कि कानून वक्फ प्रबंधन को मजबूत बनाएगा। लेकिन कोर्ट ने याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई के बाद ही पूरा फैसला देने का वादा किया है। यह फैसला मुस्लिम पक्ष के लिए आंशिक झटका है, क्योंकि वे पूरे कानून को रद्द करना चाहते थे।
- गैर-मुस्लिम सीईओ पर कोई रोक नहीं: नए कानून में वक्फ बोर्ड का सीईओ गैर-मुस्लिम भी हो सकता है। मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया था, उनका कहना था कि वक्फ एक इस्लामी संस्था है, इसलिए इसका प्रमुख मुस्लिम ही होना चाहिए। कोर्ट ने इस प्रावधान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि, जजों ने सुझाव दिया कि जहां तक संभव हो, सीईओ मुस्लिम ही नियुक्त किया जाए। यह सरकार की दलील को मजबूत करता है, जो कहती थी कि प्रशासनिक पदों पर योग्यता आधारित नियुक्ति होनी चाहिए, न कि सिर्फ धर्म पर। लेकिन मुस्लिम पक्ष को थोड़ी राहत मिली, क्योंकि कोर्ट ने इसे ‘सुझाव’ के रूप में रखा, न कि बाध्यकारी।
- कलेक्टर की शक्तियों पर अंकुश: यह मुस्लिम पक्ष की सबसे बड़ी जीत है। नए कानून में कलेक्टर को वक्फ संपत्ति के विवादों का फैसला करने की शक्ति दी गई थी। मुस्लिम संगठनों का तर्क था कि यह कार्यपालिका को न्यायिक काम सौंपना है, जो संविधान के खिलाफ है। कोर्ट ने इस दलील को पूरी तरह मान लिया। जजों ने कहा कि कलेक्टर या कोई सरकारी अधिकारी संपत्ति के मालिकाना हक का अंतिम फैसला नहीं कर सकता। वक्फ ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट ही इसका अधिकार रखते हैं। कोर्ट ने धारा 3(ग), 3(घ) और 3(ङ) पर अंतरिम रोक लगा दी, जो कलेक्टर की जांच और फैसले से जुड़ी थीं। इसका मतलब है कि जब तक अंतिम सुनवाई न हो, कलेक्टर वक्फ संपत्ति पर कोई कार्रवाई नहीं कर पाएंगे। यह फैसला वक्फ संपत्तियों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई मामलों में सरकारी हस्तक्षेप से मुस्लिम समुदाय चिंतित था।
- पांच साल इस्लाम मानने की शर्त पर रोक: कानून में कहा गया था कि वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति को कम से कम पांच साल से इस्लाम का पालन करना चाहिए। मुस्लिम पक्ष ने इसे भेदभावपूर्ण बताया। कोर्ट ने इस दलील को सही माना और धारा 3(आर) पर रोक लगा दी। जजों ने कहा कि यह शर्त मनमानी लगती है और मुस्लिम की परिभाषा तय करना न्यायिक जांच का विषय है। यह प्रावधान तब तक लागू नहीं होगा, जब तक नियम न बनें। सरकार की दलील थी कि यह फर्जी वक्फ रोकने के लिए है, लेकिन कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया।
- गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या सीमित: वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान था। कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद के 22 सदस्यों में से अधिकतम चार और राज्य वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में से तीन ही गैर-मुस्लिम हो सकते हैं। इससे बहुमत मुस्लिम सदस्यों का रहेगा। मुस्लिम पक्ष की दलील मानी गई कि वक्फ बोर्ड धार्मिक संस्था है, इसलिए इसमें मुस्लिमों का प्रभुत्व होना चाहिए। सरकार चाहती थी कि अधिक गैर-मुस्लिम शामिल हों ताकि पारदर्शिता आए, लेकिन कोर्ट ने सीमा तय कर दी।
- वक्फ बाय यूजर पर रोक: कानून में ‘वक्फ बाय यूजर’ (लंबे समय से इस्तेमाल से वक्फ मानना) को हटाने का प्रावधान था। कोर्ट ने धारा 2(सी) पर रोक लगा दी, जो मुस्लिम पक्ष के पक्ष में है। साथ ही, पंजीकरण अनिवार्य करने वाले प्रावधान पर हस्तक्षेप नहीं किया।
इस फैसले के बाद प्रतिक्रियाएं तेजी से आ रही हैं। AIMPLB के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने इसे राहत बताया। उन्होंने कहा, “कोर्ट ने विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगाकर मुस्लिम समुदाय की चिंताओं को समझा। लेकिन अंतिम फैसला अभी बाकी है।” दूसरी तरफ, सरकार के वकीलों ने कहा कि कानून का मूल उद्देश्य बरकरार है और यह वक्फ संपत्तियों को मजबूत बनाएगा। विपक्षी नेता असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया, “यह आंशिक जीत है, लेकिन कलेक्टर की शक्तियां हटाना महत्वपूर्ण है।”वक्फ कानून का इतिहास और महत्व
वक्फ व्यवस्था भारत में 12वीं सदी से चली आ रही है। 1995 के वक्फ एक्ट को 2013 में संशोधित किया गया था। लेकिन संपत्तियों पर विवाद बढ़ने से 2025 में नया संशोधन आया। देश में 32 वक्फ बोर्ड हैं, जो 9 लाख एकड़ जमीन संभालते हैं। लेकिन रिपोर्ट्स कहती हैं कि 58% वक्फ संपत्तियां विवादित हैं। सरकार का दावा है कि नया कानून डिजिटलीकरण और ऑडिट से पारदर्शिता लाएगा। मुस्लिम संगठन कहते हैं कि यह हस्तक्षेप धार्मिक मामलों में बढ़ा रहा है।इस फैसले का असर क्या होगा?
अंतरिम रोक से वक्फ बोर्डों को राहत मिली है। कलेक्टर अब विवादित संपत्तियों पर तुरंत कार्रवाई नहीं कर पाएंगे। गैर-मुस्लिम सदस्य सीमित संख्या में ही जुड़ेंगे, जो बोर्ड की स्वायत्तता बचाएगा। लेकिन सीईओ पर सुझाव से सरकार को थोड़ी छूट मिली है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला संतुलित है, लेकिन अंतिम सुनवाई में और बहस होगी। संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक, कोर्ट ने धार्मिक अधिकारों और प्रशासनिक सुधार के बीच संतुलन बनाया है।कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला वक्फ कानून को मजबूत बनाने की दिशा में एक कदम है, लेकिन मुस्लिम समुदाय की चिंताओं को भी संबोधित करता है। आने वाले दिनों में इस पर और चर्चा होगी, और उम्मीद है कि इससे वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन होगा। (लगभग 1050 शब्द)
: भारत की सर्वोच्च अदालत ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर एक महत्वपूर्ण अंतरिम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, जिसे केंद्र सरकार ने वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन के लिए पेश किया था। हालांकि, अदालत ने कानून के कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर अस्थायी रोक लगा दी है। इस फैसले में गैर-मुस्लिम को वक्फ बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) बनाने की अनुमति बरकरार रखी गई है, लेकिन कलेक्टर की शक्तियों पर अंकुश लगाया गया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या सीमित रहेगी। यह फैसला मुस्लिम समुदाय और सरकार दोनों के पक्षों की कुछ-कुछ दलीलों को मानते हुए आया है, जो वक्फ संपत्तियों के विवादों को सुलझाने का प्रयास करता दिखता है।वक्फ कानून क्या है और क्यों विवाद में फंसा?
वक्फ का मतलब होता है धार्मिक या चैरिटी के उद्देश्य से संपत्ति दान करना। भारत में वक्फ संपत्तियां मस्जिदों, कब्रिस्तानों, स्कूलों और गरीबों की मदद के लिए इस्तेमाल होती हैं। देश में करीब 8 लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जिनकी कीमत अरबों रुपये बताई जाती है। लेकिन कई जगहों पर इन संपत्तियों पर अवैध कब्जे और विवाद हो रहे हैं। इसी को दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने 2025 में वक्फ कानून में संशोधन किया। नए कानून में वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने, सीईओ को गैर-मुस्लिम बनाने, कलेक्टर को विवाद सुलझाने की शक्ति देने और वक्फ बनाने के लिए कम से कम पांच साल इस्लाम मानने की शर्त जैसे प्रावधान थे।मुस्लिम संगठनों, जैसे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB), ने इन बदलावों का विरोध किया। उनका कहना था कि यह मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर हमला है और संविधान के अनुच्छेद 25-26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। दूसरी तरफ, सरकार का तर्क था कि ये बदलाव पारदर्शिता लाएंगे और वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग रोकेगा। कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुईं, जिन पर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने सुनवाई की।कोर्ट ने किस पक्ष की दलील मानी?
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में संतुलन बनाए रखा। मुस्लिम पक्ष की कई दलीलों को स्वीकार किया गया, लेकिन सरकार के कुछ बिंदुओं पर भी सहमति जताई। आइए समझते हैं विस्तार से:
- कानून को पूरी तरह हरी झंडी: कोर्ट ने कहा कि वक्फ संशोधन कानून 2025 पर पूरी रोक नहीं लगाई जा सकती। चीफ जस्टिस ने स्पष्ट किया कि किसी कानून की संवैधानिकता का अनुमान हमेशा उसके पक्ष में होता है। केवल बहुत दुर्लभ मामलों में ही रोक लगाई जाती है। यहां सरकार की दलील मानी गई कि कानून वक्फ प्रबंधन को मजबूत बनाएगा। लेकिन कोर्ट ने याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई के बाद ही पूरा फैसला देने का वादा किया है। यह फैसला मुस्लिम पक्ष के लिए आंशिक झटका है, क्योंकि वे पूरे कानून को रद्द करना चाहते थे।
- गैर-मुस्लिम सीईओ पर कोई रोक नहीं: नए कानून में वक्फ बोर्ड का सीईओ गैर-मुस्लिम भी हो सकता है। मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया था, उनका कहना था कि वक्फ एक इस्लामी संस्था है, इसलिए इसका प्रमुख मुस्लिम ही होना चाहिए। कोर्ट ने इस प्रावधान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि, जजों ने सुझाव दिया कि जहां तक संभव हो, सीईओ मुस्लिम ही नियुक्त किया जाए। यह सरकार की दलील को मजबूत करता है, जो कहती थी कि प्रशासनिक पदों पर योग्यता आधारित नियुक्ति होनी चाहिए, न कि सिर्फ धर्म पर। लेकिन मुस्लिम पक्ष को थोड़ी राहत मिली, क्योंकि कोर्ट ने इसे ‘सुझाव’ के रूप में रखा, न कि बाध्यकारी।
- कलेक्टर की शक्तियों पर अंकुश: यह मुस्लिम पक्ष की सबसे बड़ी जीत है। नए कानून में कलेक्टर को वक्फ संपत्ति के विवादों का फैसला करने की शक्ति दी गई थी। मुस्लिम संगठनों का तर्क था कि यह कार्यपालिका को न्यायिक काम सौंपना है, जो संविधान के खिलाफ है। कोर्ट ने इस दलील को पूरी तरह मान लिया। जजों ने कहा कि कलेक्टर या कोई सरकारी अधिकारी संपत्ति के मालिकाना हक का अंतिम फैसला नहीं कर सकता। वक्फ ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट ही इसका अधिकार रखते हैं। कोर्ट ने धारा 3(ग), 3(घ) और 3(ङ) पर अंतरिम रोक लगा दी, जो कलेक्टर की जांच और फैसले से जुड़ी थीं। इसका मतलब है कि जब तक अंतिम सुनवाई न हो, कलेक्टर वक्फ संपत्ति पर कोई कार्रवाई नहीं कर पाएंगे। यह फैसला वक्फ संपत्तियों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई मामलों में सरकारी हस्तक्षेप से मुस्लिम समुदाय चिंतित था।
- पांच साल इस्लाम मानने की शर्त पर रोक: कानून में कहा गया था कि वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति को कम से कम पांच साल से इस्लाम का पालन करना चाहिए। मुस्लिम पक्ष ने इसे भेदभावपूर्ण बताया। कोर्ट ने इस दलील को सही माना और धारा 3(आर) पर रोक लगा दी। जजों ने कहा कि यह शर्त मनमानी लगती है और मुस्लिम की परिभाषा तय करना न्यायिक जांच का विषय है। यह प्रावधान तब तक लागू नहीं होगा, जब तक नियम न बनें। सरकार की दलील थी कि यह फर्जी वक्फ रोकने के लिए है, लेकिन कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया।
- गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या सीमित: वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान था। कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद के 22 सदस्यों में से अधिकतम चार और राज्य वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में से तीन ही गैर-मुस्लिम हो सकते हैं। इससे बहुमत मुस्लिम सदस्यों का रहेगा। मुस्लिम पक्ष की दलील मानी गई कि वक्फ बोर्ड धार्मिक संस्था है, इसलिए इसमें मुस्लिमों का प्रभुत्व होना चाहिए। सरकार चाहती थी कि अधिक गैर-मुस्लिम शामिल हों ताकि पारदर्शिता आए, लेकिन कोर्ट ने सीमा तय कर दी।
- वक्फ बाय यूजर पर रोक: कानून में ‘वक्फ बाय यूजर’ (लंबे समय से इस्तेमाल से वक्फ मानना) को हटाने का प्रावधान था। कोर्ट ने धारा 2(सी) पर रोक लगा दी, जो मुस्लिम पक्ष के पक्ष में है। साथ ही, पंजीकरण अनिवार्य करने वाले प्रावधान पर हस्तक्षेप नहीं किया।
इस फैसले के बाद प्रतिक्रियाएं तेजी से आ रही हैं। AIMPLB के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने इसे राहत बताया। उन्होंने कहा, “कोर्ट ने विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगाकर मुस्लिम समुदाय की चिंताओं को समझा। लेकिन अंतिम फैसला अभी बाकी है।” दूसरी तरफ, सरकार के वकीलों ने कहा कि कानून का मूल उद्देश्य बरकरार है और यह वक्फ संपत्तियों को मजबूत बनाएगा। विपक्षी नेता असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया, “यह आंशिक जीत है, लेकिन कलेक्टर की शक्तियां हटाना महत्वपूर्ण है।”वक्फ कानून का इतिहास और महत्व
वक्फ व्यवस्था भारत में 12वीं सदी से चली आ रही है। 1995 के वक्फ एक्ट को 2013 में संशोधित किया गया था। लेकिन संपत्तियों पर विवाद बढ़ने से 2025 में नया संशोधन आया। देश में 32 वक्फ बोर्ड हैं, जो 9 लाख एकड़ जमीन संभालते हैं। लेकिन रिपोर्ट्स कहती हैं कि 58% वक्फ संपत्तियां विवादित हैं। सरकार का दावा है कि नया कानून डिजिटलीकरण और ऑडिट से पारदर्शिता लाएगा। मुस्लिम संगठन कहते हैं कि यह हस्तक्षेप धार्मिक मामलों में बढ़ा रहा है।इस फैसले का असर क्या होगा?
अंतरिम रोक से वक्फ बोर्डों को राहत मिली है। कलेक्टर अब विवादित संपत्तियों पर तुरंत कार्रवाई नहीं कर पाएंगे। गैर-मुस्लिम सदस्य सीमित संख्या में ही जुड़ेंगे, जो बोर्ड की स्वायत्तता बचाएगा। लेकिन सीईओ पर सुझाव से सरकार को थोड़ी छूट मिली है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला संतुलित है, लेकिन अंतिम सुनवाई में और बहस होगी। संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक, कोर्ट ने धार्मिक अधिकारों और प्रशासनिक सुधार के बीच संतुलन बनाया है।कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला वक्फ कानून को मजबूत बनाने की दिशा में एक कदम है, लेकिन मुस्लिम समुदाय की चिंताओं को भी संबोधित करता है। आने वाले दिनों में इस पर और चर्चा होगी, और उम्मीद है कि इससे वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन होगा। (लगभग 1050 शब्द)
