• December 25, 2025

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बंगाल दौरा: ‘भाजपा के नजरिए से संघ को देखना बड़ी भूल, तुलना से पैदा होती हैं गलतफहमियां’

कोलकाता: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत इन दिनों पश्चिम बंगाल के चार दिवसीय महत्वपूर्ण दौरे पर हैं। उत्तर बंगाल के अपने कार्यक्रमों को संपन्न करने के बाद वे कोलकाता पहुंचे, जहां उन्होंने साइंस सिटी सभागार में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम को संबोधित किया। अपने संबोधन में भागवत ने संघ की कार्यप्रणाली, इसके मूल दर्शन और राजनीति के साथ इसके संबंधों को लेकर जारी धारणाओं पर खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि संघ को किसी अन्य चश्मे से देखने के बजाय उसके मूल स्वरूप में समझना आवश्यक है।

संघ को राजनीति और भाजपा के नजरिए से देखना एक बड़ी भूल

मोहन भागवत ने अपने भाषण के दौरान उन लोगों को कड़ा संदेश दिया जो आरएसएस को राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूरक संस्था या उसके विस्तार के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा कि कई लोगों में यह प्रवृत्ति होती है कि वे संघ को भाजपा के नजरिए से समझने की कोशिश करते हैं। भागवत ने इसे एक ‘बहुत बड़ी गलती’ करार देते हुए कहा कि संघ एक स्वतंत्र और सांस्कृतिक संगठन है, जिसका उद्देश्य राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ की अपनी एक अलग पहचान और कार्यपद्धति है। राजनीति संघ का प्राथमिक क्षेत्र नहीं है, बल्कि संघ समाज के चरित्र निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है। भागवत के अनुसार, संघ को किसी राजनीतिक दल के लाभ-हानि के तराजू में तौलना उसकी मूल विचारधारा के साथ अन्याय होगा। उन्होंने श्रोताओं को आगाह किया कि यदि संघ को बाहरी राजनीतिक समीकरणों के आधार पर परखा जाएगा, तो कभी भी इसकी वास्तविक गहराई को नहीं समझा जा सकेगा।

तुलना से उपजती हैं गलतफहमियां: सेवा संगठनों से भिन्न है संघ

अपने संबोधन में सरसंघचालक ने इस बात पर जोर दिया कि संघ की तुलना किसी अन्य संगठन से नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि अक्सर लोग संघ को केवल एक ‘सेवा संगठन’ मान लेते हैं, लेकिन ऐसा सोचना अधूरा सत्य होगा। मोहन भागवत ने तर्क दिया कि अगर आप संघ को समझना चाहते हैं, तो तुलना करना बंद करना होगा। तुलना करने से हमेशा गलतफहमियां पैदा होती हैं क्योंकि संघ का ढांचा और उसका लक्ष्य अद्वितीय है।

उन्होंने बताया कि संघ केवल आपदा के समय सेवा कार्य करने वाला समूह मात्र नहीं है, बल्कि यह निरंतर चलने वाली एक साधना है। भागवत ने कहा कि दुनिया में कई सेवा संगठन हैं जो बेहतरीन काम कर रहे हैं, लेकिन संघ का उद्देश्य उन सबसे अलग एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जो स्वयं की समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हो। तुलनात्मक अध्ययन अक्सर सतही होता है, जबकि संघ को समझने के लिए उसके भीतर उतरना और उसकी शाखा पद्धति के प्रभाव को महसूस करना जरूरी है।

100 वर्षों की यात्रा: व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का संकल्प

मोहन भागवत का पूरा भाषण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आगामी शताब्दी वर्ष की यात्रा पर केंद्रित रहा। उन्होंने बताया कि कैसे संघ ने पिछले 100 वर्षों में ‘व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण’ के विचार को धरातल पर उतारा है। उन्होंने कहा कि संघ का मूल मंत्र ऐसे चरित्रवान व्यक्तियों का निर्माण करना है जो राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखें। जब एक व्यक्ति का चरित्र सुदृढ़ होता है, तभी एक सुदृढ़ समाज और अंततः एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण होता है।

उन्होंने संघ की इस लंबी यात्रा को त्याग और तपस्या का परिणाम बताया। भागवत ने कहा कि संघ का लक्ष्य केवल स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ाना नहीं है, बल्कि समाज के हर वर्ग में राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत करना है। उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे संघ की शाखाओं के माध्यम से अनुशासन, देशभक्ति और सामाजिक समरसता के संस्कार दिए जाते हैं, जो आगे चलकर देश की प्रगति का आधार बनते हैं।

एकजुट हिंदू समाज और समृद्ध भारत का लक्ष्य

संबोधन के अंतिम चरण में मोहन भागवत ने एक ‘एकजुट हिंदू समाज’ की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत को यदि एक बार फिर विश्व गुरु के रूप में स्थापित होना है और समृद्ध बनना है, तो समाज का संगठित होना अनिवार्य है। उनके अनुसार, एक बिखरा हुआ समाज कभी भी बाहरी चुनौतियों का सामना नहीं कर सकता।

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि एकजुटता का अर्थ किसी के प्रति द्वेष पालना नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटना और सामाजिक भेदभाव को समाप्त करना है। उन्होंने ‘समृद्ध भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक नागरिक से राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने का आह्वान किया। भागवत ने बंगाल की धरती से यह संदेश दिया कि संघ का कार्य किसी के विरोध में नहीं, बल्कि राष्ट्र के उत्थान के लिए समाज को एक सूत्र में पिरोने का है। उनके इस दौरे को पश्चिम बंगाल में संघ के आधार को और मजबूत करने और वैचारिक स्पष्टता लाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

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