• October 28, 2025

बिहार चुनाव से पहले SIR पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, गुरुवार को होगी अगली सुनवाई

नई दिल्ली, 7 अक्टूबर 2025: बिहार विधानसभा चुनावों की दहलीज पर खड़े होने के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर अहम टिप्पणियां की हैं। जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा कि यह मामला पूरी तरह केंद्रीय चुनाव आयोग के दायरे में है। कोर्ट ने केंद्र से प्रभावित लोगों की सूची मांगी और अनधिकृत निवासियों के डर को रेखांकित किया। लेकिन क्या SIR वाकई लाखों मतदाताओं को वंचित कर रहा है? चुनाव आयोग का तंत्र कितना प्रभावी साबित होगा? अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी, जो चुनावी समर को और गर्माएगी। पूरी बहस और कोर्ट के सुझावों का राज क्या है? आगे पढ़ें।

कोर्ट की टिप्पणी: SIR चुनाव आयोग का विशेषाधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान स्पष्ट कर दिया कि मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) केंद्रीय चुनाव आयोग (ECI) का पूर्ण अधिकार क्षेत्र है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ज्योमलया बागची की बेंच ने कहा, ‘हम हर काम अपने हाथ में क्यों लें? चुनाव आयोग के पास अपना मजबूत तंत्र है, उसे काम करने दो।’ कोर्ट ने जोर देकर कहा कि SIR प्रक्रिया में अन्य राज्यों में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि बिना पूर्व नोटिस के नाम हटाए जा रहे हैं, जो लोकतंत्र पर हमला है। लेकिन कोर्ट ने इसे ECI का विशेषाधिकार माना। बिहार में जून 2025 से शुरू SIR का मकसद मतदाता सूची को शुद्ध करना है, जिसमें 22 लाख मृत, 7 लाख डुप्लिकेट और 35 लाख ट्रेस न हो सकने वाले नाम हटाए गए। विपक्ष का आरोप है कि यह चुनावी फायदा पहुंचाने की साजिश है। कोर्ट ने ECI को स्वतंत्रता देते हुए कहा कि प्रक्रिया जारी रहे, लेकिन पारदर्शिता जरूरी है। यह टिप्पणी बिहार की 243 सीटों वाले चुनाव को नई दिशा दे सकती है।

अनधिकृत निवासियों पर कोर्ट का सख्त रुख

कोर्ट ने सुनवाई में एक संवेदनशील मुद्दा उठाया—देश में बिना अनुमति रहने वाले लोग SIR से डर रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘कुछ लोग अनधिकृत रूप से रह रहे हैं, वे नाम हटने पर पहचान उजागर होने के भय से सामने नहीं आएंगे।’ बेंच ने केंद्र सरकार से प्रभावित लोगों की एक इलस्ट्रेटिव सूची मांगी, जिसमें कम से कम 100 ऐसे मामले शामिल हों जहां नाम हटे लेकिन अपील का मौका न मिला। याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया गया कि वे ऐसी सूची पेश करें। SIR में 3.66 लाख नाम हटे, जबकि 21 लाख नए जुड़े, लेकिन कारणों का ब्योरा न होने से विवाद बढ़ा। विपक्ष ने दावा किया कि गरीब और प्रवासी मतदाता सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। कोर्ट ने इसे गंभीर बताते हुए कहा कि नागरिकता साबित करने के लिए 11 दस्तावेज मान्य हैं, लेकिन बोझ मतदाताओं पर डालना उचित नहीं। बिहार चुनाव से ठीक पहले यह बहस आस्था और अधिकारों के बीच का संतुलन बना रही है। कोर्ट की यह टिप्पणी ECI पर दबाव बढ़ा रही है, ताकि कोई वंचित न रहे।

ECI को सुझाव, 9 अक्टूबर को अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने ECI को मौखिक सुझाव दिया कि वह 3.66 लाख हटाए नामों और 21 लाख जोड़े नामों का विस्तृत नोट तैयार करे, जिसमें कारण स्पष्ट हों। बेंच ने कहा कि यह पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी। कोर्ट ने अपनी स्थिति साफ की—SIR ECI का कार्यक्षेत्र है, लेकिन प्रक्रिया निष्पक्ष हो। याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि नाम हटाने से पहले सुनवाई हो, लेकिन कोर्ट ने ECI के तंत्र पर भरोसा जताया। बिहार में SIR ने 23,557 दावे-आपत्तियां प्राप्त कीं, जिनमें से 741 निपटे। विपक्षी दल इसे ‘मास एक्सक्लूजन’ बता रहे हैं, जबकि ECI कहता है कि यह 2003 के बाद पहली गहन जांच है। कोर्ट ने अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को तय की, जो चुनावी तारीखों से ठीक पहले है। यह फैसला बिहार की सियासत को प्रभावित कर सकता है, जहां लाखों युवा वोटर SIR से प्रभावित हैं। कोर्ट की भूमिका अब संतुलन बनाने वाली है, ताकि लोकतंत्र मजबूत बने।
Digiqole Ad

Rama Niwash Pandey

https://ataltv.com/

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *