बेटा-बहू, बेटी-दामाद; नीतीश-कुशवाहा को छोड़ दें तो नेता फैक्ट्री बना है सबका परिवार, खुद गिन लीजिए
नीतीश कुमार सरकार द्वारा जीतन राम मांझी और अशोक चौधरी के दामाद और चिराग पासवान के बहनोई को आयोग और बोर्ड में मनोनीत करने से राजनीति में नेताओं के परिवारवाद पर बहस जरूर छिड़ी है। लेकिन, दुर्भाग्य से सवाल उठाने वालों की पहचान भी परिवार है। बिहार में अभी पहली पंक्ति के प्रभावी नेताओं में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को छोड़ दें तो कोई ऐसा नजर नहीं आता है, जो राजनीति में परिवार के विस्तार में ना जुटा हो। ललन सिंह, गिरिराज सिंह, मुकेश सहनी या नित्यानंद राय जैसे नेता कम हैं, जो खुद के दम पर बने।
जज के बच्चे जज, अफसर के बच्चे अफसर, डॉक्टर के बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर के बच्चे इंजीनियर और कलाकारों के बच्चे कलाकर बन सकते हैं तो नेताओं के बच्चे नेतागिरी क्यों ना करें, यह सवाल भी जायज है। बच्चों के लिए मां-बाप के पेशे को अपनाना शायद कम तकलीफदेह होता है। सफल होने की संभावना ज्यादा होती है। और सबसे बड़ी बात, बच्चों को उस पेशे के माहौल और परिवेश की आदत लग चुकी होती है। इसलिए बिहार में तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, सम्राट चौधरी जैसे नेताओं के बीच नीतीश के बाद कौन का जवाब देने की होड़ लगी है। इस रेस में आज कोई नीतीश या लालू की तरह पहली पीढ़ी का नेता नहीं है, जिनके पिता का नाम पूछना पड़े।
तो गिनती शुरू करते हैं उनकी, जिनके परिवार से किसी एक ने राजनीति में जमने के बाद फैमिली को बढ़ाना शुरू कर दिया। इस लिस्ट में विजय कुमार चौधरी, नितिन नबीन जैसे नेताओं को नहीं रखा जा रहा, जो पिता के निधन के बाद उप-चुनाव से राजनीति में आए। भारत भूषण मंडल, ललन यादव और राणा रणधीर सिंह जैसे विधायकों के नाम भी नहीं हैं, जो पिता की विरासत से आ गए हैं लेकिन मजबूती से जगह नहीं बना पाए हैं। जेडीयू नेता और मंत्री शीला मंडल जैसों के नाम भी नहीं हैं, जिनके चचेरे ससुर धनिक लाल मंडल मंत्री व गवर्नर रहे, लेकिन चचेरे जेठ भारत भूषण मंडल राजद विधायक हैं।
लिस्ट में निखिल कुमार, उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह या चंद्रिका राय जैसों के भी नाम नहीं मिलेंगे जो पारिवारिक राजनीति से स्थापित हुए, लेकिन फिलहाल किसी सदन में नहीं हैं। अशोक कुमार सिंह या मनोज कुमार शर्मा जैसे पूर्व विधायकों के नाम भी नहीं मिलेंगे, जो राजनीति में पिता के नाम पर आए लेकिन फिलहाल विधानसभा से बाहर हैं। लिस्ट में वो नाम भी नहीं मिलेंगे, जिनके परिवार से पहले कौन सांसद या विधायक बना था, ये आपको पता हो, लेकिन हम उस सूचना तक नहीं पहुंच पाए हों। सूची में उनको रखने की कोशिश है, जिन्हें उनके पिता, मां, ससुर, सास, पति, पत्नी, भाई, बहनोई, साला जैसे करीबी रिश्तेदारों ने राजनीति में उतारा, स्थापित किया और जगह बना चुके हैं।
नीतीश के बेटे निशांत कुमार को जेडीयू में सक्रिय करने की कोशिश चल रही है लेकिन मुख्यमंत्री खुद इस पर ब्रेक लगाकर बैठे हैं क्योंकि वो परिवारवाद के खिलाफ हैं। लालू और राबड़ी देवी को नीतीश इस पर घेरते रहते हैं। रालोमो अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के दो बच्चे हैं। बेटा दीपक कुशवाहा और बेटी प्रीतिलता कुशवाहा। दोनों को राजनीति से मतलब नहीं है। बेटे का छोटा-मोटा व्यापार है और बेटी सरकारी नौकरी करती हैं।
लालू यादव परिवार: राबड़ी देवी, मीसा भारती, रोहिणी आचार्या, तेज प्रताप यादव, तेजस्वी यादव
बिहार की राजनीति में सबसे बलशाली परिवार लालू यादव का है। इसमें उनके साले सुभाष यादव और साधु यादव या उन दोनों के कुनबे को नहीं जोड़ रहे हैं। पहले लालू खुद सीएम बने। फिर पत्नी राबड़ी देवी को सीएम बनाया। राबड़ी अभी विधान परिषद में हैं। बड़ी बेटी मीसा भारती को पहले राज्यसभा भेजा और हारते-हारते वो इस बार लोकसभा भी जीत गईं। लालू को किडनी देने वाली बेटी रोहिणी आचार्या को सारण से लोकसभा चुनाव लड़ाया गया, लेकिन हार गईं। चर्चा विधानसभा लड़ने की शुरू हो गई है।
बड़े बेटे तेज प्रताप यादव दो बार विधायक और मंत्री बने। अभी एक लड़की से कथित संबंध बाहर आने के बाद परिवार और पार्टी से निकाल दिए गए हैं। छोटे लड़के तेजस्वी यादव पार्टी के सर्वेसर्वा जैसा बन चुके हैं। दो बार डिप्टी सीएम रहे और महागठबंधन के अघोषित सीएम कैंडिडेट हैं।
रामविलास पासवान परिवार: पशुपति कुमार पारस, चिराग पासवान, अरुण भारती, प्रिंस पासवान, धनंजय पासवान, अनिल कुमार साधु
रामविलास पासवान जब तक सक्रिय रहे तब तक उनके भाई पशुपति कुमार पारस और रामचंद्र पासवान भी चुनाव लड़ते और हारते-जीतते रहे। रामचंद्र के निधन के बाद उनके बेटे प्रिंस को भी लोकसभा पहुंचा दिए। रामविलास के निधन के बाद पार्टी में बंटवारे के बाद पारस केंद्रीय मंत्री बन गए और तब कमजोर चिराग आज बिहार में परिवार के सबसे ताकतवार नेता हैं। 2015 में अलौली से हारे पारस हाजीपुर से एक बार सांसद बनने के बाद चुनाव भी नहीं लड़ पाए। समस्तीपुर सांसद रहे प्रिंस पासवान का भी वही हाल हुआ।
